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________________ ३१६ अनेकान्स [फाल्गुण, वीर-निर्वाण सं. २४६५ ऐसा सहज विश्वास देखकर भंगी, चमार आदि और ग लाम बने । साथही यह भी बतला देना चाहते महा पतित जातियों के चालाक लोगोंने भी अपनी टूटी- हैं कि बच्चोंकी बीमारी में योग्य डाक्टरोंसे औषधि कराने फूटी भापामें अनेक मन्त्र घड़ लिए और उन मन्त्रोंके वाले अंग्रेज़ोंके हज़ार बच्चोंमें से चालीस मरते हैं और द्वारा अपनी आतिके मूर्ख लोगोंके कारज सिद्ध करने ब्रह्मज्ञानियोंके बीज मन्त्रों, मुसलमानोंके गडे ताबीज़ों, शुरू करदिये ! जब इन मूर्ख लोगोंके द्वारा ऊँची जाति- अनपढ़ गँवारोके मन्त्रों और भङ्गी चमारोंकी झाड़-फूक की मूर्ख स्त्रियोंको भी भङ्गी चामारोंके मन्त्रोंका बल का सहारा लेने वाले हिन्दुस्तानियोंके हज़ार में से चारसौ सुनाई दिया तो वे भी अपने बच्चोंकी बीमारी आदिमें बच्चे मर जाते हैं। अब आपही विचार करलें कि मूढ़इन लोगोंको बुलाने लग गई । "फुरे-मन्त्र बाचा गुरूका- मति बनकर आप अपना संसार चला रहे हैं वा अमूढ़ बोल सांचा, फुरे नाफुरे तोलूना चमारीकं कुण्डम पड़े" दृष्टिहए विचारसे काम लेकर । इसही प्रकारके ऊट-पटाग कुछ गवारू बाल कहकर संसार में कोई भी अदृष्ट शक्ति किसीका बिगाड़ या कठिनस-काटन कार्योंकी सिद्ध होने लग गई। ये शक्ति- वार नहीं करती है. यहां तक कि यह सारा संसार भी शाली मन्त्र ऐसे महा नीच और अपवित्र पुरुपं के पास किमीके चलाये नहीं चल रहा है। न कोई इसका कैसे ठहर सकते हैं, ऐसे तर्क उठने पर यह विश्वास बिगाइनेवाला है और न बनानेवाला है, जो भी कुछ वाला और दिलाया जाने लगा कि यह कलि-काल है जिसमें पवित्र होरहा है वह सब वस्तु स्वभाव के अनुसार ही होरहा है। मन्त्र तो ठहर ही नहीं सकते हैं, इस कारण अब तो अप वस्तुएँ अनादि हैं और उनके स्वभाव भी अनादि हैं। वित्र मन्त्रही काम देंगे और उसही के पास रहेंगे जो । आगका जो स्वभाव है वह अनादिसे है और अनन्त अपवित्र रहेगा-पाक रहने वाले के पास तो ये मन्त्र .. .' तक रहेगा। इसही प्रकार प्रत्येक वस्तुका स्वभाव ठहर ही नहीं सकते हैं । जब विचार-शक्ति से काम ही न । अनादि अनन्त है। प्रत्येक वस्तु अपने-अपने स्वभावालेना हुआ तब इस बातका भी विश्वास क्यों न कर नुसार काम करती है और नियमानुसार अपने समीपकी लिया जाय ? वस्तु पर असर डालती है। इसहीसे अलटन-पलटन विश्वास भी कैसे न हो ! जब कठिनसे कठिन होता है और संसारका चक्र चलता है। संसार के सबही बीमारी या अन्य कोई कष्ट अथवा कठिनसे कठिन कार्य मनुष्य और सबही पशु-पक्षी बहुधा वस्तुओं के स्वभाव दो चार पैसे नकद या सेर माधसेर अनाज देनेसे इन का अटल होना जानते हैं, तबही तो बेखटके खाते बेचारे भनी चमारों के द्वारा सिद्ध होता हुआ नज़र आता पीते हैं और अन्य प्रकार बर्तते हैं। वस्तु स्वभावके है तो क्यों न करालिया जावे ? गृहस्थ लोग रात-दिन इस अटल द्धिा-तपर ही जीवोंका सारा संसार-कार्य अनेक प्रकारकी चिन्ताओं में फँसे रहते हैं, उनका काम चल रहा है-खेती बाड़ी होती है, खाना पीना बनता तर्क-वितर्क करनेसे नहीं चल सकता है, गृहस्थीका है, दवादारू की जाती है, सब प्रकारकी कारीगरी संसार तो अांख मीचकर सबही को मानने और सबही बनती है, विषय-भोग होते हैं, खेल तमाशे किये से सहायता लेते रहनेसे ही चल सकता है ! अच्छा भाई जाते हैं, और भी सबही प्रकारके व्यवहार चलते हैं। यदि महा-मूढ़ और अविचारी बननेसे ही तुम्हारा संसार यदि संसारकी वस्तुओंके स्वभावके अटल होनेका चलता है तो ऐसे ही चलाओ । परन्तु इतना कहे बिना विश्वास न होता तो किसी वस्तुके छनेका भी साहस न हम भी नहीं रह सकते हैं कि अपने शक्तिशाली मन्त्रों होता और न कोई किसी प्रकारका व्यवहार ही चल पर भरोसा रखने वाले तीस करोड़ हिन्दुस्तानी, पुरुषार्थ सकता था । और बाहु-बल पर भरोसा रखने वाले ३० लाख मुसल- ऐसी दशामें कर्ता-हर्ता आदि अदृष्ट शक्तियोंकी मानोंसे परास्त होगये । राजपाट खोया, धर्म कर्म खोया कल्पना करना और फिर उनको मनुष्योंके समान खुशा
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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