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अनेकान्त
[प्रथम श्रावण, वीरनिर्वाण सं० २४६५
इस संस्थाकी चप्पा-चप्पा जमीन और एक एक सुदृढ है । इसलिए यह आवश्यक है कि वीरसेवाईट इन महान आदर्शोंकी विद्युतधाराएँ प्रवाहित मन्दिर सरसावेका काम सुचारू रूपसे भविष्यमें करती हैं । अपने तन-मन-धन तथा सर्वस्वको मु- चलता रहे तथा उसके संस्थापकका उद्देश्य पूरा ख्तारजीने इस मंस्थाकी स्थापना तथा संचालनमें होकर जैनसमाजकी सेवा होती रहे । मुख्तार लगा दिया है। जैन समाज पर उनका यह कितना साहबके मित्रों तथा वीरसेवामन्दिरके हितचिंतक बड़ा ऋण तथा उपकार है इमको आज भले ही का कुछ लक्ष्य इधर है, यही संतोषकी बात है । कोई न समझ सके, पर भविष्यके इतिहासकार एक समाजके विद्वानोंका कर्तव्य है कि वे इस संस्थामें म्वरस इसकी प्रशंसा किये बिना न रहेंगे। इससे स्वयं दिलचस्पी ले, समाजको इसका महत्व तथा अधिक यहाँ और कुछ लिखना अनुचित समझा उपयोग समझावें और इसकी हर प्रकारसे सहायता जामकता है।
कराएँ। वीरसेवामन्दिर सरमावामें इस समय ग्रन्थ- सहायताके रूप निम्न लिखित हो सकते हैं:मंग्रह, ग्रंथ-सम्पादन, अनेकान्त (पत्र) सम्पादन, (१) प्राचीन तथा नवीन ग्रन्थ भेंट करना। ग्रन्थ-प्रकाशन, कन्या-विद्यालय-संचालन और (२) ऐतिहासिक तथा साहित्यिक पत्र भेंट अनुसंधान तथा ग्रन्थनिर्माणादिका काम हो रहा करना। है । दो-चार विद्वान जो वहाँ काम कर रहे हैं, (३) पुगतत्व सम्बन्धी सरकारी रिपोर्ट दान परोक्ष रूपमे उनकी इन कामों में ट्रेनिंग भी होरही करना । है । कन्या पाठशाला तथा औषधालयके काम स्था- (४) ग्रंथोंको रखने के लिए अल्मारियां और नीय उपयोगके हैं। परन्तु बाकी के मब काम समत यदि होसके तो महत्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थोंके लिए जैन-समाजके उपयोग के लिए है, और इसप्रकार वाटरप्रफ तथा फायरप्रफ अल्मारियाँ देना। वीरसेवामन्दिर तमाम जैनसमाजकी सेवा कर रहा (५) अनेकान्तके ग्राहक बनाना तथा उसमें है। यदि यह कहा जाय कि रूपान्तरसे वीरसेवामन्दिर भारतवर्षकी सेवा कर रहा है तो कोई (६) सेवामन्दिरमें दस-बीस विद्वानोंके रहनेअतिशयोक्ति न होगी।
की व्यवस्था करना। ऊपर लिखे सब काम ठोस हैं। उनसे जैन (७) विद्वानों के रहने आदिके लिये कुछ कार्टर्स साहित्यकी रक्षा होगी, जैनसिद्धान्तोंका प्रकाशन ( मकान ) बनवा देना। होगा और जैनइतिहासके निर्माणमें सहायता (८) अपनी सेवाएँ तथा समय देना। मिलेगी, साथ ही जैनधर्म, जैनसाहित्य तथा जैन (९) खर्चके लिए अच्छी आर्थिक सहायता इतिहासके विपयमें जो भ्रम फैले हुए हैं वे दूर प्रदान करना और कराना। होंगे और इनका सञ्चा स्वरूप जनता तथा विद्वानों- (१०) कन्या विद्यालयके लिये सुयोग्य अध्या. के सामने आएगा । यह काम कुछ कम महत्वका पकाओं तथा संरक्षिकाओंका ऐसा सम नहीं है।
करना जिससे बाहरकी कन्याएँ भी भर्ती होकर ___ कामको देखते हुए संस्थाका भविष्य उज्ज्वल यथेष्ट विद्या लाभ कर सकें। होना ही चाहिए । परन्तु जैनसमाजमें प्रायः आशा है जैनसमाज इस ओर ध्यान देगा अच्छीसे अच्छी संस्थाके बारेमें भी यह नहीं कहा और इस प्रकारकी संस्थाओंकी आवश्यकता तथा जासकता कि वह सुरक्षित है और उसकी नींव उपयोगिताको समझकर उनको जरूर अपनाएगा।