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________________ श्रीनशासन (16वाडीs) *वर्ष :१५ मं5 : 33*ता. २४-६-२००३ વયોવૃદ્ધ તપસ્વિની પ્રવર્તિની પૂ.સા. શ્રી ખાંતિશ્રીજી મ.નો સમાધિપૂર્વક કાલઘર્મ सा. श्र हर्षितप्रज्ञाश्रीजी तरफथी, अने जयणामां अप्रमतता हती। वंदना, अनुवंदना, धर्मलाभ साथे जणावानु के परमशासन पू. गुरूदेव तपाचारना पालनमा शूरा हता, त्रण मासक्षमण प्रभावक तपो च्छाधिपति पूज्यपाद आ.भ. श्रीमद् विजय प्रेम- | कर्या, त्रीजो मास क्षमण लगभग ८८ वर्षनी बुजुर्ग अवस्था कर्यो, रामचन्द्र सूरी (रजी महराजाना अद्वितिय साम्राज्यवर्ती, मरूधर देशे ३० वा उपवासे पण टेका विना नवकारवाली सतत आराधना, सद्धर्मसंरक्षः पू.आ. भ. श्रीमद् वि. कमलरत्न सूरीश्वरजी गुरूदेवमां एक खासीयत हती के जिन्दगीना अंत सुधी टेको नहीं महाराजानी प्रेरणाथी सद्धधर्ममां स्थित, परम तपस्विनी प्रवर्तिनी लीधो, एक ज आसने ४-५ कलाक सुधी बेसतां बे वखत १९ वयोवृद्धा पर पकारी पू. गुरुदेवश्री श्वांतिश्रीजी म.सा.वै.व.प्र.१० उपवास ११-९-८ अने अठ्ठम् घणा कर्या, सिद्धितप चतारी अठ्ठ ता. २५-४-:००३, शुक्रवारे सवारे ११.५ कलाके अद्भूत समाधि दस दोय तेर काठीयानी अठ्ठम्, ९२ वर्षनी उमर सुधी लगभग अने स्वस्थ सह श्री चतुर्विधसंघनी हाजरीमा श्री नमस्कार पर्युषणमा अठ्ठाइनो तप,५०० आयंबिल संलग, ६८ वर्धमान तपनी महामंत्रनुं श्रवण करतां कालधर्म पाम्या छे, परम गुरूदेवश्रीनी ओली, १०० ओली पूरी करवानी घणी भावना हती पण गुरुदेव विदायथी जि. शासनने एक चारित्रनिष्ठ साध्वीजी भगवंतनी मोटी टी.बी.ना रोगथी ग्रसित थया, भावना पुरी न थई, प्रशिष्याओं मे खोट पडी छे, आ निशंक छ। १०० ओली पुरी करी आपशुं अq कडं तो खूबआनंदमां आवी स्वर्गत पू. गुरूदेवश्रीओ वि.सं. २००६ वै.व.६ना दिवसे श्री अनुमोदना करवा लाग्या, नवपदनी ओली, अकासणा अने बेसणा सिद्धगिरि मह तीर्थनी पावन भूमिमां बीजी वखत भागीने ४५ वर्षनी जयां सुधी शारीरिक स्वस्था रही त्यांसुधी कर्या, तपधर्मना आराधक प्रौढवयमा रिद्धांत महोदधि, कर्मसाहित्य निष्णात, सच्चारित्र बनी, अमारा सहुना परम आदर्श बन्या, दिक्षीत थया ते दिवसथी चूडामणि पूजापाद आ.भ. श्रीमद् वि. प्रेमसूरीश्वजी महाराजाना मिष्ठान्न अने बादाम सिवाय मेवानो त्याग हतो द्रव्य पण अल्पज (संसारीपक्षेई) वरदहस्ते संयम स्वीकारी जीवननी अंतिम पल वापरता। सुधी रत्नत्रय साधनामा लयलीन बन्या, पू. गुरूदेव अनेकानेक पू. वडिल गुरूवर्यो साथे अजोड भकितभावना, अने नानाओ गुणोना निधि : तां, जिनाज्ञा- जिनभक्ति रोम-रोममा वसेली हती, | प्रत्ये अनराधार वात्सल्य भावना, स्व. गुरूदेवश्रीनी सुशिष्या, दर्शन शुद्धि बनी हती, अमदावादमा दररोज ४०-५० देरासरना अमारा सहुना तारणहार सरलस्वभावी स्व. गुरूदेवश्री किरण दर्शन करता । तां, दीक्षित थतां पूर्वे पण वीरवाडाथी बामणवाडा | प्रज्ञाश्रीजी म.