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________________ ५५४ अनेकान्त [प्रथम श्रावण, वीर-निर्वाण सं० २४६५ का पुत्र है और था' इस बातको भी यदि किमी उसी कायामें दाखिल किया हो तो यह होना संभव रूपकके तौर पर विचार करें तो ही यह कदाचिन नहीं है, और यदि ऐमा हो तो फिर कर्म आदिकी ठीक बैठ सकती है, नहीं तो यह प्रत्यक्ष प्रमाणसे व्यवस्था भी निष्फल ही हो जाय । बाकी योग बाधित है । मुक्त ईश्वरके पुत्र हो, यह किस तरह आदिकी मिद्धिसे बहुतसे चमत्कार उत्पन्न माना जा सकता है? और यदि मानें भी तो उसकी होते हैं; और उम प्रकारके बहुतसे चमत्कार उत्पत्ति किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं ? यदि ईमाको हुए हों मो यह मर्वथा मिथ्या है, अथवा दोनोंको अनादि मानें तो उनका पिता पुत्र संबंध असंभव है, ऐमा नहीं कह सकते । उस तरहकी किस तरह ठीक बैठ सकता है ? इत्यादि बाने सिद्धियाँ आत्माके ऐश्वर्य के सामने अल्प हैंविचारणीय हैं । जिनके विचार करनेसे मुझे ऐमा श्रात्माके ऐश्वर्यका महत्व इससे अनन्त गुना है । लगता है कि वह बात यथायोग्य नहीं मालूम हो इस विषयमें ममागम होने पर पूंछना योग्य है। मकती। १७. प्रश्न:- आगे चलकर कौनसा जन्म - १५. प्रश्न:-पुराने करारमें जो भविष्य कहा होगा, क्या इस बातकी इस भवमें खबर पड़ गया है, क्या वह मब ईमाके विषयमें ठीक ठीक मकती है ? अथवा पूर्वमें कौनमा जन्म था इमकी उतरा है ? कुछ खबर प - उत्तर:-यदि ऐसा हो तो भी उससे उनदोनों उत्तरः-हाँ, यह हो सकता है। जिसे निर्मल शारोंके विषयमें विचार करना योग्य है । तथा इम ज्ञान होगया हो उसे वैसा होना संभव है । जैसे प्रकारका भविष्य भी ईसाको ईश्वरावतार कहनेमें बादल।इत्यादिके चित्रोंके ऊपरसे बरसातका अनुमान प्रबल प्रमाण नहीं है, क्योंकि ज्योतिष आदिसे भी होता है, वैसे ही इस जीवकी इस भवकी चेष्टाके महात्माकी उत्पत्ति जानी जा सकती है। अथवा ऊपरसे उमके पूर्व कारण कैसे होने चाहिएँ, यह भी भने ही किसी ज्ञानसे वह बात कही हो, परन्तु वह समझमें आ सकता है-चाहे थोड़े ही अंशोसे भविष्य वेत्ता सम्पूर्ण मोक्ष-मार्गका जानने वाला था समझ पाये । इसी तरह वह चेष्टा भविष्यमें यह बात जब तक ठीक ठीक प्रमाणभृत न हो, तब किम परिमाणको प्राप्त करेगी, यह भी उसके तक वह भविष्य वगैरह केवल एक श्रद्धा ग्राह्य प्रमाण स्वरूपके ऊपरसे जाना जामकता है, और उसके ही हैं, और वह दूसरे प्रमाणोंसे बाधिन न हो, यह विशेष विचार करने पर भविष्यमें किम भवका बुद्धिमें नहीं पा सकता। होना संभव है, तथा पूर्वमें कौनसा भव था, यह . १६. प्रश्न:-म प्रश्नमें 'ईमामसीह के चम. भी अच्छी तरह विचारमें आ सकता है ।। कारके विषयमें लिखा है। १८. प्रश्नः-दूसरे भवकी खबर किसे पड़ उत्तर:-जो जीव कायामेंसे सर्वथा निकलकर सकती है ? चला गया है, उसी जीवको यदि उसी कायामें उत्तर:-इस प्रश्नका उत्तर ऊपर प्राचुका है। दाखिल किया गया हो अथवा यदि दूसरे जीवको ?.. जिन मोक्ष प्राप्त पुरुषोंके नामका पाप
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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