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________________ 180 अनेकान्त संग्रहीत करते रहने का भी प्रबन्ध होना चाहिये एवं इस पुस्तकालयकी सूचना प्रसिद्ध सभी संवादपत्रों में दे देना आवश्यक है। कलकत्ते में बंगीय विद्वानोंका खासा जमाव है। अतः पुस्तकालय कलकत्ते में ही होना विशेष लाभप्रद है । पुस्तकालयका लाइब्रेरीयन (अध्यक्ष)अनुभवी विद्वान होना चाहिये, जिससे विद्वानोंकी माँगका समुचित प्रबंध कर सके। अच्छे २ ग्रन्थ जो वे लोग मांगे और अपने पुस्तकालय में नहीं हों उन्हें तुरन्त मगाने एव हो सके तो अन्य पुस्तकालयोंसे उन्हें प्राप्त करनेका प्रबन्ध हो सके तो उसका प्रबन्ध कर सके और जो ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुए हैं उनको भी विशेष श्रावश्यकता होने पर भडारोंसे मंगा कर पाठकोंको ज्ञान - जिज्ञासाको पूर्ण कर सके । [ मार्गशीर्ष, वीर निर्वाध सं० २०१६ संगृहीत हो सकते । इसी प्रकार पत्रसम्पादक एवं प्रकाशक महाशय भी पत्र फ्री भेज सकते हैं, ऐसे उपयोगी पुस्तकालयके लिये कोई अधिक कठिनता नहीं होगी कार्यकर्त्ता संवाभावी और प्रभावशाली अनुभवी बहुत थोड़ श्रर्थव्ययसे बहुत अच्छा संग्रह एवं व्यवस्था हो सकती है । मेरे ध्यानमें ऐसा व्यवस्थित पुस्तकालय श्रागरेका विजयधर्मसूरि-ज्ञान-मंदिर है । इधर कई वर्षोंसे प्रकाशित पुस्तकोंकी उसमें कमी है उसकी पूर्ति की जामके और विद्वानोंको बाहर भेजने श्रादिका सुप्रबन्ध हो तो इस ज्ञानमन्दिरसे बहुत लाभ हो सकता है । ऐसे ही जैन सिद्धान्त-भवन श्रारा, ऐल्लक पन्नालाल सरस्वती भवन बम्बई, ब्यावर, कालरपाटन आदि दिगम्बर- पुस्तकालयों से भी सहयोग प्राप्त कर लेना परमावश्यक है । उनके सूचीपत्रोंकी नकल मुद्रित हो तो मुद्रित प्रति कलकत्ते के पुस्तकालय में रखी जाय और समय २ पर आवश्यक ग्रंथ वहाँस मंगाकर भी विद्वानों की मांग पूर्णको जाय तो बड़ा भारी ज्ञानप्रचार हो सकता है। विद्वानोंको पाठ्य एवं लेखन सामग्रीको सुविधा प्राप्त होने पर उनकी लेखनी बहुत अधिक काय कर सकेगी। आशा है जैनधर्म-प्रचार के प्रेमी धनी सज्जन इस परमावश्यक योजनाकी ओर अवश्य ही ध्यान देंगे । और इसे अति शीघ्र कार्य रूप में परिणत करके प्रचारकार्यमें हाथ बटावेंगे । हाँ, इतने विशाल पुस्तकालयके लिये बड़े भारी अर्थसग्रहकी आवश्यकता है। पर जैनसमाजके अन्य पुस्तकालयों एवं ग्रंथसंग्रहों में जिन जिन ग्रंथोंकी अधिक अतिरिक्त प्रतियाँ पड़ी हैं उनको वे इस संग्रहमें प्रदान करदें एवं जैनग्रन्थ प्रकाशक अपने प्रकाशनकी १-१ प्रति इसको भेट देदें तो हजारों रुपयेके ग्रंथ सहज (२) केवल एक पुस्तकालय स्थापनसे ही कार्य नही चलगा, साथ साथ जनेतर अन्य प्रसिद्ध पुस्तकालयोंकी भी जैनधर्मक उत्कृष्ट ग्रन्थोंकी प्रतियाँ देना परमावश्यक है, ताकि उस पुस्तकालय के ग्रन्थोंके पाठक विद्वानोंका भी जैनधर्मके आदर्श ग्रंथोंकी ओर ध्यान आकर्षित हो । कलकत्ते में विद्वानोंके केन्द्रस्थानीय पुस्तकालयोंमें इम्पीरियल लायब्रेरी, विश्वविद्यालय एवं एशियाटिक सोसायटीका पुस्तकालय, संस्कृत कॉलेज प्रथालय, बंगीय साहित्यपरिषद पुस्तकालय मुख्य हैं। इनमें उत्तमोत्तम उपयोगी जैनग्रंथोंकी ११ प्रति श्रवश्य देदेनी चाहिये । या उनके पुस्तकाध्यक्षोंको उन ग्रंथोके संग्रहकी प्रेरणा करना चाहिये । (३) पुस्तकालयके अन्दर एक अभ्यासक मंडल भी स्थापित किया जाय । बगीय विद्वानोंको जैनधर्म सम्बधी लेख - निबंध लिखनेकी प्रेरणाकी जाती रहे, प्रत्येक रविवारको भाषणका श्रायोजन हो जिनमें जैनधर्मके विद्वानों एवं अभ्यासी जैनेतर विद्वानोंका भाषण हो, अभ्यासियोंके भाषण लिखितरूपसे हों तो विशेष अच्छा हो। यानी वे प्रकाशित भी किये जासकें और समय भी कम लगे। मौखिक भाषण देनेवाले विशेष विद्वानोंके भाषणोंका सार भी शोर्टहेंडसे लिखा जाकर प्रकाशित किये जानेका प्रबन्ध होनेसे वह कार्य स्थायी एवं विशेष व्यापक होगा । सुन्दर विशिष्टनिबंध लेखकोंको पारितोषिक दिये जानेका प्रबन्ध होना भी उचित है। जिससे वे समुचित उत्साहित हो। उन निबंधोंको जैन एवं देखें, मेरा 'कलेके जैन पुस्तकालय' शीर्षक बेचा, प्र० जोसवाद मवयुवक वर्ष मक
SR No.538003
Book TitleAnekant 1940 Book 03 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size80 MB
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