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कार्तिक वीर निर्वाण सं०२४६६]
साहित्य-परिचय और समालोचना
अर्थात् प्रथम वर्षके अनेकान्तकी ६ से १२ पंबेचरदास । अंग्रेजीमें प्रस्तावनाऽनुवादक, प्रो. नम्बर तककी किरणोंमें पं० सुखलालजीके जो ए०बी० प्रायवले, एम०ए०; मूख तथा टोकानुवादक तीन लेख-१ तत्त्वार्थसूत्रके प्रणेता उमास्वाति; २ प्रो० ए० एस० गोपनी, एम० ए०। सम्पादक, उमास्वातिका तत्वार्थसूत्र, ३ तत्वार्थसूत्रके व्याख्या. पं०दलसुख मालवनिया प्रकाशक, सेक्रेटरी भी जैन, कार और व्याख्याएँ, इन शीर्षकों के साथ-गुजरा- श्वेताम्बर एजुकेशन बोर्ड, २० पायधुनी, बम्बई ती संस्करणके परिचय-प्रस्तावनापरसे अनुवादित ३ । पृष्ट संख्या, ४१६ । मूल्य, १० । कर कुछ क्रमभेदके साथ दिये गये थे, वे सब सन्मतितर्क पर पं० सुखलाल और पं० बेचर. इस संस्करणमें उक्त विशेषताके अनुरूप संशोधित दासजीने जो पहले सन् १९३३ में गजराती टीका
और परिवर्तित होकर दिये गये हैं। और इसलिये तथा प्रस्तावना लिखी थी उसीका यह ग्रंथ मूल- . यह दूसरी विशेषता विद्वानोंके सामने कितनी ही कारिकाओं के साथ अंग्रेजी अनुवाद है, जो उक्त नई बातें विचारके लिये प्रस्तुत करती है। पं० दो विद्वानोंसे कराया गया है। साथमें नामादिमुखलालजीकी दृष्टिमें अब तयार्थाधिगमसूत्र विषयक दो उपयोगी Index भी लगाये गये पूर्णरूपसे श्वेताम्बरीय पन्थ है-उमास्वातिक और इस तरह उसके द्वारा अँग्रेजी जाननेवालों के दिगम्बर-श्वेताम्बर-सम्प्रदाय भेदसे भिन्न एक लिये सन्मतितर्कको पढ़ने-पढ़ाने और उसकी तटस्थ विद्वान हानेको और इसीसे दोनों सम्प्रदायों महत्वपूर्ण प्रस्तावना (Introduction) से यथेष्ट द्वारा उनकी इस वृत्तिके अपनाये जानेकी जो लाभ उठानका मार्ग सुगम किया गया है। पं०कल्पना पहले उन्होंने की थी वह अब नहीं रही। सुखलालजी आदिका यह प्रयत्न प्रशंसनीय है। इस इस विशेषताकी कितनी ही बातों पर विशेष विचार ग्रंथके निर्माण तथा प्रकाशन कार्यमें श्रीमती लीलाप्रस्तुत करनकी अपनी इच्छा है, जिसे यथावकाश वती धर्मपत्नी स्व० सेठ देवीदासकानजी बम्बईने वादको कायमें परिणत किया जायगा। ११००) १० की और मास्टर रतनचन्द तलाकचन्द
प्रन्थका यह संस्करण अनेक दृष्टियोंसे महत्व- जीने ३००) रु० की सहायता प्रदान की है। पूर्ण है, हिन्दी-पाठकों के सामने विचारकी प्रचुर (५) श्री प्रात्मानन्दं-जन्मशताब्दि-स्मारकपन्थसामग्री प्रस्तुत करता है, छपाई-सफाई भी इसकी सम्पादक, श्री मोहनलाल दलीचन्द देशाई, एडवो. सुन्दर हुई है और मूल्य १॥) रु० तो प्रचारकी कंट, बम्बई । प्रकाशक, श्री मगनलाल मूलचन्ददृष्टिस कम रक्खा ही गया है, जबकि गुजराती शाह, मन्त्री श्री आत्मानन्द-जन्म-शताब्दि-स्मारक संस्करणका मूल्य २२) २० था। अतः ग्रंथ विद्वानों- समिति, बम्बई । मूल्य, २) १०।। के पढ़ने, विचारने तथा संग्रह करने के योग्य है। यह 'अनेकान्त'-माइजके प्राकारमें अनेका
(४) सन्मतितकं (अंग्रेजी अनुवाद सहित)- नेक लेखोंतयाचित्रोंसे अलंकृत और कपड़ेकी सुन्दर मूलग्रन्थ लेखक, सिद्धसेनाचार्य, मूलगुजराती पुष्टजिल्लसे सुसज्जित कल्याण के विरोपाहों जैसाएक टीकाकार तथा प्रस्तावना लेखक, पं-सुखलालब बहुत बड़ा दलदार प्रन्थ है, जो श्वेताम्बर जैनाचार्य