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________________ २८ नदी कुदरत दो एक सम, हरकिसीको देत; जिसका जैसा पात्र हो, उतना वो भर लेत. फर्याद करे छे के ? शुं तुं नथी जाणतो के हें प्रथम ज बुरां काम कया छे, तो हवे शुं म्हों लइने फर्याद करवी ? एने यहां तो इनसाफ ज छे; मात्र त्हारी यादशक्ति त्हारां कुक ने लीधे मारी गइ छे तेथी पाछलां कामो अने आजना बनावो वच्चे जे झीणो पण सलंग तार छे ते तुं जोइ शकतो नथी. (५) नदी अने कुदरत बन्ने एक सरखां छे; आने आपु अने आने न आधु एवो एक्केनो विचार छ ज नहि. खुल्ला मेदान वच्चे नदी धीमो मीठो अवाज करती वह्यां करे छे, के जे अवाज एम बोले छे के "आवो अने आ जळ पी शान्त थाओ!" जे 'अहंपद' वाळो माणस नमीने पाणी भरवान पसंद न करतो होय ते तरस्यो ज मरे तो त्हेमां नदीनो शो दोष ? अने जे माणस एटली नमनताइ बतावी शकतो होय ते माणस पोताना खोबाना प्रमाणमां के पोतानी पासे प्यालो-लोटो के घडो जे कांइ पात्र होय रहेना प्रमाणमां पाणी लइ शकशे कोइ ओछु अने कोइ वधारे. नदीए कोइने ओछु आप्यु नथी अने कोइने वधुए आप्यु नथी; कोइए वधु लीधुं अने कोइए ओछ लीधुं. आपनारनो दोष नथी, लेनारनो दोष भले कहो. यहां पण लेनारनो 'दोष' न कहो, लेनारनी 'शक्ति'कहो. (लेवानुं सूझ्यु ए पोते ज सद्भाग्यनी नीसानी छे.) तेवीज रीते विश्वमा सुख ज भरेलु छे, पण ते लेवानी जेटली हमारी शक्ति तेटलं हमारुं ! हमारा घडाने-हृदयने जेम विशाल वनावशो तेम वधारे सुख एमां झीली. शकशो.
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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