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________________ पौष, वीर नि०सं०२४५६] स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द ६७ स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द एकताके भ्रमका प्रचार लिये श्राज इम भ्रमको म्पष्ट करनेके लिये ही यह लेग्य सोलह सतरह वर्ष हुए जब सुहृद्वर पं०नाथरामजी लिखा जाता है। प्रेमीने 'स्याद्वाद विद्यापति विद्यानन्दि' नामका प्रमाण-पंचक एक लेख लिखा था और उसे "वें वर्षके जैनहितपी सबसे पहले मैं अपने पाठकोंको उन प्रमाणअंक नं०९में प्रकाशित कियाथा । यह लेख प्रायः तात्या अथवा हेतुओं-का परिचय करा देना चाहता हूँ जो नेमिनाथ पाँगलके मराठी लेखके आधार पर, उमे कुछ प्रेमीजीनं अपने उक्त लग्यमें दिये हैं और वे इस मंशोधित, परिवर्तित और परिवर्द्धित करके, लिग्वागया प्रकार हैं:था । और उसमें यह सिद्ध किया गया था कि 'पात्र- "विद्यानन्दका नाम पात्रकसरी भी है। बहुतम केसरी' और 'विद्यानंद' दोनों एक ही व्यक्ति हैं । जिन लोगोंका खयाल है कि पात्रकेसरी नामके कोई दुसरं प्रमाणोंम यह सिद्ध किया गया था उनकी सत्यता पर विद्वान होगये हैं। परन्तु नीच लिग्वे प्रमाणोंसे विद्याविश्वास करते हुए, उस वक्तम प्रायः मभी विद्वान् नन्दि और पात्रकेमरी एक ही मालम होते हैयह मानते आ रहे हैं कि ये दोनों एक ही व्यक्ति के १ 'मम्यक्तप्रकाश' नामक ग्रन्थमें एक जगह लिखा नामान्तर हैं-भिन्न नाम हैं । चुनाँच उस वक्त है किश्रामपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, अष्टमही, तन्वार्थश्नांक- "नथानांकवानिक विद्यानन्दापग्नाम पात्रकार वार्तिक, युक्त्यनुशासनटीका, पात्रकेसरितांत्र, श्रीपर- म्वामिना यदुनं नश्च लिग्व्यन-'नत्त्वार्थश्रद्धानं मम्यपार्श्वनाथस्तोत्र आदि जो भी ग्रंथ विद्यानन्द या पात्र ग्दर्शनं । न तु मम्यग्दर्शनशब्दनिर्वचनसामयादव केसरीके नामसे प्रकाशित हुए हैं और जिनकं माथमें त्वात्तदर्थ नलक्षण वचनं न यक्तिमदेवनि कम्यचिदार ___ मम्यग्दर्शनम्वम्पनिर्णयादर्शपद्विप्रतिपनिनिवृत्तः सिद्ध विद्वानों द्वारा उनके कर्ताका परिचय दिया गया है उन का तामपाकरानि । मबमें पात्रकेसरी और विद्यानन्दको एक घोषित किया इममें शोकवार्तिकर्क कना विद्यानन्दिका ही पात्रगया है-बहुतोंमें प्रेमीजीके लेखका सारांश अथवा कमर्ग बतलाया है। संस्कृत अनुवाद तक दिया गया है। डा० शतीशचन्द्र : श्रवणयन्गोलकं पं० दौलिजिनदास शास्त्री ग्रंथविद्याभूषण जैसे अजैन विद्वानोंने भी, बिना किसी मंग्रहमें जो आदिपगणकी नार पत्रोंपर लिग्विन विशेष ऊहापोहके, अपने प्रन्थोंमें दोनोंकी एकताको प्रनि है उमकी टिप्पणीमें पात्रकेमरीका नामान्तर स्वीकार किया है । इस तरह पर यह विपय विद्वत्म- विधानन्दि लिया है। माजमें रूढ सा हो गया है और एक निश्चित विपय ३ ब्रह्मनमिदनकृत कथाकोपमें जा पात्रकेमरीकीकथा समझा जाता है। परंतु खोज करने पर मालूम लिखी है उसके विषय परम्परागत यही म्ययाल हुआ कि, ऐसा समझना नितान्त भ्रम है । और इम चला पाना है कि वह विद्यानन्दिकी ही कथा है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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