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वर्ष ३
नीति-विरोध-ध्वंसी लोक-व्यवहार-वर्तकः सम्यक् ।
परमागमस्य वीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ ) सम्पादन-स्थान-वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि. सहारनपुर
प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० ब० नं० ४८, न्यू देहली किरण। कार्तिक पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं० २४६६, विक्रम सं० १९६६
श्रीकीर-स्मरण शुद्धि शक्तयोः परी काष्ठा योऽवाप्य शान्तिमन्दिरः।
देशयामास सद्धर्म श्रीवीरं प्रणमामि तम् ॥ -युगवीरः जिन्होंने ज्ञानावरण-दर्शनावरणकं विनाशनं निर्मलज्ञान-दर्शनकी आविर्भतिरूप शुद्धिको तथा अन्तरायकर्मके विलोपमे वीयलब्धिम्प शक्तिकी पराकाष्ठाको--चरममीमाका-प्राप्त करके और मोहनीय कर्मके समूल विध्वंमसे आत्मामें पूर्णशान्तिकी स्थापना करके अथवा बाधारहित चिरशान्तिके निवासस्थान बनकर समीचीन धर्मकी देशना की है उन श्रीवीर भगवानको मैं सादर प्रणाम करता हूँ। स्थेयाज्जातजयध्वजाऽप्रतिनिधिः प्रोद्भतभरिप्रभुः, प्रध्वस्ताऽखिल-दुर्नय-द्विषदिमः सन्नीतिसामर्थ्यता । सन्मार्गस्त्रिविधः कुमार्ग-मथनोऽहन्वीरनाथः श्रिये, शश्वत संस्तुति-गोचरोऽनघधियां श्रीसत्यवाक्याधिपः ।।
--युक्तयनुशासन-टोकाया, श्रीविद्यानन्दः जो जयध्वज प्राप्त करने वालोंमें अद्वितीय हैं, जिनके महान सामर्थ्य अथवा महती प्रभुताका प्रादुर्भाव हुआहै,जिन्होंने सन्नीतिको–अनेकान्तमय स्याद्वादनीतिकी-सामर्थम संपूर्ण दुनयरूप शत्रुगोंको ध्वस्त कर दिया है-तबाह व बर्बाद कर दिया है--जो त्रिविध सन्मार्गस्वरूप हैं-मम्यग्दर्शन-सम्बरहान-सम्यक्चारित्रकी साक्षात् मूर्ति हैं-जिन्होंने कुमार्गोको मथन कर डाला है, जो मदा कपित भाशयसे रहित सुधीजनोंकी संस्तुतिका विषय बने हुए हैं और श्रीसम्पन सत्यवाक्योंके अधिपति अथवा आगमके स्वामी हैं, वे श्रीवीर प्रभुईन्त भगवान कल्याण के लिये स्थिर रहें-चिरकाल तक लोक-हदयों में निवास करें।