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________________ ६९ पौप, वीर निव्सं० २४५६] स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द ___ दूसरे प्रमाणमें जिस टिप्पणीका उल्लेख है वह प्राप्त नहीं हुआ, उन्हें उसके कुछ ग्वंडोंका सारांश मात्र आदिपुराणके निम्न वाक्यमें प्रयुक्त हुए पात्रकेसरिणा' मिला है और इमी लिये उन्हे इस प्रमाणको प्रस्तुत पद पर जान पड़ती है; क्योंकि अन्यत्र श्रादिपुराणमें करने तथा शिलालेखके आधार पर अपने लेखमें पात्रकेसरीका कोई उल्लेोग्य नहीं मिलता :- विद्यानन्दका कुछ विशेष परिचय देनमें भारी धोखा भट्टाकलंक-श्रीपाल-पात्रकेसरिणां गुणाः। हुआ है । अस्तु; इस प्रमाणमें प्रेमीजीने शिलालेख्यके विदुषां हृदयारूढा हारायन्तेऽतिनिर्मलाः॥ जिस अन्तिम वाक्यकी ओर इशारा किया है उसे यहाँ इममें लिखा है कि, भटाकलंक, श्रीपाल और ददन मात्रम ही काम नहीं चलेगा, पाठकोंके समझने पात्रकेमर्गक अति निर्मल गण विद्वानोके हृदय पर के लिये अनुवाद रूपमें प्रस्तुत किये हुए प्रेमीजीके उम हारकी तरह आरूढ हैं।] पर शिलालेखको ही यहाँ दे देना उचित जान पड़ता परंतु इम टिप्पणीकी बावत यह नहीं बतलाया है और वह इस प्रकार हैगया कि. वह कौनम श्राचार्ग अथवा विद्वान की की “विद्यानन्दिस्वामीन मंजराज पट्टणकं गजा मंज हुई है? कब की गई है? अन्यत्र भी श्रादिपुराणकी वह की सभामें जाकर नन्दनमल्लिभट्टसे विवाद करके ममृची टिप्पणी मिलती है या कि नहीं ? और यदि उमका पराभव किया। ... शतवेन्द्र राजाकी सभामें मिलती है तो उममें भी प्रकृत पदकी वह टिप्पणी एक कान्यके प्रभावसे ममस्त श्रोताओंको चकित कर मौजद है या कि नहीं ? अथवा जिस ग्रन्थप्रति पर वह दिया ।......... शाल्वमल्लि राजाकी मभामें पराजित टिप्पणी है वह कबकी लिखी हुई है और वह टिप्पणी किये हुए वादियों पर विद्यानन्दिनं क्षमा की।... उमी प्रलिपिका अंग है या बादको की हुई मालम सलवदेव गजाकी मभामें परवादियोंके मतोंका होती है । बिना इन मब बातोंका स्पष्टीकरण किए अमत्य सिद्ध करके जैनमनकी प्रभावना की। ...... और यह बतलाए कि वह टिप्पणी अधिक प्राचीन बिलगीक राजा नरसिंह की मभामें जैनमतका प्रभाव है-कम से कम 'सम्यक्त्वप्रकाश' और 'जानसूर्योदय प्रकट किया । काग्कल नगरीके भैरवाचायकी गजनाटक की रचनाम पहले की है-अथवा किसी मान्य सभामें विद्यानन्दिन जैनमतका प्रभाव दिग्बला कर अधिकारी पुरुष द्वारा की गई है, इम प्रमाणका काई उमका प्रमार किया। ...... विदर्गकं भव्यजनोंको खास महत्व और वजन मालूम नहीं होता । होमकता विद्यानन्दिनं अपने धर्मज्ञानममम्यक्त्वकी प्रापि कगदी है कि टिप्पणी बहुत कुछ आधुनिकहां और वह किमी ......जिम नरसिंहराजकं पुत्र कृष्णराजके दरबार में ग्वाध्यायप्रेमीने दन्तकथा पर विश्वास करकं या हजारों गजा नम्र होतं थे उम गजदरबाग्में जाकर है. मम्यक्तप्रकाशादिकको देख कर ही लगा दी हो। विद्यानन्द, तुमने जैनमनका उद्योत किया और पर पाँचवाँ प्रमाण एक शिलालेम्प पर आधार रखता वादियोंका पगभव किया। ...... कांप्पन नथा अन्य है और उस लेखकी जाँचसे वह बिलकुल निर्मूल जान नीर्थस्थलोंमें विपुल धन म्यर्च कराके तुमनं धर्मपड़ता है। मालूम होता है प्रेमीजीके (अथवा तात्या प्रभावना की । बेलगुलके जैनमंघका सुवर्णवनादि नमिनाथ पांगलके भी)मामने यह पुरा शिलालेम्ब कभी दिला कर मण्डिन किया। ...... गैग्सप्पाके ममीप
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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