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________________ ६ एक घडी आधी घडी, भाव भजनमें जाय%; सत संगत पलहि भली, जमका धका न खाय. कबीर सेवा दो भली, एक संत एक राम; . राम है दाता मुक्तिका, संत जपावे नाम. जगाए अहंपद होय, पारका दुःखोनो ख्याल पण हृदयमा न होय; आबु जणाय तो एवा गुरुने, कवीरजीए बीजी जगाए कह्यु छे तेम, जंगल वच्चे आवेला कोइ उंडा कूवामां नाखी देवा, के जेथी ते गुरु बीजाओने पण डूबावता बंध थाय ! (६) भजनना बे प्रकारः (१) द्रव्य भजन (२) भाव भजन. 'द्रव्य भजन' तो बहारथी भगवाननी स्तुति करवी ते, स्तवन गावां ते. अने 'भाव भजन ' एटले मनथी भगवानमां लीनता करवी ते. एवी लीनता जो एक घडी के मात्र अडधी घडी ज थाय तो ते माणसने जमना धक्का बहु न खावा पडे. 'भाव भजन करतां पण जो सत्संगतनो:जोग मळी जाय तो जोइ ल्यो मजाह ! अडधी घडी नहि पण एक पल मात्र जो सत्संगत मळे तो एथीए वधारे लाभ थाय; कारणके आपणी मेळे जे 'भाव भजन करीए ते करतां संते बतावेली कुंचीवडे भजन करीए ए हजारगणुं वधारे असरकारक नीवडे, ए देखीतुं न छे. (७) कबीरजी कहे छ के 'सेवा' करवी तो बेनी ज करवीः कां तो 'संत' नी अने का तो रामनी. वच्चे अधकचरीआ पुरुषोनी के पन्थरनी सेवा करवाथी कांइ दहाडो वळे नहि. राम मुक्तिना दाता छे, अने संत छे ते राम नाम बराबर जपवानी रीत बतावे छे, रामनी पीछान ' ( introduction ) फरावे.
SR No.537763
Book TitleJain Hitechhu 1911 Book 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVadilal Motilal Shah
PublisherVadilal Motilal Shah
Publication Year1911
Total Pages338
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Hitechhu, & India
File Size21 MB
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