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________________ आश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६ ] खारवेल और हिमवन्त-थरावली रासी हजार राजा बताये गये हैं । इन उल्लेखोंसे वैशाली या वृजि में गणराज्य होना ही प्रमाणित होता है। इस अवस्था में राजा चेटक परम्परीण राजा नहीं कहे जा सकते । कौटिल्यके 'राजशब्दोपजीविनः' पदसे उन का नाम मात्रका राजा होना सिद्ध है-गजसत्ता का वास्तविक अधिकार तो उनके संघको प्राप्त था 1 श्वेताम्बर शास्त्र हमारे पास मौजूद नहीं हैं। इस कारण हम उनके सम्बन्ध में अपने नोटोंसे अथवा अन्यस्रोतों से ही लिख सकते हैं । अस्तु; अन्य स्रोतों में जहाँ भी श्वेताम्बर शास्त्रानुसार चेटकका उल्लेख किया गया है, वहाँ वह अनेक राजाओं में से एक ही लिग्वे ये हैं | देखिये जैकब सा० ऐसे ही उल्लेख करते हैं: “...Kçatriyani Trisula, the mother of Mhaviia, was a sister of Cetaka, one of the Kings of Vatsali, and belonged to the Vasistha gotta, (S. B. E., Vol. XXII, pXII). The Licchavi lady, nccording to the Niryavali Sutin; was Cilama, the daughter of Cetaka, one of the majas of Vaisali.” (Ibid P. XIII ) 44 इन उद्धरणोंमें जिन शब्दोंके नीचे लकीर खींच दी गई है, उनसे वैशाली में अनेक राजाओं का होना सिद्ध (?) है। उधर 'कल्पसूत्र' और 'भगवतीसुत्र' में काशीकौशल के १८ गण- राजाओंके साथ साथ नौ लिच्छिवि गणराजाओं का भी उल्लेख है४ । यह नौ लिच्छिवि १. महा वस्तु, भा० १,१०२७१ । २. डॉ० लॉ ने यह बात अपनी 'नत्री क्रेन्स इन एन्शियन्ट इन्डिया' नामक पुस्तक मच्छी तरह प्रमाणित करती है I ३. कल्पसूत्र १२८ । ४. भगवती सुन ७, हमारी समझ यह नौ ल ६२५ गणराजा साधारण राजाओं मे भिम्न प्रकार के अर्थात 'राजशब्दोपजीविनः ' - राष्ट्र संघ के सदस्यरूप 'राजा' उपाधिधारी क्षत्रियथे; क्योंकि यदि ये ऐसे न होते तो इन्हें गणराजा न कहा जाता। इसके साथ ही यह बात भी स्पष्ट है कि ये छविराजा सिवाय वैशालीक अन्यत्र कहीं नहीं रहते थे। उस समय वैशाली ही लिवियों का राजनगर था । इस दशा में लिच्छिवियों को वृद्धि अथवा विदेह देश और वैशाली नगर कहीं अलग मानना समुचित नहीं है। अतः यह कहना बेजा नहीं है कि श्वेताम्बरशास्त्र भी चेटकको एक गगाराजा प्रकट करते हैं। दिगम्बर शास्त्र भी वैशाली और उसके आसपास के क्षत्रिय कुन्नों में गणराज्य के होनेकी माक्षो देते हैं । 'महावीरपुराण', 'उत्तरपुराण' आदि प्रन्थों में कहा गया है कि भगवान महावीरने दिगम्बर मुनि होकर डबन से उठकर कुल नगर के कुल नपके यहाँ आहार लिया था। यहां राजा और नगरका नाम एक ही होना विशेष अर्थम खाली नहीं है। इसमें प्रयुक्त हुआ 'कुल' शब्द हमारी समझ से (Man' 'Family' अर्थका ग्रांतक है; क्योंकि राजा और नगरका एक ही नाम होना साधारणतः ठीक नहीं जंचता। उधर श्वताम्बर शाखों यह स्पष्ट ही है कि दिगंबर शास्त्रांका 'खण्डवन' या 'नायखंडवन' उनके शास्त्रोंका 'दुइपलाश उज्जान है, जिसपर नाथवंशी (शात्रिक) क्षत्रियों बनियन संपक नौ कुलं कि प्रतिनिधियांक योतक हो । कोर्ट मा धर्म नदीं । किवि और वज्जियन शब्द समान प्रथमं भी प्रयुक्त हुए मिलते हैं। १. मम तव इन एन्शियेन्द्र इन्डिया, ५.३५५७१ २. महावीरपुरागा १०२५६ । ३ ३०० १०३१- ३१६ |
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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