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________________ ५७६ अनेकान्त [प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाण सं०२४६५ कंदमूलको किसी रीतिसे निर्जीव करके खा सकता नहीं करसकता है और न करा सकता है। हाँ, उसहै और न पांचवीं प्रतिमावाला किसी भी प्रकारकी के लिये नहीं किन्तु अन्य किसी कारणसे प्रासुक बनस्पतिको नर्जीव करके खा सकता है । वह न हुई जो वनस्पति उनको मिल जायगी उसको जरूर अपने खानेके वास्ते ही निर्जीव कर सकता है और खासकता है। सचित्त त्यागी आवकके विषयमें न किसी दूसरेके खानेके वास्ते ही, उसे तो हिंसासे रत्नकरंड श्रावकाचारमें लिखा हैबचना है तब वह स्वयं हिंसा कैसे कर सकता है ? मूलफलशाकशाखाकरीर कन्दप्रसून बीनानि । हाँ, यदि किसी दूसरेने खास उसके वास्ते नहीं नामानियोऽसिसोऽयं सचित्त विरतो दयामूर्ति ॥४१ किन्तु अन्य किसी कारणसे किसी बनस्पतिको अर्थात्-जो कच्चे मूल, फल, शाक, शाखी, ऊपर लिखी हुई किसी भी विधीसे निर्जीव करके करीर, कन्द, फूल और बीज नहीं खाता है वह अचित कर रखा है तो उस अचित की हुई बनस्पति- दयाकी मूर्ति सचित्त त्यागी है। को यह त्यागीभीखासकताहै,क्योंकि उसके निर्जीव इसमें दयाकी मूर्ति शब्द खास ध्यान देने योग्य करनेमें इसका कुछ भी वास्ता नहीं पाया है। इस हैं-क्या स्वयं अपने हाथसे बनस्पतिको काटकाटकारण यह उसके निर्जीव करनेका दोषी नहीं हो कर, सुखाकर निर्जीव करनेवाला दयाकी मूर्ति होसकता है। दृष्टान्तरूपमें गृहस्थ अपनी गाड़ी व खेती सकता है ? हरगिज नहीं, कदापि नहीं। श्रादिके लिये बैल रखता है; परन्तु बधिया बैल ही अष्टमी चतुर्दशीका पर्व उसके कामका होसकता है, सांड किसी प्रकार भी उसके काम नहीं पासकता है, तो भी सद्गृहस्थी अब रही अष्टमी और चतुर्दशी इन दो पोंकी श्रावक इतना निर्दयी नहीं होसकता है कि स्वयं बात, दूसरी प्रतिमाधारी अणुव्रती श्रावक पाँचों किसी बैलको बधिया करै वा बधिया करावै । हाँ, अणुव्रत धारण करनेके बाद इन ब्रतोंको बढ़ाने के बधिया करा कराया बैल जब बिकने आता है तो वास्ते दिग्वत, अनर्थ दंड त्यागवत और भोगोपवह जरूर खरीद लेता है। यह ही बात साग सब्जी भोग परिमाणवत नामके तीन गुणव्रत धारण करता के वास्ते भी लागू होती है । भोगोपभोग परिमाण है, इसके बाद वह मुनि-धर्मका अभ्यास करनेके प्रती भावक जिसको कन्दमूल आदि अतन्तकाय वास्ते सामायिक, देशावकाशिक प्रोषधोपवास और वनस्पतिके भक्षणका त्याग होता है, वह भी किसी अतिथिसंविभाग नामके चार शिक्षाबत ग्रहण कन्दमूलको किसी भी प्रकारसे निर्जीव नहीं कर करके, महिनेमें चार दिन ऐसे निकाल लेता है सकता है और न करा सकता है, हाँ, सूखी हुई जिनमें वह संसारके सब ही कार्योंसे विरक्त होकर सुंठ, हलदी भादिको भी प्रासुक किया हुमा कंद- और सब ही प्रकारका प्रारम्भ छोड़कर यहां तक मूल बाजार में बिकता हुभा मिलता है उसको जरूर कि खाना, पीना, नहाना, धोना आदि भी त्यागकर खरीद कर खा सकता है, इस दो प्रकार पांचवीं एकमात्र धर्म सेवनमें ही लगा रहै। ये चार दिन प्रविमाधारी भाषक भी किसी बनस्पतिको निर्जीव प्रत्येक पक्षकी अष्टमी चतुर्दशीके रूपमें नियत कीर
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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