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________________ भनेकान्त मार्गशीर्ष, वीर निवांश सं०२३६६ जीव पाचरखको 'ऊँच गोत्र' और नीचे पाचरण- अपनी बीसे संतुष्ट रहना. वेश्यागमन-परखी गमन न को 'नीच गोत्र' कहते है। ऊँचगोत्र-सूचक ऊँचे करना, पति खोम न करना, दूसरेका हक (स्वत्व ) भाचरणको सम्यक् चारित्र, धर्माचरण वादिन माग- सपना बैठना, पलीकी शक्तिपे अधिक व्याज न लेना, कर व्यवहार पोग्य कुलाचरण, नागरिकका प्राचरण या पति तृष्णा न करना, अपनेमे न सँभन सके ऐसे सभ्य मनुष्यका भाचरण पावि माना है। और व्यापाराविको न बढ़ाना प्रावि सहस्रों प्रकारके उंच बीचगोत्र-सूचक नीचे पाचरणको मिथ्याचारित्र, गोत्र सूचक व्यवहारयोग्य सभ्य कुलके ऊँचे पाचरण अपांचरण मादिन मानकर खोटा लौकिक पाचरण, हैं। और गर्वोन्मत्त होकर निरपराधोंको मार डालनाखोकव्यवहारके अयोग्य अगरकेतोंका निब माचरण काट डरावना उन्हें सताना, अनेक प्रकारके कष्ट देना पा असभ्य मनुष्योंका भाचरण प्रादि माना है। और उनका चित्त दुखाना, गुरुजनोंका अपमान तिरस्कार ऐसा मानकर सम्यक् चारित्र, धर्माचरण और व्यवहार- करना, दूसरेकी धरोहर हबप जाना, प्रण लेकर नहीं योग्य कुखाचारण या सभ्य मनुष्यके भाचरणमें तथा देना, अधिक तौलकर लेना तथा कम तौल कर देना, मिष्याचारित्र, अधर्माचरण और ठग-रकेतोंके निया चोरी करना. डाका डालना, किसीका धन ठग लेना, चरण पा असभ्य मनुष्य के प्राचरणमें भेद व्यक्त किया झूठ बोलना, झूठी साती देना, दूसरेमे विश्वासघात है। और इस तरह पर ऊँचे पाचरणका अर्थ व्यवहार करना, बचन देकर नट जाना, ऐसी बान कहना जिससे योग्य कुलाचरण और नीचे भाचरणका अर्थ :ग. दुसरा संकट में पड़ जाय, पुत्र-माई-मातेदार पड़ोसी मित्र केतोंका निच मुलाचरण गाया है। अर्थात उपयुक्त माविकी खियोंसे बलात्कार व्यभिचार करना, परखी. अभिप्राय निकाला है। विधवा दासी वेश्यादिको घरमें डाल खेना या उनमे परन्तु यदि देखा जावे तो संसारमें दो ही प्रकारके छिपकर अथवा प्रकट रूपमें व्यभिचार करना, प्रति भाचरण रष्टिगोचर होते हैं-एक संयमाचरण और तृष्णा व प्रति लोभ करना, दूसरेके धनको-हने के दूसरा असंयमाचरण । बोकम्यवहार-योग्य मभ्य कुनके स्थानको हाइप जाना, अधिक ब्याज लेना, अपनेसे न मनुष्यके भाचरणको संघमाचरण अर्थात् ऊंचा भाचरण संभल सके इतने व्यापार मन्त्रालयादिको बढ़ाते जाना कहते हैं और लोकव्यवहारके अयोग्य असम्यकुलके ठग- प्रादि सहबों प्रकारके नीच गोत्र सूचक व्यवहारके रकेतोंके निध भाचरणको पसंयमाचरण अर्थात् नीचा अयोग्य असम्म ठग रकेतोंके निच कुलके नीचे भाचरण भाचरण करते हैं। जैसे माता पितादि गुरूजनोंकी सेवा है। व्यवहारयोग्य सभ्य कुलके मनुन्यों में कम स्याग व मना, रोगियों को मौषधि भादि देना, असमर्थदीनोंकी का संगम होता है और प्रती भावक - मुनियों में * प्रकारसे सहायता करना, किसीकी धरोहर उसे अधिक त्याग बधिक संवम पा पूर्व संपम होता है, बैसीकी वैसी वापस देना, बसेर पूरा चुकाना, और इसी तरह पर गोलोंके असम्म बाबोंमें बीक परे तौबसे देना तथा जैसे ही पूरा ना, कह नहीं अति संवम पूर्वमसंगम होता है। और इस पोलमा, मूडी सानी नहीं देवा, किसीको बचन देकर तह पर महार योग्य सम्बारबर माचरण विभावा, सरेकी सीको माता-बहिन पा वेढी समझना, एकही बात सवा सम्य असावा असंचमा.
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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