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________________ Panoramicharsional | सामाजिक . प्रगति जैनसमाज किधरको ? बामाईक्वाखजी जैन बी.ए.(मॉनस) बी.टी - PORANA दिशासूचक यंत्र (कम्पास) है तो छोटी-सी उसकी दशा एक ऐसे जहाज जैसी है जो चला तो वस्तु, पर है बड़े कामकी। बड़े-बड़े जहाज था ठीक मार्ग पर--निश्चित ध्येय लेकर, पर अब कुशलसे कुशल कप्तानके होते हुए भी अपना मार्ग मार्ग भूला हुआ उद्देश्य भृष्ट हो गया है । उसके बिना कम्पासके तय नहीं कर सकते । कम्पासके तीनों सम्प्रदाय अपनेको एक जहाजके सवार नहीं, बिना एक कप्तान यह भी नहीं जान सकता कि बल्कि तीन भिन्न भिन्न जहाजोंके सवार समझते उसका जहाज किस तरफ जारहा है। हैं। उसके नेताओंको अपना मार्ग मालम नहीं, राष्ट्र तथा समाज भी जहाजके समान हैं। और उद्देश्य मालूम नहीं और उनमेंसे अधिक आपसमें उनके नेताओंको भी यह जाननेकी जरूरत रहती तू-तू मैं-मैं करके झगड़ना ही अपना काम समझते है कि वे किधर जारहे हैं और क्या वे ठीक मार्ग हैं। जैनसमाजके साधारण-जन तो अपनी तीन पर हैं। लोकसे मथरा न्यारी बसाए हुए हैं। वे अपने ___ जैनसमाज किधर जारहा है, क्या यह प्रश्न काम-धन्धे, पेट-पालन और रुपया-पैसा कमानेमें जैनसमाजके सामने कभी विशेष रूपसे गहरे इतने व्यस्त हैं कि उनको इस बातका ज़रा भी विचारके वास्ते पाया है ? क्या जैनसमाजरूपी फिकर नहीं कि समाजमें क्या होरहा है, देशमें क्या जहाजके नाविक नेताओं या जैमसमामके सदस्यों होरहा है, और उनके सामने खाई है या कुआ ! ने कुछ भी समय यह सोचनेमें लगाया है कि वे उनकी आँखोंके सामने पास-पड़ोस में हजारों भाई किधर जारहे हैं ? उनका उद्देश्य क्या है और अब सामाजिक तथा आर्थिक कठिनाईयोंके पहाड़ोंसे वे उससे कितनी दूर हैं ! यह प्रश्न जैनसमाजके टकराकर चकनाचूर होरहे हैं, उन पर मारें पड़ किसी एक दल या सम्प्रदायसे ही सम्बन्ध नहीं रही हैं तथा उनका तिरस्कार होरहा है और फिर रखता, बल्कि ऐसा प्रश्न है जिसपर समाजके हर- भी उनको जरा चिंता नहीं, वे टससे मस नहीं एकादमी-सी और पुरुष-को विचार करना होते । कहते हैं कि जब कबूतर पर मापत्ति आती चाहिए और जिसके ठीक हल पर ही समाजका है तब वह अपनी आँखें बन्द कर लेता है और कल्याण निर्भर है। समझता है कि उसकी मुसीबत टल गई। मगर जैनसमाज किधर जारहा है ?--इस प्रश्नका एक ही समय बाद वह अपने आपको विपत्तिके उत्तर जब मैं सोचता हूँ तब मुझे बहुत दुःख होता चुंगल में फंसा हुमा सर्वनाशके मुखमें पाता है। है। जैनसमाजकी दशा अत्यन्त शोचनीय है। ठीक यही हालत जैनसमाजकी है। मेरे एक गहरे
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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