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अनेकान्त
[वैशाख, वीर-निर्वाण सं०२४६५
- प्रतिमा है । नेमिनाथके चैत्यमें बहुत-सी रत्न विनुरिसे फिर हुंबसि' आये, जहाँ पार्श्वनाथ और : प्रतिमायें हैं। नाभिमल्हार (ऋषभदेव) की चौमुखी मूर्ति पद्मावती देवी है। वहाँ आसपास अनेक सर्प फिरते रहते
हैं पर किसीका पराभव नहीं करते। ऐसे महिमाधाम और आगे वरांग ग्राममें नेमिकुमारका 'मन्दिर है और वांछित-काम स्थानकी पूजा की। । पर्वतपर साठ मन्दिर हैं । इस तरह तुलुव देशका फिर लिखा है कि चित्रगढ़, बनोसीगाँव' और वर्णन श्राहादपूर्वक किया।
पवित्र स्थान बंकापुर देखा,जो मनोहर और विस्मयवन्त आगे लिखा है कि सागर और मलयाचलके बीच- -
१हूमच पद्मावती तीर्थ शिमोगा जिलेमें है और में जैन-राज्य है। वहाँ जिनवरकी झांकीका प्रसार है।
तीर्थलीसे १८ मील दूर है । यहाँ भट्टारककी गद्दी है। और कितना वर्णन करूँ ? वहाँसे पीछे लौटकर फिर
यह जैनमठ आठवीं शताब्दीके लगभग स्थापित हुआ कर्नाटकमें' आया, घाट चढ़कर विनुरि श्राया, जहाँ
बताया जाता है । इस मठके अधिकारी बड़े-बड़े रानी राज्य करती है जिसके नौ लाख सिपाही हैं -
विद्वान् हो गये हैं। पद्मावतीदेवीकी बहुत महिमा विनुरिमें दो सुन्दर मन्दिरोंकी बन्दना की।
बंतलाई जाती है। __ मद्रास-मैसूरके जैन-स्मारकके अनुसार कार- २ मैसूर राज्यके उत्तरमें चित्तल दुर्ग नामका एक कलमें चौमुखा मन्दिर छोटी पहाड़ी पर है जिसे शक जिला है । चित्रगढ़ शायद यही होगा । यहाँ होयसंवत् १५०८ में वेंगीनगरके राजा इम्मदि भैरवने साल राजवंशकी राजधानी रही है । गढ़ और दुर्ग बनवाया था।
पर्यायवाची हैं, इसलिए चित्तलदुर्गको चत्तलगढ़ या कारकलसे तीर्थली जाते हुए वरांग ग्राम चित्रगढ़ कहा जा सकता है। . पड़ता है। वहाँ विशाल मन्दिर है । इसके पास ३ बनौसी सायद वनबासीका अपभ्रंश हो । उत्तर
जंगल और बड़े बड़े पहाड़ हैं । इन पहाड़ों से ही कनाडा जिलेकी पूर्व सीमापर वनबासी नामका एक किसीपर उस समय साठ मन्दिर रहें होंगे। गाँव है। इस समय इसकी जनसंख्या दो हजारके
१ वेएरके पास कोई घाट नहीं है, संभव है गंग- • लगभग है । परन्तु पूर्वकालमें बहुत बड़ा नगर था वाड़िके पास यात्रीने घाट चढ़ा हो।
और वनबास देशकी राजधानी था। १३ वीं शताब्दी २विनुरि अर्थात् बेलूर । यह मृडबद्रीसे १२ तक यहाँ कदम्ब बंशकी राजधानी रही है। यहाँके और कारकलसे २४ मील दूर है । यहाँ गोम्मर. एक जैनमन्दिरमें दूसरीसे बारहवीं शताब्दी तकके स्वामीकी २५ हाथ ऊँची मूर्ति है जिसका निर्माण शिलालेख हैं । वि०सं०१६६० में हुआ था । यह स्थान गुरुयुर नदीके धारवाड़ जिलेका एक कस्बा है । भगक्द्गु णकिनारे पर है।
भद्राचार्यने अपना उत्तरपुराण इसी बंकापुरमें समाप्त धेयरमें सन् १९८३ से १७२१ तक अजिलवंश किया था । उस समय यह वनबास देशकी राजधानी की रानी पदुमलादेवीका राज्य था, जो जैन थी। नौ था और राष्ट्रकूट-नरेश अकालवर्षका सामन्त लोकालाल सेनाकी बात अतिशयोक्ति है।
दित्य यहाँ राज्य करता था । राष्ट्रकूट महाराज अमोघ