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________________ ३८४ જેનહિતે હુ. १०००, ५००, २५०, १००, ४०, २५, जो कुछ रकम आपकी शक्ति व श्रद्धा अनुसार एक मुष्ठि देकर 'स्कॉलरशीप फंड' को स्थायी बनाने में सहायभूत बनी । याद रखो कि आपकी एक कोडी संस्था के मासिक खर्च में नहीं जाती है, परन्तु मात्र विद्यार्थियों को स्कॉलरशीप देने में ही जाती है । आप लोगों से ज्यों ज्यों ज्यादा सहा, मिलेगी त्यों त्यों ज्यादा विद्यार्थियों को संस्था में रख कर पढाये जा सकेंगे। फिर भी याद रखो कि यह संस्था तीनों संप्रदाय के विद्यार्थियों की सेवा कर रही है इसलिये आप को उचित है कि तीनों सम्प्रदाय में आपके जो जो मित्र स्नेही हो उनसे मिल कर संस्था के लिए मासिक स्कॉलरशीप या एकमुष्ठि दान प्राप्त करने की कोशीश करना आपका परम कर्तव्य है । 9 प्रत्येक जैन को सोचना चाहिये कि इतना महाभारत बोजा यदि अकेले मनुष्य के शिर पर रखा जायगा तो समा। एक उच्चकोटि का स्वयंसेवक थोडे अर्से में गंवा बैठेगी । यदि प्रत्येक जैन थोड़ा थोड़ा कम करेगा तो वह स्वयंसेवक दीर्घकाल तक जींदा रहकर और भी सेवा बजाते रहेगा। . हम देखते हैं कि हजारः जैनी भाई मी० वाड़ीलाल की तारीफ करते हैं और धन्यवाद की तालीयां पीटते हैं । परन्तु सच्चा जैनी वोही है कि जो अपनी शक्ति अनुसार सहाय करने के लिये कटिबद्ध हो जाय । श्रीमंत जैनी को हम सूचित करेंगे कि प्रतिमास ४०) रुपे की स्कॉलरशीप ८ साल तक देने वाले महाशयों की बडी रंगीन तसबीर दोनों विद्यार्थी गृहों में रखी जाती है, जहां कि देशभक्त गांधी, गोखले, बीसांट,
SR No.537769
Book TitleJain Hitechhu 1917 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherShakrabhai Motilal Shah
Publication Year1917
Total Pages74
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size10 MB
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