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उत्तम क्षमा
घुटने टेक कर वहीं हुसेन के सामने बैठ
गया । बड़ी धीमी आवाज में बोला, "मालिक, लेखकः-यशपाल जैन
जो दूसरों पर गुस्सा नह करते, वे बडे
होते हैं।" - हजरत मोहम्मद के एक चचा थे हुसेन । हसेनने कुछ रुक कर हा, "मैं गुस्सा बड़ी आलीशान हवेली में रहते थे। कमरे में | नहीं हु।" बढ़िया कीमती कालीन विछे थे। धन-दौलत
| गुलाम आगे बोला, ' मालिक, जिन्हें की उनके पास कमी न थी। रौंब भी उनका
| गुम्सा आता ही नहीं," वे उससे भी बडे वहुत था। नौकर-चाकर उनसे थर-थर कांपते थे। कोई उन्हें नाराज नहीं कर
हुसेनने नहा, "तुम ठीक कहते हो।" सकता था।
"लेकिन,” गुलाम सिर को उसी तरह । एक दिन की बात है। उनका नौकर मेज | शुकाये हए बोला, "जो दूसरों की गलतियों को पर खाना लगा रहा था। वह जैसे ही माफ कर देते हैं, वे सब से डे होते हैं।'' रकाबियां लेकर आ रहा था कि उसका पैर | हुसेन के चेहरे पर मुस्कर हट खेल उठी। फिसल गया । रकाधियां फर्श पर गिर कर | उसने कहा, "मैंने तुम्हें मफ़ कर दिया । चूर-चूर हो गई। वहां जो बेश कीमती | थे लो, चार सौ दिरहम । मैंने तुम्हें माफ़ ही कालीन बिछा था, वह खराब हो गया। नहीं किया, आजाद भी कर िया । जाओ !"
गुलाम को काटो तो खून नहीं । वह | समा वीर का अस्त्र है ।
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