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अनेकान्त
(२७) श्री. पं० पन्नालालजी साहित्याचार्य, सागर :" 'अनेकान्त' का नववर्षाङ्क प्राप्त हुआ । ललई हुई खोंसे उसे पढ़ा-खूब पढ़ा । सभी लेख सारभूत हैं । प्रसन्नताकी बात है कि अंकका कलेवर व्यर्थ के बकबादसे बर्जित है । आपने सम्पादकका भार लेकर जैन समाज पर जो अनग्रह किया है उसकी मैं स्तुति करता हूं। और यह भी लिखता हूँ कि आप समाज के पंडितोंको जो बहुत कुछ लिख सकते हैं, पर उपेक्षामें निमग्न हैं, कुछ लिखवानेका प्रयत्न करेंगे ।”
(२८) श्री. पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य, बीनाः
"मेरी उत्कट अभिलाषा है कि मैं 'अनेकान्त' का इसी रूपमें सतत् दर्शन करता जाऊं और इस महत्वपूर्ण पत्रकी कितनी ही सेवा करके अपने को धन्य समझं ।”
"कान्त" अपने नाम के अनुरूप जैन सिद्धान्तका प्रकाशक हो और यदि मैं आगे न बढं ू तो भी इसके जरिये अनेकान्तवादी जैनियों का व्यावहारिक जीवन न केवल समुन्नत हो बल्कि आदर्शताका नमूना हो । इस के विषयमें यह मेरी आन्तरिक भावना है। इसका भविष्य सुन्दर है ऐसा मेरा दृढ विश्वास है ।"
[फाल्गुन, वीर निर्माण सं० २४६५
समाजोन्नतिकी साधन सामग्रीको लेकर उदित हुई है वह अवश्य ही इसके उज्वल भविष्यकी सूचक है। हमारा दृढ विश्वास है कि 'अनेकान्त'दी विविध रश्मियां अवश्य ही मिथ्याभिषिक्त आत्माओं के हृत्पटलांकित मिथ्यातमको पूर्ववत् श्रपसारित करनेमें समर्थ होंगी। हम 'अनेकान्त' का हृदय अभिनन्दन करते हैं और भावना भाते हैं। 'अनेकान्त' अपनी अनेकान्तमयनीति से अनेकान का प्रबल प्रचार करने में हमारा सहायक होगा" ।
"ठ वर्षकी लम्बी प्रतीक्षा के बाद 'अनेकान्त' सूर्य के दर्शन पाकर हृत्पद्म विकसित हुआ । वर्षकी प्रथम किरण ही जिस प्रकारकी ऐतिहासिक और
(३०)श्री.कल्याण कुमारजी जैन 'शशि' रामपुरस्टेट
"हमारी समाजमें यही एक ऐसा पत्र है जि हिम्मत के साथ जैनेतरोंके हाथमें दिया जा सक है । पत्रमें समस्त सामग्री नामकी अपेक्षा कम दृष्टिकोणसे दी गई है । संकलन अभूतपूर्व छपाई, सफाई, ढंग इत्यादि सब गेट अप उत्तम अनेकान्त प्रत्येक दृष्टिसे सर्वाङ्ग सुन्दर है । "
(३१) प्रोफेसर आर. डी. लड्ड ू, एम. ए., परशुरा भाउ कालिज पूना :
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"By this elegant literary magazine you have really done great service to Jainisma. It fills a longfelt lacuna in field of Indology, and I trust that (२६) श्री पं० गोविन्दराय जैन शास्त्री, न्यायतीर्थ it will redound to the study of Jain culture. My heartfelt congratulations कोडरमा :to you on the pious and genuine zeal you have shown in rejuvenating a worthy journal though after a long interval"