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________________ ४९६ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८, ९, १० areennis . rr. .... .:...:...:...master प्राकृत प्रकाश नहीं होता । जैसे आँख बन्द कर लेने वालेका जीवयहो अप्पबहो जीवदया होइ अप्पणो हदया। रात्रि के समय सुप्रज्वलित दीपक भी कुछ दिखा नहीं विमो सकता । भावार्थ-ज्ञानदीपकके प्रकाश से लाभ - उठानेके लिये इंद्रिय-कषायोंका वशमें करना आँख -शिवार्य। ' खोलनेके समान है।' 'वास्वतमें, जीवोंका वध अपना ही वध है और जीवोंकी दया अपनी ही दया है । इस लिये हिंसाको दंसणु णाणु चरित्तु तमु जो समभाउ करेइ । विषकण्टकके समान समझ कर दरमे ही त्याग देना इयरहं एकु वि अस्थि ण वि,जिणवरु एउ भणेउ । चाहिये।' -योगीन्द्रदेव । (गीवववके ममय क्रोधादिक कषायांकी उत्पत्ति होती है और 'सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये तीनों उसीक कार्य प्रात्माका घात कानी है। इसक सिवाय जीववध क परिणाम- होते हैं जो समभाव धारण करता है । जो साम्यभाव स्वरूप जन्मान्तरों में अनेक बार अपनेको दसग्क हामि मग्ना पड़ता से रहित है उसके इन तीनोंमेंमे वास्तवमें एक भी नहीं है। इस लिये जीवध वास्तवमें प्रात्मक्ध है और इसी प्रकार जीव .. दयाको प्रात्मदया समझना चाहिए । ___ बनता, ऐसा भगवान ने कहा है।' जान पड़ता है इभीम यह कहा गया है कि 'समभाव लं । माविमप्पा पाषा मोक्खं ण संदेहो' - जो माम्यभाव सोणियतश्च पिच्छाण पिच्छा तस्स विवर्गो। म भाविता-मा है वह नि सन्दह माक्षको प्राप्त होता है. क्योकि माक्षक कारगा सम्यन्दनादिक उमी के प्राधित हैं। -देवसेनाचार्य। 'जिसका मनोजल गग-द्वेषादि कल्लोलोस नही इंद्रियकसायवसिगोमुंडोणग्गो य नो मलिणगत्तो। बोलता है वही आत्मतत्त्वका दर्शन करता है । प्रत्यत सो चित्तकम्मसवणो व समणम्पो असमणो हु । इसके, जिसका मन रागद्वेषादिक की लहरोमें पड़कर -शिवार्य। डावाँडोल रहता है उसे आत्मतत्त्वका दर्शन नहीं होता।' 'जो इन्द्रिय-कषायोंक वशीभूत है वह मुंडितशिर, इंदियफसायणिग्गहणिमीलिदस्साहु पयास दिणणा- नग्न और मलिनगात्र होने पर भी चित्रामका-सा एं। रत्तिचस्वणिमीलरस जघा दीवो मुपज्जलिदो। मुनि है-मुनि जैसे रूपको लिये हुए है-वास्तवमें मुनि -शिवार्य। नहीं है। 'इंद्रियों तथा कषायोंके निग्रह से जो रहित है । इससे मुनिके लिये इन्द्रियों तथा कार्योका कश करना सबसे उस ओर उपेक्षा धारण किये हुए है-उसके ज्ञानका मुत्य कयिका है। ]
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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