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________________ ज्ञात - वंशका रूपान्तर जाट-वंश ( लेखक - मुनिश्री कवीन्द्रसागरजी, बीकानेर ) [ प्रस्तुत लेखका सम्बन्ध इतिहाससे है । 'शातवंश' का रूपान्तर 'जाटवंश' कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? इसके पक्ष में क्या क्या प्रमाण है ? आदि बातोंकी चर्चा इस लेखमें कीगई है। साथ ही, इस बात की भी मीमांसा की गई है कि भगवान महावीरदेवके शातवंश का मूल क्या है ? यह लेख इतिहास- मर्मयोंके लिये एक नई विचार - सामग्री उपस्थित करता है । आशा है विद्वान पाठक इस सम्बन्धमें ऊहापोह करेंगे एवं भगवान महावीर के ज्ञातवंश के सम्बन्ध में अधिकाधिक प्रकाश डालेंगे । ] ज्ञात वंश की धर्मपत्नी वाशिष्ठ गोत्रवाली श्रीमती त्रिशला शुरूषोत्तम भगवान महावीरकी जीवन- घटना से क्षत्रियाणीकी कुक्षिमें संक्रमित कराऊं । यह विचार लेखकोंकी दृष्टिमें ज्ञातवंश प्रसिद्ध ही नहीं अति प्रसिद्ध है । कल्पसूत्र नामके जैनागम में बताया गया है कि 'जम्बूद्वीप के दक्षिणार्ध भारतवर्ष में माहणकुण्डग्राम नामक नगर में कोडालस गोत्रके ऋषभदत्त ब्राह्मणकी जालन्धर गोत्रवाली धर्मपत्नी श्री देवानंदाकी कुक्षिमें भगवान महावीरदेवके गर्भरूपसे अवतरित होने पर, देवपति इन्द्र नमस्कार करके सोचने लगा कि तीनों कालों में श्रतादि-पदधारी पुरुषोत्तम, भिक्षुक ब्राह्मण आदि कुलोंमें नहीं आते हैं। यह भी सम्भव है कि अनन्तकाल बीतने पर नाम गोत्र के उदयमें श्रानेसे अर्हतादि पद-धारी भिक्षुक - ब्राह्मणादि कुलोंमें आयें, किन्तु वे योनि - निष्क्रमण-द्वार। जन्म नहीं ले । श्रतः मेरा कर्तव्य है कि भगवान महावीरको देवनन्दाकी कुक्षिमेंसे निकालकर क्षत्रिय-कुंड-ग्राम नगरमें ज्ञातवंशीय क्षत्रियोंमें काश्यपगोत्रवाले सिद्धार्थ नैगमेषी देवको इसके लिये आशा की । वह इन्द्रकी आज्ञा पाकर अपनी दिव्य गतिसे भारतमें आकर देवानन्दाकी कुक्षिमेंसे भगवान महावीरका अपहरण करके त्रिशला के गर्भ में संक्रमित कर देता है, और त्रिशला के गर्भ में की लड़कीको देवानन्दाकी कुक्षिमें संक्रमित कर देता है ।" यहां सूत्रकारने साफ २ शब्दोंमें घोषणा की है, कि ज्ञातवंश उच्च-गोत्र-सम्पन्न है । उसमें काश्यपगोत्र आदि कई गोत्र भी हैं। साथ ही, वह वंश महापुरुषों के जन्म लेने योग्य है। भिक्षुक-ब्राह्मण वंश नीच गोत्र सम्पन्न है और अहंतादि महापुरुषों क जम्म लेने योग्य नहीं है। यहां ये प्रश्न स्वाभाविक ही उत्पन्न होते हैं कि, ज्ञातवंशको उचगोत्र सम्पन्न और ब्राह्मणवंशको नीचगोत्रसम्पन्न क्यों माना ? क्या इसमें श्रमण-ब्राह्मण-संघर्ष की झलक नहीं मालूम होती ? और ज्ञातवंश का भविष्य क्या
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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