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अहिंसाधर्म और धार्मिक निर्दयता
लेखक:
श्री चन्द्रशेखर शास्त्री . . Ph., H. I. D. काव्यतीर्थ, साहित्याचार्य,
प्राच्यविद्यावारिधि ।
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त्राब इस बातको सिद्ध करनेकी आवश्य- यह भोजन यंत्रों द्वारा उत्पन्न बिल्कुल निरामिप
- कता नहीं रह गई है. कि प्रत्येक जीव- होगा। इसप्रकार वैज्ञानिक लोग मनुष्य-पशु की रक्षा करना मनुष्यमात्रका कर्तव्य है। मनुष्य और पक्षी सभीके बोझको कम करने के लिये आधुनिक विज्ञानके द्वारा उन्नति करता हुआ बराबर यत्न कर रहे हैं। अपने जीवनको जितना ही अधिकसे अधिक सुखी यद्यपि हम भारतवामी यह दावा करते हैं कि बनाता जाता है, उतना ही पशु-पक्षियोंका भार संसारके सबसे बड़े धर्मोंकी जन्मभूमि भारतवर्ष हल्का होता जाता है । वैज्ञानिक खतीने बैलों और है, किन्तु अत्यन्त दयावान जैन और बौद्ध धर्मोंघोड़ोंके हल चलाने के गुरुतर कार्यको बहुत हल्का की जन्मभूमि होते हुए भी जीवरक्षाके लिये जो कर दिया है। रल, मोटरकार आदि वैज्ञानिक कुछ विदेशोंमें किया जारहा है, भारतमें अभी यानाने बोझ ढोनक कार्यसे अनेक पशुओंको बचा उसकी छाया भी देखनेको नहीं मिलती। हम लिया है । वैज्ञानिक नागोंकी शोधका कार्य अभी ममझते हैं कि विदेशी लोग म्लेच्छ बंडके तक बराबर जारी है । उनको अपनी शोधके निवासी एवं मांसभक्षी होने के कारण हिंमाप्रिय विपयमें बड़ा बड़ी आशाएँ हैं । उनको विश्वास है होते हैं, किन्तु तथ्य इसके बिलकुल विपरीत है। कि एक दिन वे विज्ञानको इतना ऊँचा पहुँचा देंगे इसमें कोई मन्देह नहीं कि यूरोप और अमेरिकाकि संसारका प्रत्येक कार्य बिना हाथ लगाये के अधिकांश निवासी मांसभक्षी हैं, किन्तु वे केवल बिजलीका एक बटन दबानस ही होजाया पशुओंके प्रति इतने निर्दय नहीं हैं। आप उनकी करेगा। भोजनके विषयमें उनको आशा है कि इम मनोवृत्तिपर आश्चर्य करसकते हैं, क्योंकि वह किसी ऐसे भोजनका आविष्कार कर सकेंगे, प्राणघात और दयाका आपसमें कोई मेल नहीं हो जो अत्यन्त अल्पमात्रामें खाए जानेपर भी क्षुधा- सकता । किन्नु पाश्चात्य देशोंमें आजकल निगमिष शान्तिके अतिरिक्त शरीरमें पर्याप्त मात्रामें रक्त भोजन और प्राणियों के प्रति दयाका बड़ा भारी आदि धातुओंको भी उत्पन्न करेगा। तिसपर भी आन्दोलन चल रहा है । जिस प्रकार प्राचीन भार