SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 717
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीरका जीवन चरित्र [लेखक-ज्योतिप्रसाद जैन 'दास'] तो वर्ष हुए मेरे एक अजैन मित्रने मुझसे भगवान् जीवनचरित्र महाराज श्री चौथमलजी द्वारा लिखित था 'महावीरका कोई अच्छासा जीवन चरित्र पढ़नेको भी, परन्तु इस जीवन चरित्रको इन महाशयको मैने नहीं माँगा, परन्तु बहुत दुःखके साथ मैंने यही कहकर टाल दिया। इसका कारण और भगवान महावीरके इस दिया कि 'अच्छा भाई ! बताऊँगा।' यह मेरे मित्र एक श्रादर्श जीवन चरित्रकी समालोचना लिखना ही मेरे अार्यसमाजी हैं और जैनधर्मसे पहिले उन्हें बड़ी चिढ़ इस लेखका विषय है। थी। मेरी अक्सर उनसे धर्मचर्चा हुआ करती थी। दो अब तक भगवान् महावीरके और भी कई जीवनचार जैन धर्म संबन्धी पुस्तकें मैंने उनको दी। एक बार चरित्र मैंने पढ़े हैं, परन्तु जीवनचरित्र संबन्धी मसालेका आगरा राजामण्डीके जैनमन्दिरमें भी मैं इनको लेगया। सर्वथा अभाव देखा। श्री चौथमलजी महाराज-द्वारा मन्दिरके ढंगको देखकर ये महाशय दंग रह गये। लिखित इस मोटी पुस्तकको देखकर मुझे भगवानके प्रतिमानोंके सामने हाथ जोड़कर मुझसे कहने लगे"इस जीवनचरित्र-सम्बन्धी बातें जाननेकी इससे बड़ी प्राशा मनोज्ञताके देखनेकी तो मुझे श्राशा न थी. किसी भी हुई और मैंने बड़ी उत्कण्ठासे पढ़ना शुरू किया । परन्तु मन्दिरमें ऐसी सफ़ाई और शान्ति नहीं देखी।" दूसरे मुझको उसे पढ़कर बड़ी निराशा हुई। दिन प्रातःकाल इन महाशयको मैं लोहामण्डीके जैन महाराजजीके लिखे इस जीवन चरित्रकी समालोस्थानकमें लेगया, जहाँ उस समय एक वृद्ध आर्यिका चना लिखनेसे पहिले मैं श्रापकी भावना और आपके अपने मधुर कण्टसे विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान दे रही थी। उद्योग पर बधाई देता हूँ। श्रापने इस काम पर हाथ मैंने कहा कि यह अापकी पार्यसमाजकी तरह के हमारे डाला जिसके बिना सारा जैनधर्म-साहित्य नीरस बना जैनसमाजका मन्दिर है, जहाँ मूर्तिपूजाका निषेध है हुअा है । मेरा तो विश्वास है कि इसी कमीके ही कारण और जहाँ साधु और साध्वी समय समय पर पधार कर आज जैनधर्मका प्रचार नहीं हो सका है, इसी कमीके धर्म उपदेश इसी प्रकार दिया करते हैं। इन महाशयने कारण जैनधर्मको समझने और समझाने में बड़ी बड़ी उत्तर दिया कि 'संसारके सारे धर्म सम्प्रदायोंको पालो- भूलें हुई हैं। सो ऐसे श्रावश्यक और कठिन कार्य में चनात्मक दृष्टि से देखकर एक सभ्य और निष्पक्ष मनुष्य को उद्योग करनेवालेको बार बार बधाई है । पाठक महोदय ! अापके धर्म और आपकी धर्म-सम्प्रदायोंको उच्च कोटिका मेरे विचारको महागजके प्रति किमी देशके कारण ककहना पड़ेगा।" इन सब बातोंसे उन महाशयको जैन- टाक्ष न समझे । महाराजजी मेरे गुरू हैं, मेरे हृदयमें धर्म पर बड़ी श्रद्धा होगई थी। भगवान महावीरके जीवन उनका श्रादर है । परन्तु इतना अवश्य कहूँगा कि यह चरित्र पढ़नेकी उत्कण्ठा उनकी स्वाभाविक थी । मेरे जीवन चरित्र लिखते समय महागजजीने विचारपूर्वक पास भगवान् महावीरका एक काफी बड़ा और नामी कार्य नहीं किया, धर्मप्रभावनाके आवेशमें उसे लिखा
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy