SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाश्विन,कार्तिक, वीरनिःसं०२४५६] तत्वार्थस्त्रके व्यायाकार और व्याख्याएँ ख्या नहीं मिलती। ये विक्रमकी (वी, १३वी शना गणी यशोविजय ब्दी में होने वाले विश्रन श्वेताम्बर विद्वानोमस एक है। गणी यशोविजय ऊपरकं वाचक यशाविजयम यं भाचार्य हमचंद्रके ममकालीन और मर्वश्रेण टीका- भिन्न हैं। ये कय हुए ? यह मालम नहीं। इनके विकारक तौर पर प्रसिद्ध है। इनकी काडियो महत्वपण पय दमग भी एतिहासिक परिचय इम ममग का कृतियाँ उपलब्ध है। नही है । इनकी कनिक नीर पर श्रीक सि. चितनमुनि नन्वार्थमा पर की गजराती टापा प्राम है । इसके चिरंतनमुनि एक अज्ञान नामक श्वताम्बर माध निरिक इन्होंने अन्य कुछ रचना की नगा या नहीं, है। इन्होंने तत्वार्थक ऊपर साधारगा टिप्पा लिया वह ज्ञान नहीं । टिपीकी भाषा और शैलीका दंग्यन है, ये विक्रमी चौदावा शनाम्दीक बाद किमो समय हुए ये मतरहवीं-अठारहवी शताब्दीमा जान पहने हुए है; क्योंकि इन्हान अयाय ५, मत्र ३१ के हैं। इनकी नंट करने योग्य दो विशेषताय हैं। टिप्पणम चौदहवीं शताब्दीम होने वाले मटिपणी (१) जग वाचक यशोविजयजी वगैरह श्वेताम्बर 'म्याद्वादमंजर्ग' का उलाव किया है। विद्वानीनं अमही' जैम दिगम्बर्गय प्रन्यों पर वाचक यशोविजय टीकाएं रची है, वैसे ही गणी यशोविजयजी ने भी वाचक यशोविजयकी लिखी भाष्य परकी वरिका नत्वार्थमन्त्रकं दिगम्बर्गय मामिद्धिमान्य मत्रपाठको अपूर्ण प्रथम अध्याय-जितना भाग मिलता है। ये लेकर उम पर मात्र मत्रोकी अर्थपरक टिप्पणी लिवी श्वेताम्बर मम्प्रदायमें ही नहीं किन्तु मम्पण जैन मंत्र है. और टिप्पणी नियनं हा नटीने जहाँ जहाँ श्वेता दायमें सबसे अन्नमें होने वाले मन्तिम प्रामाणिक म्या र बगे और दिसम्बगका मतभेद या मनविगंध माना। विद्वानके तौर पर प्रमिद्ध हैं । इनका मंग्याबंध नि- वः मत्र श्वनाम्यर परम्पराका अनमाण करफ है। याँ उपलब्ध हैं। मनरहवी. अटारीं शताब्दी नको अथ किया है । इस प्रकार मनपाट निगम्बयान वाले न्यायशास्त्र विकासको अपनाकर इन्होंने जन ८भी अथ श्वनाम्बराया। तकोतवट किया है और भिन्न भिन्न विषयों पर । अाजनक नन्वार्थमत्र पर गजगनीम टिप्पणी अनेक प्रकरण लिग्यकर जैननत्वज्ञान माम अभ्याम नियने वाले प्रस्तुत यशोविजय गणी ही प्रथम गिन का मार्ग नैयार किया है। जान हैक्योंकि उनके मिवाय नत्वार्थमत्र पर गजरानी म किमांक। कुछ लिया हश्रा अभी तक भी जाननंग दमा उन्लयो पम म्नु है - नहीं पाया। ___ "तचाप्राप्रकारित्वं तत्वार्थटीकादी विम्तरंग प्रमा- गणी यशोविजयजी श्वनाम्बर है. ग. बान मा धिनमिति ननोवधारणीयम।" निश्चिन है। क्योंकि टिप्पणी अन्नम मा उलेम्बर - 1. .. ७ दवा, उक्त मनिनिन्वित व सिग्रहणी की प्रतापनः पृ०३६॥ "नि श्वेताम्बगवार्य भीरमाम्यामिगण (णि ) ८ देखी. प्रताविजयी-मम्मानित प्रतिमाशतक की प्रस्तावना । बालावबांधः श्रीयशोविजयगाथ
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy