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________________ जैन-दृष्टिसे प्राचीन सिन्ध [ लेखक-मुनि श्री विद्याविजयजी ] जैनधर्मके प्रचारका मुख्य आधार जैनसाधुओंके और गढ्डा रोडसे लगभग ७०-८० मील दूर, ऊपर निर्भर है । सदा पैदल भ्रमण करना, गौडी मंदिर नामका एक गाँव है । इस समय वहाँ सब तरहकी सवारीसे मुक्त रहना, सांसारिक सिर्फ भीलोंकी ही बस्ती है। शिखरबन्द गोडीजीप्रलोभनोंसे दूर रहना, रूखा सूखा जो कुछ का मंदिर है । मूर्ति आदि कुछ नहीं है। मंदिर मिला उससे संतष्ट रहना. स्त्रियोंके संसर्गसे जीर्ण शीर्ण हो गया है। सरकारने उसकी मरम्मत अलग रहना, इत्यादि अनेक तरहके कड़े नियम कराई है। आजसे बीस वर्ष पहले नगर ठट्टाके होने पर भी, प्राचीन समयसे लेकर आज तक असिस्टेण्ट इन्जीनीयर श्रीयुत फतेहचंदजी बी इदजैनसाधुओंने विकटसे विकट और भंयकरसे नाणी वहाँ जाकर खुद देख आए थे। और सरभंयकर अटवियाँ. पर्वत. नदी, नाले और रेगि- कारी हुक्मसे उसमें क्या ठीक-ठाक करना जरूरी स्तानोंका उल्लंघन कर दूर दूरके देशों तक बिहार है, उसका इस्टीमेट तैयार कर आये थे। मंदिरके किया है और करते हैं । सिन्ध देशमें भी किसी पास एक भूमि-गृह है । उसमें उतरनेकी उन्होंने समय जैनधर्मकी पताका पूर्ण जोशमें फहरा रही कोशिसकी थी, लेकिन भीलोंके भय दिखलानेसे थी। संसार वन्ध जैनाचार्योंसे यह भूमि पावन वे रुक गए । गोडीजीके मंदिरके कोट आदिके बनती थी। सिन्ध देशमें किसी समय ५०० जैन पत्थर उमरकोटमें एक सरकारी बंगलेके वरण्डे मंदिर थे, ऐसा भी उल्लेख मिलता है । मुसलमानों आदिमें लगाये गये हैं। के राजत्व कालमें भी इस देशमें जैन साधुओंने सत्तरहवीं शताब्दिके बने हुए एक स्तवनमें सूश्राकर राजाओं पर अपने चारित्रकी छाप डाली रतसे एक संघ निकलनेका वर्णन है। संघ अहमदाथी। जैनधर्मके पालने वाले श्रीमन्तोंने जैनधर्मकी बाद, आबू, संखेश्वर, और राधनपुर होकर सोई, प्रभावनाके अनेक कार्य किये थे, ऐसा जैन- जो कि सिन्धमें प्रवेश करनेके लिये गुजरातके इतिहाससे साबित होता है। नाके पर है-वहाँसे रण उत्तर कर सिन्धमें जा शायद ही किसीको मालूम होगा कि आज रहा था। लेकिन वहाँसे आगे बढना दुष्कर गोडी पार्श्वनाथके नामसे जो प्रसिद्धि हो रही है, मालूम होने से वहीं ठहर कर उसने गोडीजीकी उस गोडीजीका मुख्य स्थान सिन्धमें ही था, भावपूर्वक स्तुति की । गोडीजी महाराजने संघको और है। नगरपारकरसे लगभग ५० मील दूर दर्शन दिया । संघ बड़ा प्रसन्न हुआ । चार दिन
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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