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________________ - ... Hum". UNCID M AILORADAmous 3-00 का सदुपयोग स्वतः होने लगता है। यदि हम "MINo. on too. mr.uprem no. o. mp.pa असत्य को नह देख सके अथवा सत्य से अभिन्न और अपने कर व्य से परिचित नहीं हुए तो ગૂર્જરના શિષ્ટ પ્રકાશને समझना चाहिए कि हमने अपना निरिक्षण नहीं किया, अर्थात नन्त की अहेतुकी कृपा से प्राप्त | શ્રમણ ભગવાન મહાવીર ધીરજલાલધ.શાહ ૧-૨૫ मानपानमा विवेक का आदः नहीं किया, कारण कि विवेक lendi. मनुलाई नेपाली ५-०० के आदर मेंही सपनें निरीक्षण की पूर्णता निहित 1 જગદુદ્ધારક ભગવાન મહાવીર. અબેલાલ है । अपना यथेष्ट निरीक्षण करने पर किसी अन्य नशा, मेम. मे. 3-०० गुरु या ग्रन्थ का आवश्यकता ही नही रहती, વિજ્ઞાન અને અધ્યાત્મ. મુનિશ્રી અમરેન્દ્રવિ. ૨-૨૦ कारण कि जिस प्रकाश में सब कुछ हो रहा अतिथितामणि ना२., , ०-७५ है, उसमें अनन्त ज्ञान तथा अनन्त शक्ति विद्य-: मान है अपना निरीक्षण करते करते प्राणी એ દિલ્હીશ્વર. જયભિખ્ખું પ-૨પ उससे अभिन्न हं जाता हैं, जो वास्तव में सब यती मरतव. य४ि ४-५० का सब कुछ हं ते हुए भी सबसे अतीत हैं। सिद्ध यसि. यyि २-५० अपना निरीक्षण में बल के सदूपयोग और विवेक भडता. लि. के आदरकी प्रेरणा देता है। बल के सदुपयोग से A વીર ધમકી પ્રાણી કથાઓં. જયભિખુ ૧-૧૦ . निर्बलताएँ और विवेक के आदर से अविवेक स्वतः मिट जाता है। I અભિષેક. રતિલાલ દીપચંદ દેસાઈ 3-०० . सहाया२. ३५२ पासेस વ્યક્તિ ઘડતર. ફાધર વાલેસ A જીવન દર્શન. ફાધર વાલેસ ના સંસ્કાર તીર્થ. ફાધર વાલેસ તરુણાશ્રમ. ફાધર વાલેસ टन नाय. पा२४तास ५. As 3-५० परपरागत शीप शास्त्रोक्त गणीतथी કિ યેગશતક. હરિભદ્રસૂરિ 3-०० जिनालयानु निर्माण कार्य करनार अध्यात्मवियार. ५. सुमसा ४-०० : हेड ओफिस : शिल्पकार जयरुप होरालालजी सोमपुरा 2 આ અને ગુજરાતી ભાષામાં તમામે તમામ मु. पा. बरलुट नि. सीरोही (राजस्थान) મુ પુસ્તકો અવશ્ય મળવાનું અગ્રણું સ્થળ बान्न आफिस: હો ગજર ગ્રંથરત્ન કાર્યાલય शिल्पकार जयरुप लीलाश कर सं ___ डाकबगला पाir मु. पा. मकराणा दुवा सामे, il भाग, अमहा418-3८०००१ । जिल्ला : नागार (राजस्थान) (N.R.) शन: २४५९८ BIDIOHINOORIDDIIMDIOMommon MOMO HD MOI DIDIOHINDIDEmonll mool SHRIDDHIMANSAREEDODARA पषgi ] : : [५१७
SR No.537870
Book TitleJain 1973 Book 70 Paryushan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Devchand Sheth
PublisherJain Office Bhavnagar
Publication Year1973
Total Pages138
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Weekly, Paryushan, & India
File Size16 MB
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