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ऐतिहासिक अध्ययन
[ -बाबू माईलपाम बी.ए. (पानर्स.) बी. टी.] किसी देशकी राज्यप्रणाली,गमाओं, युद्धों तथा फिर राष्ट्र तथा समाजके संचालक नेता सोच
"सन्धियोंके विवरणको ही इतिहास ममझना, विचारकर सुधार या उन्नतिका ठीक मार्ग बता सइतिहासका बहुत ही सीमित तथा मंकुचित अर्थ कते हैं और मनुष्यजातिका कल्याण कर सकते हैं । लेना है और अपने लिये ज्ञानके साधनोंको कम ऐतिहासिक अध्ययन जितना आवश्यक है, करना है। जनता-मम्बंधी हरएक पान्दोलनका उतना ही कठिन है। यह काम साधारण जनता ज़िकर भी इतिहाममें होना चाहिये । धार्मिक या मामूली शिक्षितोंका नहीं है । अवकाश-हीन सामाजिक, श्रौद्यौगिक, साहित्यिक परिवर्तनोंका तथा बहुधंधी विद्वान भी यह काम नहीं कर सकते। भी इतिहासमें समावेश होता है। इसके अतिरिक्त यह काम विशेषज्ञों, ऐतहासिकों और अन्वेषकों खोज करने पर भिन्न भिन्न पद्धतियों, विद्याओं, ( Research Scholars) का है। यह काम ममय, विज्ञानों, कलाओं तथा रीति-रिवाओंके भी इनि- संलग्नता, धैव, निश्चलता, सामग्रीसंग्रह तथा हाम लिखे जाते हैं, और उनके अध्ययनसे यह Reference Books चाहता है। चूंकि यह काम बात साफ तौरसे समझमें आजाती है कि वे किन राष्ट्र तथा समाजके वास्ते अन्य बड़े कामकि ममान किन अवस्थाओंमें से गुजरे हैं, उनका किस प्रकार आवश्यक और उपयोगी है, इसलिए ऐतिहासिक विकास हुआ है और किन किन कारणों या अध्ययनको प्रोत्साहन देना, उसके लिए साधन परिस्थितियोंकी वजहसे उनमें परिवर्तन, उन्नति या जुटाना तथा ऐसा काम करनेवालोंके लिए सुभीते अवनति हुई है । इस प्रकारके मध्ययनसे प्राचीन पैदा करना समाजका परम कर्तव्य है। कालका ठीक शान होजाता है। वर्तमानकी शिक्षितों तथा साधारण जनता को भी अपने कठिनाइयोंको दूर करनेका मार्ग और भविष्यकं नित्यक स्वाध्याय या पठन-पाठनमें ऐतिहासिक लिये सुमार्ग मिल जाता है।
अध्ययनकी तरफ लक्ष्य रखना चाहिए और इस इसी प्रकारके अध्ययनको ऐतिहासिक अध्ययन ___ तरफ अपनी रुचि तथा उत्सुकता बढ़ानी चाहिए। कहा जाता है। स्थितिपालकता, परम्परावाद और किसी विषयका अध्ययन करते समय इस प्रकारके मढ़िवादका बड़ा कारण इतिहासका ज्ञान न होना प्रश्न करने चाहिएं:-यह बात इस रूपमें कब
और यह भ्रमपर्ण विचार है कि जो कुछ ज्ञान, हुई ? ऐसा रूप क्यों हुआ? इससे पहिले क्या विज्ञान, कला, पद्धति, रीति-रिवाज आज जारी हैं रूप था? उस परिवर्तनका प्रभाव अच्छा हुमा वे अनादिकालस बिना परिवतनके ज्यूक त्यं चले या बरा? वह परिवर्तन कितने क्षेत्रमा होमका ?
आते हैं और उनमें परिवर्तन करना दुःमाहस है। वर्तमान रूप ठीक है या उसमें किसी परिवर्तनकी इससे बड़ी किसी अहितकर भूलका शिकार होना आवश्यकता है ? उसमें क्या परिवर्तन किया जाय मनुन्यजातिके वास्ते कठिन है । इससे हम अपनी तथा कैसे किया जाय ? क्या वह परिवर्तन जनता ही हानि कर रहे हैं। इस हानिको रोकने क्या प्रासानीस प्रहण करेगी या कुछ समयके बाद? भ्रमको दूर करनेका एकमात्र साधन एतिहासिक मादि। अध्ययन ही है।
ऐतिहासिक अध्ययनके समान ही उपयोगी ऐतिहासिक अध्ययनसे ही भिन्न-भिन्न परि. तुलनात्मक अध्ययन ( Comparative study ) स्थितियां, उनके प्रभाव, परिवर्तनोंका रूप तथा और विश्लेषणात्मक अध्ययन ( Analyticial उनके हानि-लाभ आदि समझमें आसकते हैं और study ) है।