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________________ तीर्थ यात्रार्थ अवश्य पधारें | ३२३. नये साथ 30 ५७.३ ४.२ पुरेसा . सम्मेतशिखरजी जाने वाले यात्रिगणों को सचित | . भुनिय, तुरत • या भुनित मिलान किया जाता है कि निम्न तीर्थी पर अवश्य पधारे। छे त्यi 5A पूना मा उ41. मनन ६५५ (१) कम्पिलाजी- यह भारत के उत्तर प्रदेश પશ્ચાતાપ થાય છે. બંને પરસ્પર હદય પૂર્વક “મિચ્છામિ , का एक ऐतिहासिक प्राचीन तीर्थ है। यहां पर तेरहवे तीर्थ कर श्री विमलनाथ भ० के चार - હૃદયપૂર્વકની પરસપર થતી ક્ષમાપનાનો જાદુ कल्याणक (च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान) અદ્ભુત છે, કમને કચરો નીકળવા લાગે, હળુકમી हुए हैं। प्राचीन समय में इसका नाम द्रुपदनगर | બનેલા એવા બંનેના પુન્યોદયે કેવળી ભગવંતનું था। यहां का राजा द्रपद था, जिसके यहां महा બાવાગમન થાય છે. કેવળી ભગવંત પાસે બંને આલેसती दौपदी (पांडव पत्नी) का जन्म हुआ था। ચના કરે છે. મહાબાહુ પણ છે યમ લે છે, બંને कायमगज स्टेशन से ६ मील दूर कम्पिलाजी तो मामा घाम ताम' भी भाक्षे तय छे. है। यहां पर तांगा व बसे मिलती हैं। આપણે પણ ક્ષમાપના કરીએ છીએ, શુભ ભાવના (२) फरूखाबाद- यहां श्री धर्म नाथ भ० का | भाव छ, ५२' था। समयनी त से सतत प्राचीन मंदिर व धर्मशाला है। जिसका जीर्णोद्धार | भावना ।। सवे' स मे भाबी स6131M श्री जैन श्वेताम्बर महासभा-उत्तरप्रदेश ने कराया है।! मार सुमी भने मेरा रामभावना. (३) लखनऊ- शहादत्तगज में पसरहा गलं में श्री सुबाहुनाथ भ० का प्राचीन मदिर है। यहां | 盛盛康源康澤露露深票率感染寨寒露站 का जीर्णोद्धार भी श्री जैन श्वेताम्बर महासभा- मरीही भासासन मात्री 3. उत्तरप्रदेश ने कराया है। (४) इलाहाबाद (पुरमताल)- १२० बाई का भावी २२ बनाना ५वित्र द्वीपसमा बाग, जहां श्री ऋषभदेव भ० का प्राचीन मदिर मातम पा५२१॥ याय या..२वी शर, है। यहांपर थी आदोश्वर भ० को केवलज्ञान प्राप्त | मरास, पासक्षेप, शin५५, सु७४, मारपत्ती, हुआ था। इस अवसर्पिणी काल का प्राचीन तीर्थ' है।| १२५, मासु, अन, मन सुभ ५।१७२ मा (५) कोसम्बी- यह इलाहाबाद से ३५ मोल | ४२४ अनुठान हिमा १५ती ह२४ थान शुद्ध की दूरी पर है, जहां चदनबालाने भ० महावीर- | मने पवित्र भग. महापून्य . त५वी - स्वामी को बाकले से पारा कराया था। यहां भी पनाना भात भाट तीसरा मौषध, मदिर बना हुआ है। धर्मशाला बनाना है इसके | आयातममहामत, यहनत, स्तुरी, मगर लिये तीन लाख रू. की आवश्यकता है। दानी | भीश्रीत भाडादी गाणीयोपणे या ११॥ सज्जनों से प्रार्थना है कि दान देने की कृपा करे'। नायर्नु नधा al.... पनुनु भने ____ अतः आप सब यात्री भाईयों से प्रार्थना है कि | Meld ®. मा५मानी भरीही मादी, मापना इन उपरे।क्त तीर्थी पर दर्शन कर पुण्य के भागी बने। सेवान am भाषा निवेदक :-- रतनलाल एडवोकेट (प्रधान) जगमदरदास जैन (सयोजक) ક લીટી રેડ એ २२०७, कुचा आलमचंद, किनारी बाजार, दिल्लीतीर्थाद्धारक सब कमटी : [ शांतिलाल यानी i. ] श्री जैन श्वे. महासभा-उत्तरप्रदेश | २३, छायास, मसिना भाग', भु५४४००,००२ | हस्तिनापुर ( मेरठ-यू. पी.) ARREARRAMANMALERNMENTS १३. "क्षमा" विशेष
SR No.537872
Book TitleJain 1975 Book 72
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Devchand Sheth
PublisherJain Office Bhavnagar
Publication Year1975
Total Pages392
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Weekly, & India
File Size14 MB
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