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जैन इतिहास की...
श्रीनशासन (16वाडी)
वर्ष: ११
मंड: 34ता .२७-७-२००४
(जैन इतिहास की ५०० की अमषम विशेषता)
卐 ५०० शिष्यों के साथ श्री देवगुप्त सूरिजी ने पंचाल देश में विचरण किया था।
५०० रमणियों का त्याग कर महिचन्द्र राजवी ने दीक्षा स्वीकार की थी। + ५०० क्षत्रियों के साथ नाटक करते विश्वकर्मा ने उन ५०० के साथ दीक्षा ली थी।
५०० पीच्छ रत्नवती राणी ने पोपट को खींच कर भारी उपार्जन किया। 卐 ५०० दिन का आयुष्य बकाया है सुनकर सिंह केसरी ने दीक्षा धारण की थी। 卐 ५०० मुनि के साथ धर्मधोषसूरि पांच पांडव को प्रतिबोध देने गये थे।
५०० राजकुमारों के साथ कालकुँवर राजा ने मथुरा नगर पर युद्ध किया था। 卐 ५०० गाँवों का अधिपति था पूर्वभव में मृगापुत्र का आत्मा । + ५०० योजन चौडी अंतरनदी पुष्कारार्ध क्षेत्रे में आई हुई है। 卐 ५०० हाथियों के बच्चे से धिरे हुए सूअर का स्वप्न विजयसेन सूरि ने देखा था। + ५०० मुनिवरों के आचार्य पदवी भोरल तीर्थ में हुई थी। 卐 ५०० मुनिवर राणकपुर तीर्थ की अंजनशलाका प्रतिष्ठा में हाजिर थे। 卐 ५०० श्रमण को वन्दन कर आहार लेना ऐसा छह मासिक अभिग्रह गुणागर ने लिया था। + ५०० तापसो का अधिपति दुर्ध्यान से मरकर चंडकौशिक नाग बने थे। 卐 ५०० वर्ष पूर्व हुए जंगमयुगप्रधान धर्ममूर्तिसूरिजी के पास अनेक विद्यायें थीं। 卐 ५०० प्रतिमा की एक साथ अंजनशलाका भावसागर सूरिजी ने की थी। + ५०० मुनिवरों के साथ पालकाचार्य जी ने कोंकण देश में धर्मप्रभावना की थी।
५०० मुनियों के साथ पू. वैकुंठसूरि जी ने तैल्गदेश में शासन प्रभावना की थी। 卐 ५०० कहानियाँ मेनापक्षिणी ने त्रैलोक्य सुन्दरी को सुनाई थी।
५०० ग्रन्थों का सर्जन एक हजार वर्ष पूर्व कल्पनानंद सूरिजी ने कीया था। ॐ ५०० सुर्वण मोहर की जुआ खेलते हारने वाले कुन्देद्र बाद में त्यागी बना था।
५०० धनुष प्रमाण वाली १०८ जिनप्रतिमा जंबूवृक्ष की मणिपीठिका पर है। 卐 ५०० साधुओं में से विद्वान एवं योग्य ऐसे ८४ शिष्यों को बडवृक्ष के नीचे आचार्य पद प्रदान
किया गया था। प्र ५०० अश्वों को लेकर रात्रि के दौरान विमलमंत्री ने पाटण छोडा था।
५०० पंक्ति में सुवर्ण-रजत के बर्तन रखकर आभुसंघवी ने संघ की भक्ति की। 卐 ५०० धनुष प्रमाण देहमान महाविदेह क्षेत्रे के २० विहरमान तीर्थंकरों के हैं।
५०० चोर एक साथ चोरी करने धनकुबेर जंबुकुमार के भवन पर गये थे।
५०० मंत्री देवतागण शक्रेन्द्र महाराज के पास होते हैं। 卐 ५०० आयम्बिल की तपश्चर्या श्री चन्द्र केवली ने पूर्व भव में भाव से की थी।
. - आत्मिक मुक्ति