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________________ से चलता, खडा रहता, बैठता, सोता, खाता मोक्ष की जानकारी हो सकती और वह देवी और बेलता है कि जिससे उसे जरा भी पापकर्म और मानवी विषय मागसे विरकि हो सकता । का बंधन हो। उनके प्रति वैराग्य निर्माण हो सकता है। तभी ___सब जावोंके प्रति आत्मभाव रखकर समा वह पाप कर्मोको रोककर उत्तम धर्म का आचरण आचरण करनेवाला, इंद्रिय निग्रही, हिंसादी, करता है और अज्ञानसे एकत्र करज को दूर पाप कर्म रहित साधक उन्नत होता है, पाप कर सकता है। इस प्रकार साधना करनेवाला कम से-बटन से मुक्त होता है। साधक प्रथम साधक केवल ज्ञान दर्शन की प्राप्ति फर लोक ज्ञानको प्राप्त करे बादमें दयाका आचरण करें आलोक का यथार्थ रुप जानकर मन वचन और क्योंकि अपनी अपने हिताहितको नहीं जानता। काया की प्रवृत्तियों का निरोध कर "शैलशी" इसलिये ज्ञानियों के कल्याण किसमें और अहित स्थिति को प्राप्त होता है । जब शैलशी अवस्था कर पाप कौनसा, यह आनना चाहिये । साधक प्राप्त होती है, वित्त बिलकुल शैलको तरह स्थिर को ज्ञानियों से मार्गदर्शन लेकर कल्याण मार्गका हो जाता है तब फार्माका क्षय कर साधक सिद्धा पथिक बनना चाहिये। बस्था को प्राप्त होता है। इस प्रकार का सर्व कल्याणकारी उपदेश ___ यदि कई जीव अजीव को न समझता हो सुनकर ग्यारह पांडित अपने विशाल शिष्य परितो यह संरम कैसे कर सकता है। सब जीवोंकी बार सहित लगवान महावीर के अनुगामी बने कर्म अनेकविध गतिको जानता है तभी उसके और उन्होंने उनके कल्याणकारी उपदेशका चारों कारणको रमझ सकता है। तभी उसे बंध और बडे उत्साहके साथ प्रचार किया । SAC -2. . - .. પિપ્લીન્સ, જી શટઝ ઇ મસરાઈઝડ ધાતી છાપેલી વોયલ્સ 8) અને લેન્સ 'Sanforized Registered Trade Mark of cluett, peasody &Co inc રાયપુર મિલ્સ લિમિટેડ, અમદાવાદ.
SR No.537861
Book TitleJain 1963 Book 61 Bhagwan Mahavir Janma Kalyanak Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Devchand Sheth
PublisherJain Office Bhavnagar
Publication Year1963
Total Pages46
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Weekly, & India
File Size7 MB
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