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श्री चिलाती पुत्र
.१०८ धर्म थान शासन (6पाडs) विशेषis .त४-११-२००८, भंगणवार
वर्ष -२१ .
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उत्पन्न हुआ। उसका नाम चिलाती पुत्र रखा गया।
यज्ञदेव की स्त्री का जीव भी स्वर्ग से चिलाती दासी
की सेठानी याने धनसार्थवाह की स्त्री सुभद्रा की कोख से पांच एक यज्ञदेव नामक ब्राह्मण... क्षितिप्रतिष्ठित नगर
पुत्र के बाद छठी सुसुमा नामक पुत्री के रुप में उत्पन्न हुआ। में रहता था । वह हमेशा जिनमत की निंदा करता था और
धनसार्थवाह ने अपनी पुत्री की रक्षा के लिए चिलाती स्वयं को पण्डित समझता । उसने जाहिर किया कि जो मुझे शास्त्रार्थ में जीतेगा उसका मैं शिष्य बनूंगा । समय बीतने पर
पुत्र को रखा । सुसुमा और चिलातीपुत्र साथ साथ खेलते
लेकिन कोई कारण से सुसुमा रोने लगती तो चिलातीपुत्र एक बालसाधू ने उसको शास्त्रार्थ करने के लिए अपने गुरु के
उसके गुप्तांग पर अपना हाथ रखता तो सुख पाकर बाला पास पधारने का निमंत्रण दिया । खुश होकर यज्ञदेव उस बालसाधू के साथ उनके गुरु के यहाँ गया। कुछ ही देर में वह
सुसुमा रोनाबंद कर देती। हार गया और तय किये मुताबिक उन गुरु से दीक्षा ली । एक
कुछ समय पश्चात श्रेष्ठी को इस बात कि जान कारी दिन शासनदेवी ने उससे कहा, 'जिस प्रकार चक्षुवाला मनुष्य
मिली, उसने इस दासीपुत्र - चिलाती पुत्र के अपने घर से भी प्रकाश के बगैर नहीं देख सकता, उसी प्रकार जीव ज्ञानी
निकाल दीया। होने पर भीशुद्ध चारित्र के बिना मुक्ति नहीं पा सकता है।'
यहाँ से निकाले जाने पर वह जंगल में गया । ऐसी वाणी सुनकर यज्ञदेव मुनि अन्य सर्व यतियों की सिंहगुफा नामक भील लोगों के दल में पहुँचा । दलपति की भाँति शुद्ध चारित्र पालने लगे।
मृत्यु होने पर उसका श्रेष्ठ शरीर वैभव देखकर भील लोगों ने
उसे अपना स्वामी बनाया। यज्ञदेव के साधु बनने कारण उनकी स्त्री विरहवेदना न सह पाई, इसलिये यज्ञदेव को वश करने के लिए तप के
चिलाती पुत्र को सुसुमा की याद सताया करती थीं। |पारणे के दिन यज्ञदेव पर जादू-टोना किया। यज्ञदेव का
विषय रुपी शस्त्र की पीड़ा बढ़ती चली, इस कारण अपने सर्व शरीर दूबलापड़ता गया और मृत्यु पाकर स्वर्ग को गया।
सेवको को धन सार्थवाह के यहाँ चोरी करने लेगया एवं सेवकों
को कहा, 'जो माल सामान हाथ लगे वह सर्व सवेकों का और उसकी स्त्री भी यह दुःख सहन न कर पाई और ज्ञान
ससमाको उठालायेतोवह चिलातीपत्र की।' होते ही वह भी दीक्षा ग्रहण करके स्वर्गपधारी।लेकिन अपनेसंसारीपने के पति ने भी साधुता ग्रहण थी पर उसके 5 रात्रि के समय सब चोर धनवह सेठ के यहाँ पहुंचे। उपर वशीकरण फेंका था - इसकी गुरु के पास .
. कई चोरों को देखकर धनसेठ अपने पांच पुत्रो को जाकर आलोचनान की।
'लेकर प्राण बचाने के लिए एकांत में छप गये। यज्ञदेव का जीव स्वर्ग से राजगृह नगर में
सामना करनेवाला कोई न होने से चोरों ने खूब धन धनसार्थवाह की चिलाती नामक दासी के उदर से पुत्ररुप में
___ बटोर कर और चिलातीपुत्र सुसुमा को उठाकर बिदा हो गये।