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अनेकान्त
[वर्ष ३, किरण
दूसरे अनुयोगद्वार भी शामिल हैं।
प्राप्त हुआ। यह सब वर्णन अथवा ग्रंथावतार कथन इन्द्रनन्दी और विबुध श्रीधरके श्रुतावतारोंकीबहिरंग यहाँ धवल और जयधवलके आधार पर उनके वर्णसाक्षीपरसे भी कुछ विद्वानोंको भ्रम हुअा जान पड़ता नानुसार ही दिया जाता है। है; क्योंकि इन्द्रनन्दीने "इतिषएणां खण्डाना...टीका धवल के शुरूम, कर्ताके 'अर्थकर्ता' और 'ग्रन्थकर्ता' विलिख्य धवलाख्याम्" इस वाक्यके द्वारा धवलाको ऐसे दो भेद करके, केवलशानी भगवान महावीरको छह खण्डोंकी टीका बतला दिया है ! और विबुध श्रीधर- द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव-रूपसे अर्थकर्ता प्रतिपादित किया ने 'पंचखंडे षट्खंड संकल्प्य' जैसे वाक्य के द्वारा है और उसकी प्रमाणता में कुछ प्राचीन पद्योंको भी धवलामें पाँच खण्डों का होना सूचित किया है। उद्धृत किया है । महावीर-द्वारा कथित अर्थको गोतम इस विषयमें मैं सिर्फ इतना ही बतला देना चाहता हूँ गोत्री ब्राह्मणोत्तम गौतमने अवधारित किया, जिसका कि इन ग्रंथकारोंके सामने मूल सिद्धान्तग्रंथ और उनकी नाम इन्द्रभृति था । यह गौतम सम्पर्ण दुःश्रुतिका पार प्राचीन टीकाएँ तो क्या धवल और जयधवल ग्रंथ तक गामी था, जीवाजीव-विषयक सन्देहके निवारणार्थ मौजद नहीं थे और इसलिये इन्होंने इस विषयमें जो श्रीवर्धमान महावीरके पास गया था और उनका शिष्य कुछ लिखा है वह सब प्रायः किंवदन्तियों अथवा सुने- बन गया था। उसे वहीं पर उसी समय क्षयोपशम-जनित सुनाये श्राधार पर लिखा जान पड़ता है । यही वजह है निर्मल ज्ञान-चतुष्टयकी प्राप्ति हो गई थी । इस प्रकार कि धवल-जयधवल के उल्लेखसि इनके उल्लेखोमं कित- भाव-श्रुतपर्याय-रूप परिणत हुए इन्द्रभूति गौतमने महावीरनी ही बातोंका अन्तर पाया जाता है, जिसका कुछ परि- कथित अर्थकी बारह अंगों-चौदह पर्वो में ग्रन्थ-रचना की चय पाठकोंको अनेकान्तके द्वितीय वर्ष की प्रथम किरण और वे द्रव्यश्रुतके कर्ता हुए। उन्होंने अपना वह द्रव्यके पृष्ठ ७, ८ को देखनेसे मालूम हो सकता है और कुछ भाव-रूपी श्रुतज्ञान लोहाचार्य के प्रति संचारित किया परिचय इस लेखमें आगे दिये हुए फुटनोटों आदिसेभी और लोहाचार्यने जम्बस्वामीके प्रति । ये तीनों-गौतम, जाना जा सकेगा । ऐसी हालतमें इन ग्रंथोंकी बहिरंग लोहाचार्य और जम्बस्वामी-सप्तप्रकारकी लब्धियोंसाक्षीको खुद धवलादिककी अंतरंग माक्षी पर कोई से सम्पन्न थे और उन्होंने सम्पूर्ण श्रुतके पारगामी होकर महत्व नहीं दिया जामकता । अन्तरंग परीक्षणसे जो केवलज्ञानको उत्पन्न करके क्रमशः निर्वृतिको प्राप्त बात उपलब्ध होती है वही ठीक जान पड़ती है। किया था।
जम्बूस्वामीके पश्चात् क्रमशः विष्णु, नन्दिनित्र, षट् खण्डागम और कषायमाभृतकी उत्पत्ति अपराजित, गोवद्धन और भद्रबाह ये पांच प्राचार्य
अब यह बतलाया जाता है कि धवला के मूलाधार- चतुर्दश-पर्वके धारी अर्थात् सम्पर्ण श्रुतज्ञानके पारगामी भूत 'घटखंडागम' की और जयधवल के मूलाधाररूप हुए। 'कषायप्राभृत' की उत्पत्तिकैसे हुई-कब किम श्राचार्य- धवलाके 'वेदना' सरसमें भी लोहाचार्यका नाम महोदयने इनमस किस ग्रंथका निर्माण किया और उन्हें दिया है । इन्धनन्दिके श्रुतावतारमें इस स्थान पर तद्विषयक शान कहाँसे अथवा किस क्रमस गुपरम्परासे) सुधर्म मुनिका नाम पाया जाता है।