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फाल्गुन, वीर नि०सं०२४५६]
'लोकविभाग' का रचनास्थान
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'लोकविभाग' का रचना-स्थान
[ लेखक-श्री० बाब कामताप्रसाद जी]
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सर्वनन्दिकृत'लोकविभाग'जैनभूगोलका एक अच्छा पं०नाथूरामजीप्रेमीने “जैनहितैषी" भा० १३ पृ० ५२६ प्राचीन ग्रन्थ है जिसके रचना-काल और रचना-स्थान में आधुनिक पटना तथा प्राचीन पाटलिपुत्र की का स्पष्ट उल्लेख सिंहसरिके उपलब्ध लोक विभाग में संभावना व्यक्त की थी। परन्तु हमने पाटलिपुत्र में निम्न प्रकार से पाया जाता है :
पाणराष्ट्र का अस्तित्व न मिलने के कारण इस वैश्वे स्थिते रविसुते वृषभे च जीवे.
गाम को सिन्धुनदवी पाटल गाम अनुमान किया
था और वहीं एक पारणराष्ट्र का होना मान लिया था राजोत्तरेषु सितपक्षमुपेत्य चन्द्रे ।।
(वीर,वर्प५ पृ०९२) । अब हमें अपना यह मतभी ठीक ग्राम च पाटाल (क) नामान पाणाराष्ट्र नहीं मालम होता। क्योंकिपाणराष्ट्र सिंधुदेशमें नहोकर शाखं पुरा लिखितवान् मुनिसर्वनन्दी।।.॥ कहीं काथी के आसपास होना चाहिये जहाँ के राजा संवत्सरे तु द्वाविंश कांचीशसिंहवर्मणः। और उसके राज्यकालका इसमें उल्लेख है। सौभाग्यमे प्रशीत्यग्रे शकान्दानां सिद्धमेनच्छनत्रये॥३॥ प्रो०कृष्णस्वामी अयंगरकी पुस्तक "सम कन्ट्रीब्यूशन्स
अर्थान-"जिस समय उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें शनि- आफ् साउथ इन्डियाटू इन्डियन कलपर" के देखने से श्चर, वृषराशि में वृहस्पति और उत्तराफाल्गनी में हमें इस स्थानका ठीक पता मिल गया है। उसमें पागणचन्द्रमा था, तथा शुक्लपक्ष था (अर्थात् फाल्गुन राष्ट्रको 'बाण' देश कहा गया है और आधुनिक नगर शुक्ला परिणमा थी ) उस समय पाणराष्ट्र के पाटलि कद्दलोर (Cuddalore) को प्राचीन पाटलिग्राम बताया ग्राम में इस शास्त्रको पहले सर्वनन्दी नामक मुनि गया है । साथ ही, इसे त्रिप्पादिरिपुलियर ' Pri-railने लिखा।कांची के राजा सिंहवर्मा के २२ वें संवत्मर inpnliyuriभी कहा गया है । राजा सिंहवर्मन पल्लवमें और शकके ३८०वें वर्ष में यह ग्रंथ समाप्त हआ।" वंश के थे । अतः लोकविभाग का रचना-स्थान दक्षिण
यहाँ पद्यनं०२ में प्रकृत गन्थकारचना-स्थान पाण- भारतका उक्त स्थान मानना ही ठीक ऊँचता है। राष्ट्रका पाटलि पाम लिया है, जिमके विषयमें श्रीयुत