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अनेकान्त
वर्ष १ किरण ६, . प्रजातन्त्रक मुग्विया चेटककी पुत्री थी । महावीर अन्य और बिहार में वे सच्चे सुख की सुवार्ता (Gospel)
कोक ममान पाठशाला में भेजे जाते थे, परन्तु का सदुपदेश देते हैं। अपने सन्देश को वे जंगली जान पड़ा कि उन्हें शिक्षककी आवश्यकता नहीं है। जातियों तक भी ले जाते हैं, और इसमें वे उनके कर पाक हृदयमें वह ज्ञान विद्यमान है, जिसे कोई भी व्यवहारों की पर्वाह नहीं करते। वे अपने मिश्न में विधान नहीं प्रदान कर सकना । बुद्ध के समान ही सवश? और हिमालय तक जाते हैं । अनेक पीड़को पदम जगनको त्याग दनके लिए व्याकुल हो उठते हैं। और पीड़ाओंके बीच वे कितने गम्भीर और शान्त बन अट्ठाईस वर्षको अवस्था पर्यन्त व कुटम्बमें ही रहते हैं। रहते हैं, और इम गम्भीरता तथा शान्ति में कितना 'अब रनके माता-पिता गुजर जाने हैं और उन्हें संन्याम मौन्दर्य है! पं. प्रवाहमें प्रवेश करने के लिए अन्तःप्रेरणा होती है। वे गम हैं और व्यवस्थापक भी। उनके ग्यारह सब अप ज्यच धाताके ममीप अनमतिकं लिए प्रधान शिष्य है। चारमी से ऊपर मुनि और अनेक जाता है। उनके भाई कहते हैं-"घाव अभी हरे हैं, श्रावक उनके धर्मको धारण करते हैं। ब्राह्मण और
ग।" वे दो वर्ष और ठहर जाते हैं। अब वे नीम अब्राह्मण दोनों ही उनके समाजमें शामिल होते हैं । वर्ष है। ईमाकं ममान अब उन्हे अन्त प्रेरणा होती उनका विश्वास वर्ण और जातिमें नहीं है । वे दीवाली है कि अब भब कुछ छोड़ का भवाक सुमार्गमें प्रवेश दिन पावापुरा (बिहार) में ७२ वर्ष की भायु मं करना चाहिए । बद्धकं ममान में अपनी मब मम्पनि दमा से ५२७ वर्ष पव निर्वाण प्राप्त करते हैं।। हरिद्राको दान कर देत, । कुटम्चको यागर्ने दिन इन महावीर का जैनियोंके इस महापुरुषका4 अपना भाग 1.4 अपने भाइयोको और मार्ग चरित्र कितना सुन्दर है ! वे धनवान क्षत्रिय कुल में भम्पनि गरीबांका दे देते हैं । फिर वे तपश्चर्या और जन्म लेते हैं और गृहको त्याग देते हैं। वे अपना धन -पानका जीवन व्यतीत करत है । बुद्ध को ६ वर्ष की दरिद्रों में दान कर देते हैं, और विरक्त होकर जंगल में साधनाक बाद प्रकाशके दर्शन हुए थे। महावीरको अन्तान और तपस्याके लिये चले जाते हैं। कुछ यह ज्याति १० वर्षकं अन्तान और तपस्याके बाद लोग उन्हें वहाँ ताड़ना देते हैं, परन्तु वे शान्त भौर मौन दीखती है । " जुकूला नदीके किनारं जम्भक प्राममें वे रहते हैं। परम-आत्मज्ञान प्राप्त करते है । प्रन्याकी भाषामें अब तपस्याकी अवधि समाप्त होने पर वे बाहर आते हैं। तीर्थकर, सिद्ध, मर्वज्ञ अथवा महावीर हो जाते हैं। अपने सिद्धान्त की शिक्षा देने के लिये जगह जगह
अब उस अवस्थाको प्राप्त करत है, जिस उपनिषदा धमते हैं, और बहुत से लोग उनका मजाक उड़ाते हैं । में कैवल्य द्रष्टाकी अवस्था कहा है। जैनमन्धोंके अन- सभाओं में वे उन्हें तंगकरते हैं, उनका अपमान करते मार अब उनका नाम 'कंवली' हो जाता है। हैं, परन्तु के प्रशान्त और मौन बने रहते हैं ! .
बद्धके समानधर्म-प्रचारके लिए एक महान् उनका एक शिष्य उन्हें त्याग देता है और उनके मिशन लेकर लोगोंमें ज्ञानका उपदेश देने निकलते हैं। विरुद्ध लोगों में मिथ्या प्रवाद फैलाता है, पर फिर भी जीस वर्ष तक वे यहाँ में वहाँ घूमते-फिरते हैं । वंगाल. वे शान्त तथा मौन रहते हैं। . ...