SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो तोको कांटा बुवे, ताको बो तूं फूल; ताको फूलका फूल है, वांको कांटा मूल ! कहता हूं, कह जात हूं, देता हूं हेलाः " गुरुकी करनी गुरु तिरे, और चेलाकी चेला." .७ (६) जे हने कांटो मारे रहेने पण तुं तो फूल ज मारजे; अर्थात् फूल जेवी सुगंधी याने प्रेमभावना रहेना तरफ मोकलजे. एम करवायी रहने तो फूलनु कूल ज मळशे अने पेलाने कांटा अने शूळ ज वागशे. कांटो मारनार जे खराब. भावनाथी कांटो फेंके छे ते खराब भावना रहेना सूक्ष्म देहमांथी छूटीने हारा तरफ दोडशे पण त्हारा सूक्ष्म शरीरमा तेवी गदी चीजने रहेवाने जगा न होवाथी ( रहेन आकर्षण न थवाथी) ते खराब भावना पाछी जइ उयहांथी नीकळी हती त्यहांज पेसे छे. आरीते ते काटो हेने ज वागे छे. हवे तुं के जेणे हेर्नु भलं ज इच्छयु हतुं एवा हारा सूक्ष्म शरीरमाथी छूटेली ते सुगंधमय प्रेम भावना त्हेना शरीरने स्पर्शवा जशे, त्यहां जो ते पोताने लायक खुणो खचको पण जोशे तो तो त्यहां रहीने त्हेने फायदो करशे; अने जो तीलमात्र जगा पोताने लायकनी नहि जुए तो पाछी फरीने पोताना जन्म स्थळनी आषादीमां वृद्धि करशे. आ हिसाये रहने तो फूलनुं फूल ज मळशे. (७) कबीरजी कहे छे के, हे मनुष्यो ! हुं कहुंछु अने फरीथी ठेवटने माटे कही जाउँछु-अरे 'हेला' एटला टकोर मारीनें कहुछ के " गुरुनी करणीथी गुरु तरशे अने चेलानी करणीथी चेली नरशे." जे करशे ते पामशे. गुरुनी करणी चेलाने के चैलानी करणी गुरुने काइ काम लागशे नहि. आपबळ सिवाय सर्व नकामुं ३. गुरु काइ विमान आपी शकता नथीः ते तो पोतानुं विमान पोते
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy