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जैनधर्म सबन्धी शोध खोज
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-- लेखक : श्री गोपीचंदजी धाडीवालइन वषेमें जैन धर्म सम्बंधी शोध खोज के में यथाशक्ति परिपालन तथा उनका सामाजिक अनेक निबंध तथा प्रबंध लिखे गये तथा लिखे और देश के व्यवहारिक जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव, जा रहे है, परन्तु कुछ महत्त्वपूर्ण बातेो की ओर इसी बात का सूचक हैं कि जैन समाज भूतकाल प्रायः ध्यान नहीं दिया जाता है। लेखक जैन में इन पिछली कुछ शदाब्दियों में रही है वैसी होते हुये भी उनकी पृष्ठभूमि में जैन संस्कारों समाज नहीं थी, किन्तु बहुत ही कसित उन्नत का अभाव होता है तब वे प्राचीन ग्रथा के बहसंख्यक ही नही' किन्तु एक सम्प्र भारत की शब्दार्थ से आगे जैन धर्म के हृदय तक नहीं एक मात्र विकसित समाज थी और जैन धर्म पहुच सकते है। वे प्रायः पाश्चात्य विद्वानो का प्रायः सर्वमान्य धर्म था। वह भात के बाहर ही अंधानुकरण करते है, उनके निष्कर्षा तथा भी कइ देशों में प्रचारित था। इतना ही नहीं उनकी मान्यताओं पर ही चलते है। परन्तु उन किन्तु भारत को त्याग प्रधान संस्थति का वही पाश्चात्य विद्वाना की भूमिका भारत को भूमिका मूल है, आधार है और वह सदा देश और समाज से भिन्न होती है। उनकी संस्कृति भोग प्रधान के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महत्त्व र्ण योग देता है और भारत की त्याग प्रधान । यह भेद समजे रहा है। इन विषयों पर एतिहासिक खोजपूर्ण बिना कोई भी विद्वान जैन धर्म को समझ नहीं निबंध ही नजर नहीं आते हैं जब के जैन शोध सकता और पाश्चात्य देशों के मापदंड से जैन संस्थानों का और विशेष कर जो ध संस्थान धर्म और उसके प्रभाव का नापता है। अजैन वैशाली के इन्स्टीट्युट आफ प्राकृत नालाजी एड भारतीय विद्वान अपने निजी धर्म के प्रति जन्मजात अहिंसा जिनके नामकरा का आय ही जैन पक्षपात के कारण जैन धम को वास्तविक रुप धर्म और अहिंसा के विषय में खे।। करना ही से देखने में सफल नहीं होते हैं।
है, इस ओर अवश्य ध्यान देना चाहिये । नही लेखकों का इस और ध्यान ही नहीं जाता है तो अन्य विश्वविद्यालयों में ओर इस शेधि कि जैन धर्म केसुव्यवस्थितससंगठित अंधविश्वास संस्थान में भेद ही क्या रह जाता हैं। से मुक्त बुद्धि युक्ति अनुभव और मानसिक निबंध प्रायः साहित्य दर्शनादि विषयों पर विज्ञान पर आधारित सिद्धान्त है, और यह बाते तुलनात्मक भी होते हैं, कलात्मक मदिरो के खंडरो अन्य धर्मों में नहीं है इसका क्या अथ और पर भी होते हैं, परन्तु इन सब के पीछे कौन क्या कारण है इसकी खोज करें। इसी जीवन शक्ति है और उस शक्ति ने भिन्न भिन्न काल में का और संसार का शान्ति और सुखपूर्ण जीवन देश के भिन्न भिन्न जीवन क्षेत्रों में क्या क्या प्रभाव ढालने वाले व्रत नियम को एक रुढी से अधिक डाले तथा सारे देश की सस्कृति के विकास में नहीं समझते। उन नियमों का समझपूर्वक अभिद् क्या-क्या योगदान किया ऐसे विष । के एतिविकास की दृष्टि से पालन की योजनाए', प्रत्येक हाधिक खोज की ओर ध्यान दिया जाना चाहिये। नियम के स्वीकार करने के लिये योग्यता की जैन ग्रंथो के आधार पर भारत य इतिहास आवश्यकता का निदान, उन सिद्धान्तों का समाज लिखा जाता है पर जैन धर्म ने भारतीय इतिहास
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[ પર્યાવણાંક