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________________ ॐ आम् air COM F परमामगस्य वीज निषिद्ध-जात्यन्ध-सिन्धुर-विधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।। -श्रीअमृतरंद्रसरिः । समन्तभद्राश्रम, करौलबाग, देहली। फाल्गुन, संवन् १९८६ वि०, वीर-निर्वाण मं० २४५६ --- - - - - - - ... ... महापुरुष लेखक-श्री० साल पं०दरबारीलालजी] . . जो विपत्ति में धैर्य क्षमा रखते ऊँचे छन । जगत्रलोभन देख नहीं होते चंचल मन ॥ समा-भूमि में वचनकुशल हैं गौरवशाली। युद्ध-भूमि में दिखलाते वीरता निराली ।। सदाचार सन्न्याय पर मरने को तैयार है। महापुरुष वे ही यहाँ ईश्वरके अवतार हैं। १ सम्पति पाई हर्ष नहीं पर पाया मन में । भाई अगर विपत्ति क्षीणवा नहीं बदन में ।। स पायें कभी, कभी या मोदक पावें । पर पथरावें नहीं, नहीं मन में इकरावें ॥ ऐसी जिन की रीति है पुरुष सदा बन्यो । उन समानसौभाग्य बोकभी न पावे अन्य है। Devenwmrunnanverno ८
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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