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________________ . A.--. -" IITMIA नीति-विरोध-ध्वंसी लोक व्यवहार-वर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ वर्ष २ सम्पादन-स्थान-बीर-सेवामन्दिर (ममन्तभद्राश्रम) सरसावा, जि.सहारनपुर प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० ब० नं०४८, न्य देहली बैशाख शुक्ल, वीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं०१६६६ किरण समन्तभद्रादिमहाकवीश्वरैः कृतप्रबन्धोज्वलसत्सरोवरे । लसिद्रसालंकृति-नीरपङ्कजं सरस्वती क्रीडति भाववन्धुरे ॥ . -शृंगारचन्द्रिकाया, विजयवर्णी महाकवीश्वर श्रीसमन्तभद्र-द्वारा प्रणयन किये गये प्रबन्धसमूह (वाङमय)रूपी उस उज्वल सत्सरो-५ वरमें, जो रसरूप जल तथा अलंकाररूप कमलोंसे सुशोभित है और जहाँ भावरूपी हंस विचरते हैं, सरस्वती क्रीड़ा । करती है- अर्थात्, स्वामी समन्तभद्र के ग्रन्थ रस तथा अलंकारोंसे सुमज्जित हैं, सद्भावाँसे परिपूर्ण है और सरस्वतीदेवीके क्रीडास्थल हैं-विद्यादेवी उनमें बिना सकिी रोक-टोक के स्वच्छन्द विचरती है और वे उसके शानभण्डार हैं । इसीसे महाकवि श्री यादीभसिंहमूरिने, गद्यचिन्तामणिमें, समन्तभद्रका "सरस्वती-स्वर-विहारममयः" विशेषणके साथ स्मरण किया है। स्वामिनश्वरितं तस्य कस्य नो विस्मयावहं । देवागमेन सर्वज्ञो येनाधापि प्रदर्श्यते ॥ -पार्श्वनाथचरिते, वादिराजसूरिः उन स्वामी (समन्तभद्र) का चरित्र किसके लिये विस्मयकारक-श्राश्चर्यजनक नहीं है, जिन्होंने 'देवागम' नामके अपने प्रवचन-द्वारा आज भी सर्वशको प्रदर्शित कर रखा है। सभीके लिये विस्मयकारक हैनिःसन्देह, समन्तभद्रका 'देवागम' नामका प्रवचन जैनसाहित्यमें एक अद्वितीय एवं वेजोड़ रचना है और उसके द्वारा जिनेन्द्रदेवका भागम भले प्रकार लोकमें व्यक्त हो रहा है। इसीसे शुभचन्द्राचार्यने, अपने पाण्डवपुराणमें
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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