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________________ पर हमारे जीवन में दिखाया बढ़ता जा रहा है .-- - - - - प्रदर्शनी के प्रति हमारा माह भी बढता ही जा । स्वागतम! पर्वाधिराज! रहा है पर नी के जीवन में परिवर्तन कितना । स्वागतम! पर्वाधिनायक ! हे पyषण । आता है कभी हमने इस ओर विचार किया भी है ? जैन शासन में पैदा होकर भी हमारे आत्मा । धर्म के आगार में हो शीष-भूषण ।। के विकास का मार्ग नही खुला तो फिर किस , चाहना हे पांच कर्तब को निभाऊ । भव में वह अकसर हमे प्राप्त होगा। कर्म-मल-दल, धम -जल से धो बहाऊ ।। जोन शासन में जन्म लेकर व भगवतेा द्वारा कामना है ज्ञान की, मन हो विचक्षण । बताये मार्ग पथिक बनकर हम हमारा पूज ले हम पूज्य जिन गुरुवर विलक्षण । कल्याण कर सकते है, साथ ही अपने जीवन को हा क्षमा की याचना सबसे, न अन्तर । आदर्श बना कर हम ओरो को आगे बढ़ने की : प्यार से 'कुसुमित' रहे धरती निरंतर ॥ प्रेरणा भी प्राप्त करने का अवसर दे सकेगे।। कुसुमकुमारी जैन, अमरावती. और भाग्य से हरे आत्मा के कल्याण के साथ हमे हमारी धार्मिक संस्थाओं की सेवा का अवसर जीवन के। चा उठावे-परिवत न लावे ते ही मिल जावे ते। से ने में सगन्ध ही है, पर हमारा आराधना की सफलता है, वरना तो जैसे जीवन "लक्ष्य होना चाहिये सेवा का सत्ता का नहो"। में अब तक अनेक पयूषण चले गये यह भी चला ___इस पर्वाधिर ज की आराधना कर हम अपने ही जायेगा और हम जहां के तहां ही रह जाएगे। अनाथ जीवों को अभयदान दे के महान पूण्योपाजन कीजिए श्री कीडीयानग पांजरापोल के कार्यकरो की नम्र बिनती ___सविनय विदित करना है कि यहां पर कीडीयानगर में बसे पांजरापोळ चलती हैं। कीतनेही जीवा को अभयदान दिया जाता है। प्रतिवर्ष आवक के सामने खचं ज्यादा है। पंखोओ को द ना और कुत्ते को रोटी प्रतिदिन बडेपेमाने पर खिलाई जाती है। आसपास के गांव के ले ग छोटे बडे घेटे, बकरीयां, छोटे लवारे और वृद्ध या अपंग पशु छोड जाते . है। जिसको हांकी पांजरापोळ संस्था बडाभारी खर्च करके भी निभाती है। ___ संस्थाने अभातक कोई कायमी निधि इकठ्ठा नहि किया। तो प्रतिदिन के जीवदया के कार्यक्रम र्को ३ रू रखने के लिये, हरेक गांव के श्रीसंधो पू आचार्य भगवतो, देवाधि मुनी. वरो, पूज्य सा वीजी महाराजो को और जीवदया प्रेमिओको नम्र प्रार्थना हैं कि हमारी यह सच्ची बार पर ध्यान दे कर यथाशकय ज्यादे से ज्यादी सहायता मिलवा दे-भेज दे। आजदिन तक जन्होंने हमारो पांजरापोळ को सहायता भेजने में मदद की, और भेजी हैं, वे सबकी हम अन मोदना करते हैं। इस पष' हो शके तो ठोक मात्रा में सहायता मेजे यही हमारी प्राथना है। रकम भेजनेवाले भाग्यशालीओ को पक्की रशीद मेजी जायगी। * श्री कोडीयानग' वाणीया महाजन मदद मेजने के ठिकानेः- रवि ट्रेडींग कंपनी * c/o वोरा ही जीभाइ अबजीभाई ॥ दादाम झल, तीसरी मझिल * मु पो. कीडीयानगर, ता. रापर ६७/६९ महमदअली रोड, (जी भुज-कच्छ) ( रजी. न २.३) मुबंई-३ फोन न ३२६३४२ ५ षji ] न: [५८
SR No.537870
Book TitleJain 1973 Book 70 Paryushan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Devchand Sheth
PublisherJain Office Bhavnagar
Publication Year1973
Total Pages138
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Weekly, Paryushan, & India
File Size16 MB
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