सा. जीवन पर्यंत सतत गूरू सेवा करी अमारामां तीर्थ दर्शन क वा दररोज २ कि.मी. चालीने जता हता, अने प्रायः | अबुभकितनुं बीज बोयु के त्यारपछी १७ वर्ष एमने भकितनो लाभ छेल्लां ३२ वर्षी प्रज्ञाचक्षु हता, अटले गुरूदेवश्रीने पूछवामां आवतुं मल्यो . के आप अहिःो ज परमात्माने याद करी दर्शन करी लो ने। आप । स्व.गुरूदेव आंखोनहिं जोवा छतां १० वर्ष सुधी हाथ पकडीने जोई तो शकर नथी, ते वखते गुरूदेव कहेतां के भलेने हुं ना जोई विहार को, जंधाबलथाकी जवाथी पिण्डवाडा श्री संघना अत्यंत शकुं, पण पर गत्मा तो मने जूओ छे ने। गुरूदेने नवकार मंत्र उपर आग्रहथी छल्ला वीस वर्षथी पिण्डवाडा स्थिरवास हतां. अढलक श्रद्धा हती, ज्यारे जोईए त्यारे नवकार गणता ज होय जे | छेल्लु आ वर्ष अमारा माटे भयजनक निवडयुं, बेत्रण वार कोइ अमनी से आवे अने नवकार गणवानी प्रेरणा करता, अने | गुरूदेवश्री एकदम सीरीयस थइ गयेला, छेल्ला ओक महिनाथी श्वास जयां जाओ त मारा दर्शन करजो, अम कहेता। सुजन, ताव आदि रोगो मे घेरो घाल्यो, डो. नूरमहोम्मद, स्व. गुरदेवना पू. गुरूदेव श्री रोहिताश्रीजी म.सा. पू.सा. श्री डो.प्रद्युम्ननी ट्रीटमेन्ट चालुज हती। पिण्डवाला श्री संघ, प्रमुखश्री रोहिणाश्रीजी ।.सा.नी परम कृपाथी ग्रहणशिक्षा अने आसेवन शिक्षा ट्रस्टीगण अने गुरूदेवश्रीना संसारी सम्बंधीओ सेवामां कटीबद्ध हता, पामी ज्ञानोपा-क बन्या, विनय - वैयावच्च-सरल आराधक-नम्र- तबीयतनी स्वस्थता माटे अनेक द्रव्य अने भावोपचारो चालु छतां, निखालसता. गंभीरता आदि गुणो स्वाभाविक हता, गुजरात- गोझारा वै.व. प्रथम १०नादिवसे एक पण काम न लाग्या, सवारे सौराष्ट्र अने र जस्थान देशोमां शुद्ध संयम चर्याथी विचरी, चौमासा ओक हाथे वधारे सुजन आव्युं, अमे सहु गभराइ गया के हवे शुं थशे? करी अनेक भ दुकोने संयमनी सन्मुख बनाव्या, उमर थतां जंधाबल | सवारे ५-११ वाग्याथी सतत नवकार संभलावानुं चालुज हतुं, १० क्षिण बन्या थी अशकत होवाथी पुंजवानी शकित न हती ज्यारे | वागे डो. आवी तपास्युं, बी.पी.पल्स वि.नोरमल छे, गुरूदेव एकदम ज्यारे उठता सता अने पग मूकता पहेला पूछता पूज्यु छे। क्रिया | स्वस्थ छे, चिंता जेवू नथी छतां अंतर हिंम्मत धारण होतुं करतुं ते में में
SR No.537268
Book TitleJain Shasan 2002 2003 Book 23 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2002
Total Pages302
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size17 MB
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