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________________ वर्ष २, किरण ४] गोत्रकर्म-सम्बन्धी विचार २६५ नीचता तो देवों, नारकियों तथा तिर्येचोंमें भी पाई जाती कर्म-सिद्धान्तशास्त्रकी कोई वस्तु ही रह जायगी-- है, जिसका कितना ही उल्लेख बाबू सूरजभानजीने लौकक तथा सैद्धान्तिक गोत्रोंका भेद भी उठ जायगाअपने लेखमें किया है; परन्तु उसके कारण जिस प्रकार तब तो गोत्रकर्मका निर्णय, निर्धार और उसकी सब देवादिकों में ऊंच-नीच दोनों गोत्रोंके उदयकी व्यवस्था व्यवस्था भी किसी सिद्धान्तशास्त्र अथवा प्रत्यक्षदर्शीके नहीं की जाती उसी प्रकार मनुष्योंमें भी उसका किया द्वारा न होकर उस स्थानकी जनताके द्वारा ही हुआ जाना अनिवार्य नहीं ठहरता । यदि मनुष्योंमें उसे करेगी जहां वह आचरण-कर्ता निवास करता होगा !! अनिवार्य किया जायगा तो देवों, नारकियों तथा इस तरह ब्रह्मचारीजोका लेख बहुतही अस्पष्ट है तियचोंको भी उभयगोत्री मानना पड़ेगा उन्हें एक और वह बहुतसी बातोंको स्पर्श करता हुआ किसी भी गोत्री मानने का फिर कोई कारण नहीं रहेगा। एक विषयको विचार के लिये ठीक प्रस्तुत करता हुआ इसके सिवाय, ब्रह्मचारीजीके शब्दोंमें यदि कोई मालूम नहीं होता। आशा है ब्रह्मचारीजी, उक्त १.७ नियत आचरण नीच कलोंका स्थापित नहीं किया जा. कलमों द्वारा भूचित की गई सब बातों पर प्रकाश सकता और ऊँच-नीच आचरणकी यह मान्यता उस डालते हुए, अपने लेखको स्पष्ट करने की कृपा करेंगे, स्थानके लोगोंकी मान्यता पर निर्भर है, तो फिर जिमसे गोत्रकाश्रित ऊँच-नीचताका यह विषय सम्यक् गोत्रकर्मके ऊंच-नीच परमाणुओंकी भी कोई वास्त- प्रकार से निगीत हो सके। विकता नहीं रहेगी, न शास्त्रकथित उनके पासव वीरसेवामन्दिर, सरसावा, कारणोंका ही कोई मूल्य रह सकेगा और न बह गोत्र ता०१८---१-१९३९ जागति-गीत सर्वत्र हुआ है समुत्थान ! हो रहा विजय का तुमुल गान ! नव-क्रान्ति हुई है विद्यमान ! उठ, तू भी उठ, उन्माद त्याग ! उठ, सोये साहस ! जाग जाग !! रायता : श्री कल्याणकुमार जैन, शशि भर भूमण्डल में ध्वनि महान ! गा उथल-पुथल-मय क्रान्ति-गान! जग चाह रहा है शक्ति-दान ! नव राग छेड़, कुछ गा विहाग! उठ, सोये साहस ! जाग जाग !! (२) जडता तक में जीवन-विकासपा रहा पनप कर पूर्ण हास! तू शक्ति केन्द्र है कर प्रय स! महका कर नव-जीवन-पराग! उठ, सोये साहस ! जाग जाग !! यदि पौरुष सोता है संभाल ! जग डूब रहा है तो उछाल! बन जा इतिहासों में मिसाल ! कायर जीवन में लगा आग ! उठ, सोये साहस ! जाग जाग !! गुमराह हो रहा सार्थवाह ! रुक रहा वीरता का प्रवाह ! मानव में दानव धुसा श्राह ! प्रस्तुत है सिर पर काल-नाग ! उठ, सोये साहस! जाग जाग !!
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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