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अनेकान्त
[ भाद्रपद, वीर-निर्वाण सं० २४६५
धर्ममें अक्लको दखल न देनेके सिद्धान्तने कैसे अनेक धर्मावलम्बी एक ही क्षेत्रमें रहते हैं, इस कारण कैसे धर्म चलाये हैं, कैसा घोर अंधकार फैला है, धर्मके एक दूसरे को अपने अपने ईश्वरके राज्यका द्रोही समझ, नामपर ही दुराचार और पापका केपा भारी डंका नित्य ही आपसमें लड़ते रहते हैं; एक दूसरेके धर्म बनाया है, इसका कुछ दृष्टान्तरूप दिग्दर्शन तो कराया साधनको राजविद्रोह मान एक दूसरेको धर्म साधन जा चुका है। अब पाठक कुछ और भी ध्यान देकर भी नहीं करने देते हैं, जिससे हरवक्त ही लड़ाई झगड़ा सुनलें कि धर्मके विषय में बुद्धिका दखल न होनेकी और कितना फिसाद खड़ा रहता है। गाँव गाँव गली वजहसे सहज ही में यह जो अनेक धर्म पैदा होगये हैं गली और मुहल्ले मुहल्ले आपसमें ऐसा झगड़ा रहनेसे
और पैदा होते रहते हैं, वे सब देशी राज्योंकी तरहसे सबही कामोंमें धक्का पहुँचता है और सुख शान्तिका ही ईश्वरका राज्य कायम करते हैं। फर्क सिर्फ इतना तो ढूंढ़ने पर भी कहीं पता नहीं मिलता है। धर्मों के है कि राजाओंका राज तो एक एक ही देशमें होता है कारण मनुष्य समाजकी ऐसी भयानक दशा हो जानेसे
और ईश्वरका राज्यसंसार भरमें कायम किया जाता है, शान्तिप्रिय अनेक विचारवान पुरुषोंको तो लाचार राजा लोग जिस प्रकार अपने अपने राज्यको जगदेव- होकर धर्मका नाम ही दुनियांसे उठा देना उचित प्रतीत व्यापी करनेके वास्ते आपसमें लड़ते हैं, मनुष्य संहार होने लगा है, जिसके लिये उन्होंने आवाज़ भी उठानी होता है और खूनकी नदियाँ बहती हैं । इस ही प्रकार शुरू करदी है । यद्यपि यह आवाज़ अभी तक बहुत ही एक ही संसारमें अनेक धर्म और उनके अलग अलग धीमी है परन्तु यदि इस प्रशान्तिका कुछ माकूल प्रबंध ईश्वर कायम होजानेसे, इन सब धर्मानुयाइयोंमें अपने न हुआ तो आहिस्ता आहिस्ता इसको उग्ररूप धारण अपने ईश्वरका जगतव्यापी अटल राज्यका यम करनेके करना पड़ेगा और धर्मका नामोनिशान हो दुनियाँसे वास्ते खूब ही घमसान युद्ध होता रहता है। छोटे छोटे उठ जायगा । राजाओंकी लड़ाई में तो खूनकी नदियाँ ही बहती हैं, यद्यपि उसका सहज इलाज यह है कि धर्मोका परन्तु यह धर्म युद्ध तो अनेक धर्मोके द्वारा स्थापित नामोनिशान मिटादेनेके स्थानमें धर्ममें बुद्धि और किये संसारभरके महान राजाधिराज जगत पिता अनेक विचार युक्ति और दलीलको तो कोई दखल हो नहीं है, परमेश्वरोंके बीचमें होता है, हरएक धर्मवालोंका यह इस जहरीले सिद्धान्तको ही उठा दिया जावेऔर हरएक दावा होता है कि हमारा ही परमेश्वर सारे जगतका को इस बातपर मजबूर किया जावे कि अपने अपने मालिक है, उस ही का बनाया हुआ कानून अर्थात् ईश्वरके राज्यको अर्थात् अपने अपने धर्मको शारीरिक धर्मके नियम योग्य हैं, अन्य धर्मवाले जो ईश्वर स्थापित बलसे प्रचार करनेके स्थानमें, शान्तिके साथ युक्ति और करते हैं और जो धर्मके नियम बनाते हैं, वह साक्षात प्रमाण से ही सिद्ध करनेकी कोशिश करें। इस रीतिसे विद्रोह है, गहारी है और राज्य विप्लव है, इस ही जिसका धर्म प्रकाव्य होगा, वस्तु स्वभावके अनुकूल कारण सब ही धर्मवाले आपसमें लड़ते हैं, खून खराबा होगा, वह ही धर्म बिना खून खराबीके फूले फलेगा। करते हैं और नरसंहार करके खूनके समुद्र भरते हैं। और अन्य सब पानीके बुलबुलेकी तरह आपसे आप देशी राज्य तो अलग २ क्षेत्रों में रहते हैं परन्तु यहाँ तो ही समान हो जायेंगे । परन्तु यह बात तो तब ही चल