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________________ वर्ष २, किरण ४] गोत्रकर्म-सम्बन्धी विचार २६३ पार्टी और मांसपार्टी ऐसे दो भेद ही बन गये हैं- और होने वाले मनुष्य भी उच्चगोत्री ठहरेंगे और जिस इसलिये ब्रह्मचारीजीका यह लिखना कि "मनुष्य घासपर वंश वाले उस प्राचारको छोड़ देंगे वे वहां रहते हुए नहीं जी सकता" कुछ विचित्र-सा ही जान पड़ता है। नीचगोत्री हो जावेंगे। इसी तरह जिन ार्य क्षेत्रोंमें इसके सिवाय, घास खाकर जीना यदि नीच गोत्रका मांसभक्षणादिक निन्द्यकर्म समझे जाते हैं वहां उनका कारण और नीच गोत्री होनेका सूचक है तो फिर सेवन न करने वाले चाण्डालादि कुलोंमें भी उत्पन्न मानव जितने भ मांसाहारी पशु हैं वे सब उच्च गोत्री हो जावेंगे उच्चगोत्री और सेवन करने वाले ब्राह्मणादि कुलोंमें भी उन्हें उच्च गोत्री कहना पड़ेगा। कितने ही उत्पन्न मानव नीच गोत्री होंगे, यही क्या ब्रह्मचारीजीतिर्यचोंके शरीर ऐसे सुन्दर और इतने अधिक उच्च का आशय है ? यदि ऐसा ही आशय है तो फिर जिस पुद्गलों के बने हुए होते हैं कि मनुष्य भी उन पर मोहित देश में मामभक्षण अथवा विधवाविवाह आदिको मनुष्यों होता है और अपने सुन्दर-से-सुन्दर अंगोंको भी उनकी का एक वग निन्द्य और दूसरा वर्ग अनिन्द्य समझता है उपमा देता है । शरीर-पुद्गलोंकी इस उच्चताके कारण वहाँ आपके ऊँच-नीच गोत्रकी क्या व्यवस्था होगी ? यह उन तिर्यचोंको भी उच्चगोत्री मानना पड़ेगा । इस तरह मालूम होना चाहिए । साथ ही यह भी मालूम होना ब्रह्मचारीजीने गोत्रकी ऊँच-नीचताका जो माप-दण्ड चाहिए कि ऐसी हालतमें-लोकमान्यता पर ही एक स्थिर किया है वह बहुत कुछ दूपित तथा आपत्तिके अाधार रहने पर ... गोत्रकर्मकी क्या वास्तविकता रह योग्य जान पड़ता है। जायगी ? अथवा गोत्रकाश्रित ऊँच-नीचता और व्या(११)आर्यखण्ड और म्लेच्छखण्डोंके मनुष्यों में वहारिक ऊँच-नोचतामें क्या भेद रह जायगा ? यदि कुछ ऊँच-नीच गोत्रकी विशेषताका कोई विशेष भेद न करके भेद नहीं रहेगा तो फिर देवों में जो व्यावहारिक ऊँच-नीचता ब्रह्मचारीजी सभी खण्डोंके मनुष्योंमें जन्म-समयकी है उसके अनुसार देव भी ऊँच और नीच दोनों गोत्रक अपेक्षा नीचगोत्रका उदय उन सब मनुष्यों के बतलाते क्यों नहीं माने जाएँगे ? और इसी प्रकार तियनों में भी, जो हैं जो ऐसे कुलों या वंशोंमें उत्पन्न हुए हों जो उस देश कि अणुव्रत तक धारण कर सकते हैं, दोनों गोत्रों का उदय वा क्षेत्रकी दृष्टिसे निन्द्य आचारण वाले माने जाते हो, क्यों नहीं माना जायगा? इन सब बातोंका स्पष्टीकरण और ऊँच गोत्रका उदय उन सब मनुष्यों के ठहराते हैं। न होना चाहिए। जो ऐसे वंशों या कुलोंमें पैदा हो जो अपेक्षाकृत वहाँ (१२) नीच कुलमें जन्म लेकर अर्थात् नीचगोत्री ऊँच माने जाते हों। इससे जिन म्लेच्छ देशोंमें म्लेच्छा होकर भी यदि कोई मनुष्य योग्य प्राचारणके द्वारा लोकमें चार-हिंसाम रति, मांस भक्षण में प्रीति और परधन हर अपनी मान्यता बढ़ा लेवे तो वह नीचगोत्रके उदयको न भोग कर उच्च गोत्रका उदय भोगता है, और उच्च णादि* निन्द्य नहीं समझा जाता, वहांके वंशोंमें उत्पन्न । गोत्री होकर भी यदि कोई मनुष्य अयोग्य आचरण करके *म्लेच्छाचारो हि हिंसायां रतिर्मासाशनेऽपि च । लोक निन्द्य हो जावे तो वह उच्च गोत्र के उदयको बन्द परस्वहरणे प्रीतिः निधूतत्वमिति स्मृतम् ॥४२-१८४॥ करके नीचगोत्रका उदय भोगने लगता है, ऐसा ब्रह्मचारी -आदिपुराणे, जिनसेनाचार्यः जी लिखते हैं । इसका आशय है--किसी गोत्रका उदय
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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