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पाश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] तत्वार्थसूत्रकं व्याख्याकार और व्याख्याएँ के ही होनेकी सूचना मिलती है। इन्हींकी दिगम्बरी- जिसके स्पष्टीकरण के लिये उनके भनेकान्त' मासिक यत्व समर्थक सर्वार्थसिद्धि' नामकी तत्वार्थव्याख्या पत्रकी दूसरी किरण देखनी चाहिए। ये विद्यानन्द भी पीछे सम्पर्ण दिगम्बरीय विद्वानोंको आधारभत हुई है। विक्रमकी नवमी शताब्दी में हुए हैं। इनकी किननी ही भट्ट अकल
कनियाँ उपलब्ध है।५ । ये भारतीय दर्शनों के विशिष्ट भट्ट अकलङ्क, नवीx शताब्दीक विद्वान है। अभ्यामी है और इन्होंने तत्वार्थ पर वार्षिक 'सर्वार्थसिद्धि के बाद तत्वार्थ पर इनकी ही व्याख्या नामकी पगबंध विस्तृत व्याग्या लिम्ब कर कमारिल मिलती है, जो 'राजवार्तिक' के नाममं प्रसिद्ध है। जैम प्रसिद्ध मामांसक पन्थकागकी पर्वा की और ये जैन न्यायप्रस्थापक विशिष्ट गण्यमान्य विद्वानोंमें जनदर्शन पर किये गये मीमांसकोंक प्र माक्रमण से एक हैं । इनकी कितनी ही कृनियाँ१४ उपलब्ध है, का मबल उत्तर दिया है। जो हरेक जैन न्यायकं अभ्यामीक लिय महत्वकी है।
श्रतसागर विद्यानन्द
__'श्रनमागर नामक दो दिगम्बर पण्डितोंने नत्वार्थ विद्यानन्दका दूमग नाम 'पात्रकेसरी' प्रसिद्ध है। परदा जदी जुदी टीका लिम्बी हैं। परन्तु पात्रकेसरी विद्यानंदम भिन्न थे यह विचार विबुधमेन, योगीन्द्रदेव, योगदेव, लक्ष्मीदेव हालमें ही पं० जुगलकिशारजीने प्रस्तुन किया है. भोर भभयनन्दिसरि । का लिग्वा मा. उसमें तन्वार्थमृत्रक टंककरमपम शिवकोटिक ये सभी दिगम्बर विद्वान हैं और उन्होंने तत्वा
का जा वाक्य है वह उनकी उस टीकः पग्मे ही दान किया पर माचारगण व्याख्याय लिया है । इनके विषयम गया है, या उपक एनन स्वार्थमत्रं तदलंचकार वाम परिचय नहीं मिला । इननं मंस्कृत व्यामया. इम मशमें प्रयुक्त हा एसन' परमे जान पाता है।
कागके अतिरिक्त तत्वार्थ पर भाषामें लिखने वाले -सम्पादक
अनेक दिगम्बर विद्वान हो गये हैं, जिनमें एक रमा करना कुछ टीक मालमनाना: क्योकि मचन' तो शिक्क टिम पहले ममन्तभाकी भी मिलती है नीरहवीं पताका १. मा. महामार ताबा नावानिककी प्रम्ना । की बनी। 'धवला' टीक तक उनक गधरितबहाभाध्यका :ब
न मालम या उन किस माधार पर किया गया है। है । दम्वा, ग्वामी सम-तभा' तथा 'भकन्त' की चौथी किया जाना मझ निगम्बर माहित्यका परिचय सावा.मत्र पर एक पृ. २१६ से।
--सम्पादक सागर की तमागी नामकी टीका मोर अंक रमित xवी नहीं,
किवीवी शनमक विदान है। विकासका १६वी शतक विद्वान तथा विधानन्ति मारक शिष्य (दम्बा, स्वामी सस्ता . १० वीं शनी या मम ।
सम्पादक भी पहले ता जिनमेनद्वारा रनुन प्रकलाकृत 'लधायमाय के टीका
कमिवाय भारकानाती, पान, कनककीमि. रा. कार 'प्रमाचदए हैं जो मकनवमं बन पालक-प्रायः एक मौलि और प्रभाच मावि पीर भी लिने कि द्विानों ने शताब्दीसे भी अधिक पछिक-विद्वान हैं। देवी, अनकन्न' किया तथा मुख्य ससक्त व्याच्या लिखी। दिगम्बर मप्रकायम १० १५.से।
-सम्पादक अमनपा मुहका अधिक प्रचार मही मी व्याल्याबकी मी १४ लो, लवीयत्रयकी प्रग्नावना ।
मच्या प्रति।
मस्पार