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________________ श्री चिलाती पुत्र १०८ धर्मशानशासन (6418) विशेषis ..४-११-२००८, भंगार वर्ष-२१is चोरों घर से बाहर निकलते ही सेठ ने कुहराम मचा दीया; नगररक्षक वहाँ आ गये। उन्हें लेकर सेठने अपने पुत्रों के साथ चोरो का पीछा किया। नगररक्षकों और सेठ को अपने पीछे पीछे आते देखकर चोरी का माल रास्ते के बीच फेककर चोर अपने रास्ते पर दौड चले। अपने पीछे सेठ और पांच पुत्रों को आता देखकर चिलातीपुत्र ने सुसुमा का वध कर डाला । चिलातीपत्र ने तेज हथियार से उसका सर काटकर सिर हाथ में लिया व धड वहीं पर छोड़कर भाग गया। सेठ और पुत्रोंने सुसुमा का धड देखा । सेठ ने अपनी पत्री और पांचो भाइयों ने अपनी बहिन की ऐसी क्रूरता पूर्ण मृत्यु देखकर बड़ा विलाप किया और घर लौटते समय वीर प्रभु का उपदेश सुना। देशना सुनकर पाँच पत्रों ने श्रावक धर्म स्वीकार और सेठ ने तो संयम ही ग्रहण कर लिया । उत्तमतापूर्वक संयम पालकरा तथा उग्र तपश्चर्या करके सेठ स्वर्गपधारे। जगह खड़ा रहा और वह उपशम विवेक और संवर इन तीन पदों का ध्यान धरने लगा । वह ध्यान के साथ सोचता गया कि इन तीन शब्दों का अर्थ क्या ? सोचते सोचते उसने अपने आप उपशम्शब्द का अर्थ बिठाया कि 'उपशम याने क्रोध की| उपशांति, क्रोध का त्याग ।' ऐसा सोचकर उसने उपशम का आचरण किया। विवेक शब्द का अर्थ सोचते हए उसने समझा कि 'करने योग्य हो, उसको ही ग्रहण करो और न करने योग्य हो उसका त्याग करना याने विवेक ।' ऐसा समझकर उसने विवेक का ग्रहण किया । अन्त में संवर शब्द का अर्थ भी वह समझा कि 'पांच इन्द्रियों के जो तूफान हैं उसका निरोध अर्थात पांच को उनके विषय में जाती हई रोकना उसका नाम है संवर ।' यह अर्थ समझकर उसने संवर का भी प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार वह चिलातीपुत्र उस त्रिपद का ध्यान धरते हुए वहीं कायोत्सर्ग में रहा । उसका पूरा शरीर खून से सराबोर था। उसकी गंध से सूई समान मुखवाली (शुचिमुखी) चींटीया आकर काटने लगी। काटते काटते असंख्य चींटीयो ने उसका शरीर छलीनी जैसा कर डाला। उसने सर्व वेदना धीरजपुर्वक सहन की और ढाई दिन में उसकी मृत्यु होते ही वह स्वर्ग में | गया। चिलातीपुत्र सुसुमा का सिर हाथ में लेकर तेज गति से मार्ग काट रहा था । उसका शरीर खून से भीगा हुआ था, सुसुमा की हत्या के कारण वह मानसिकरुप से टूट चुका था। वह अपने आप पर क्रोधित हो उठा था । मार्ग में उसने एक मुनिराज को कार्योत्सर्ग दशा में खड़े देखा । मुनि को देखकर वह बोला, 'हे मुनिश्वर ! जल्दी से मुझे धर्म कहीये, नहि तो मैं इस स्त्री के मस्तिष्क की भाँति आपका मस्तिष्क भी उडा दूंगा।' मुनि को कुछ पात्रता ठीक लगी इसलिये उन्होंने 'उपशम् - 'वेवेक - संवर' इन तीन पदों का , उच्चारण किया और आकाशमार्ग से चल दिये। चिलातीपुत्र ने सोचा, 'मुनि ने आकाशगामिनी - विद्या का उच्चारण किया या कुछ मंत्राक्षर कहे ? या कोई धर्ममंत्र कहा ?' ऐसे चिंतन करके वह मुनि की इस प्रकार सिर्फ ढाई दिन मे उपशम्, विवेक और संवर का चिंतन करते हुए चीटीयो के दंश की असह्य पीड़ा शांत चित से सहन करके चिलाती पुत्र स्वर्ग पधारे । ऐसे , चिलातीपुत्री को हमारेलाख लाख वंदन... COM YN
SR No.537274
Book TitleJain Shasan 2008 2009 Book 21 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2008
Total Pages228
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size11 MB
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