SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फाल्गुण, वीर निःसं०२४५६] स्वार्थ २१५ तदीयः सच्छिष्याः शिवजिदरुणो भक्तिनिरतः समय दिया हुआ है, परन्तु उसका पहला चरण कुछ गुरूणामानावान् धृतजिनसुधर्मोभवदिह। अशुद्ध सा होगया है। इस कारण वह ठीक नहीं बततदीयः सत्पुत्रो मणिजिदरुणाख्या लघमति- लाया जा सकता। संभवतः संवत् १८१८ की जेठ सुदी म्नदर्थं वृत्ति प्रकटितयथाकारि रुचिरा ॥४॥ १३ गुरुवारको टीका समाप्त हुई है । पं० शिवजीलाल समेवस्वकार्यमिति शुभपने शुचिभवे । पं० सदासुख जीके ही समकालीन विद्वान थे और एक त्रयोदश्यहोत्ये चरमसमये वारविषणेऽ- प्रकारसे उनके प्रतिपक्षी थे। उस समय तेरह पन्थ और राधानक्षत्रे शुभसयशर्द्धिमजननी । बीस पन्थमें बहुत कटुता बढ़ी हुई थी ।शिवजीलालका चरं जीयादेषा भुविजिनमतोधोतनकरी ।। एक तेरह पन्थ स्खण्डन नामका पन्थ है । उन्होंने इनि भगवती आराधना टीका समाप्ता। रत्नकरण्ड, चर्चासंग्रह, बांधसार, दर्शनसार,अध्यात्म। यह टीका शिवजिदरुण अर्थात पं० शिवजीलाल तरंगिणी आदि अनेक प्रन्थोंकी भाषा वचनिकायें भी ने अपने सत्पुत्रमणिजिदरुण (मणिजीलाल या मणि - लिखी हैं। वे कट्टर बीस पन्थी थे, साथ ही संस्कृतके लाल)के लिए बनाई है। वे जयपुरके भट्टारककी गही अच्छे विद्वान । के पण्डित थे । उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा इस प्रकार क्या ही अच्छा हो कि ये चारां संस्कृत टीकाएँ दी है- भट्टारक महेन्द्रकीर्तिके शिष्य भट्टारक क्षेम एक साथ मुद्रित करा दी जायें, जिस से विद्वानोंक कीर्ति, उनके पं० निहालचन्द, निहालचन्दके शिष्य लिए मूलप्रन्थ का समझना और तुलनात्मक दृष्टिसे दयाचन्द्र, दयाचन्द्रके दिलसुम्व और दिलसुखके शिव- . अध्ययन करना मुगम हो जाय । इति । जीलाल । प्रशस्तिकं पाँचवें पद्यमें टीकानिर्माण का घाटकोपर (बम्बई) ता०२२-१२-२५ *म्वार्थ . . . 0.orn10.. खिलखिल कलियाँ मनकोहरनी मन्द मन्द मुसकाती हैं। , अपनी सुन्दर छटा दिखा कर भौरों को ललचाती हैं। देख ऊपरी सुन्दरता को मौरे नहीं ललचत है ।। मधु पाकर ही मधुप मनोहर-कलियोको पा छलते हैं ।।। . .W e केसा सुन्दर मधुर स्वार्य है मीठा रस इसमें रहता। :स्वार्थ हेतु कट जाय शीश भी तो भी नर इसको गहता। : प्यारे भाई ! स्वार्थ प्रस्त-नर संधिवाद के योग्य नहीं। दुलही दुख है स्वार्थ-समरमें सुखकी मात्रा कहीं नहीं।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy