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वैशास्त्र, ज्येष्ठ, वीरनि०सं०२४५६] पुरानी बातोंकी खोज ग्रन्थ सम्बंधी प्रश्न का उत्तर देते हुए टीकाकार असंभावना को सिद्ध किया गया है। प्रस्तु; टीकाके लिखते हैं :
उक्त उल्लेखसे महावीरके वलत्याग-विषयमें श्वेताम्बरों यच्च भावनायामुक्तं वरिसं चीवरधारी की कितनी ही परस्पर विरोधी मान्यताओंका पता नेणपरमचेलगो जिणो ति' विप्रतिपतिबहल- चलता है, जो संक्षेपमें इस प्रकार है:वान् कथं ? केचिद्वदन्ति तम्मिन्नेवदिने तद्वस्त्रं १ उसी दिन वह वन त्याग दिया गया, २ छह महीने वीरजिनस्य विलंबनकारिणा गृहीतमित्यन्ये ।।
तक उसका सम्बंध बनारहा और वह कंटकशाग्वादिसे
छिन्न-भिन्न होकर खुद अलग हश्रा, ३ महावीरने वर्ष पएमासाच्छिन्नं कंटकशावादिभिगिनि साधि भर तक उसे रक्खा और फिर अलग किया, ४ एक कंन वर्षेण तद्वस्त्रं खंडलकब्राह्मणेन गृहीतमिनि वर्षमे कुछ दिन या महीन और बीतने पर (संभवतः १३ कथयन्ति केचिदाननपनितमुपतिनं च जिननेत्य- महीने के बाद) वह त्यागा गया, ५ ग्बुद त्यागा या किमी परं वदन्ति विलंबनकारिणा जिनस्य स्कंधे
को दिया नहीं गया किन्तु हवा में उड़ गया और फिर
उसकी तरफसे उपेक्षा धारण की गई ६ विलंबनकारी नदागेपितमिनि। एवं विप्रतिपत्तिबाहु ल्यान ने उस महावीर के पासम लिया, ७ ग्यंडलक ब्राह्मणने दृश्यते तत्त्वं सचेललिंगपकटनाथ ।" लिया, ८ इन्द्रने उम महावीर भगवानकं कंधे पर डाला
अर्थात-भावना' में जो यह कहा गया है कि था। ५ विलम्बनकारीने उम महावीरके कन्धे पर "वरिसं चीवरधारीतेलपरमचंलगां जिणा ति" डाला था। -महावीर जिन एक वर्ष तक वस्त्रधारी रहे उसके
अब इम बान की ग्वांज होने की जरूरत है कि बाद अचेलक (वस्त्रत्यागी दिगम्बर) हुए वह विनि
ये सब विभिन्न मान्यताएँ कौन कौनमें श्वेताम्बरीय पत्तियोंके बाहल्यके कारण कैम मान्य किया जा ग्रं में इस ममय उपलब्ध है । आशा है हमारे श्वे.
ताम्बरीय विद्वान इम पर कद्र विशेष प्रकाश डालनकी मकना है ? इस सम्बंधमें बहुतमे विगंधी कथन पाय ना जात है-कुछ आचार्य तो कहन हैं कि उस वनको कृपा करेंगे और यह भी सचिन करेंगे कि 'भावना' उसी दिन महावीरके पासम विलंबनकाग ने ले लिया नामका उन प्रन्थ भी दम ममय उपलब्ध है या नहीं। था. दुसरे कहते हैं कि वह छह महीनके भीतर कराटको तथा शाम्बादिम छिन्न-भिन्न हो कर अलग हो गया था; काद बतलाते हैं कि उस एक वपसे भी कुछ अधिक
छठा महाव्रत समयके बाद बंडलक ब्राह्मणन ले लिया था, और महावनों की मद संख्या पाँच है, नदनमार अणुदूमर कहते है कि वह हवाम गिर पड़ा था, फिर वनों की भी रूट संख्या पाँच ही है। परन्तु प्राचीनमहावीरने उस नहीं उठाया । इसी प्रकार कुछ कालम गत्रिभोजनविन' नामका छठा अणुवन श्राचार्याका कथन है कि वह वस्त्र महावीर के कंधे पर भी माना जाना है, जिसका उल्लंम्य पूज्यपाद श्राचार्य विलंबनकारीने डाला था (इन्द्र ने नहीं)। इस तरह की सर्वार्थमिद्धि' नकमें पाया जाता है। 'जैनाचार्यों बहुतसं विरोधी कथनोंके मौजूद होनस सचेललिंगको का शासन भेद' नामक ग्रंथमें, मैंने इस छठे अणुव्रत प्रकट करनेके लिये इस युक्तिमें कुछ भी मार मालम की कुछ विम्तत चर्चा और विवेचन करते हुए यह नहीं होता।
कल्पना की थी कि इस नाम का छठा महाव्रत भी - इसके बाद टीकामें युक्तिवाद तथा श्वेताम्बरीय होना चाहिये । उम वक्र तक छटे महावतका कोई आगमोंके दूसरे वाक्योंके आधार पर इम कथन की म्पट्र विधान कहीं भी मेरे देखनमें नहीं आया था,