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________________ પાંચ મુમુક્ષુઓકી ભાગવતી દીક્ષા કા સંક્ષિપ્ત પરિચય श्री जैन शासन (वर्ष३८ ॥ २२-११-२००१ के पथिक बनने नवयुवक 'विकासकुमार' सुपुत्र प्रकाशचंद, सिंह की शूरवीरता पूर्वक आगे बढा है। उसे हमने अत्यंत भावोउल्लास से आज्ञा प्रदान की । ऐसा अनुपम महोत्सव धन्यधरा पिन्डवाडा में ही सफल | परिपूर्ण हो ऐसी हमारी मनोभावना होने से दीक्षा मुहूर्त एवं महोत्सव में अपनी निश्रा प्रदान करने हेतु पिन्डवाड़ा में विराजमान "मेवाड देशोद्धारक" प. पू. आ. देव श्रीमद् जितेन्द्र सूरीश्वरजी के समक्ष मांगलिक आशीर्वाद ग्रहण कर २०५५ दशहरा (आसो सुद १० बुधवार ता. २०-१०-१९९९) के दिन खेडब्रह्मा जि. साबरकांठा, विराजमान प. पू. आ. देव श्रीमद् विजय कमलरत्न सूरीश्वरजी महाराज साहेब के समक्ष संघ सहित उपस्थित हुये। हमारी भावपूर्वक विनंती को ध्यान में रखते हुये प. पू. आ. देव श्रीमद् विजय अजित रत्न सूरीश्वरजी महाराज साहेब विक्रम संवत् राजस्थानी २०५७ गुजराती २०५६ जेठ सुदी १० रविवार ता. ११-६-२००० को "दीक्षा का शुभ मुहूर्त" प्रदान कर हमारे भावो में नई चेतना जागृत की राजस्थान आदि प्रान्तो में चैत्र सुद से नया वर्ष लगता है। पिन्डवाड़ा की धन्यधरा में अपने कर कमलों द्वारा दीक्षा प्रदान करने हेतु प. पू. आ. देव श्रीमद् कमल रत्नसूरीश्वरजी ने स्वीकृती देकर हमे अत्यंत उपकृत किया। इसी पावन वेला में मुमुक्षु शालिनी कुमारी (अमृतलाल चुनीलालजी महेता) एवं मुमुक्षु सुन्दरकुमारी उर्फ सोनमकुमारी (पारसमलजी छोटालालजी सादरीया) की भी पुनीत प्रवज्या होगी। ऐसे अनुपम अवसर पर आप सहकुटुम्ब हमारा भावभरा अग्रिम आमंत्रण स्वीकार कर हमारे लाडले नवयुवक एवं लाडली वालाओं की भाववृद्धि करने एवं संयम मार्ग का गुणगान एवं अभिवादन करने अवश्य पधारे ऐसी हमारी हृदय पूर्वक विनंती है। :: महोत्सव का कार्यक्रम :: पू. आचार्य देवश्री का नगर प्रवेश बैठ सुद २ ता. ४ ६ २००० श्री सिद्धचक्र महापूजन जेठ सुद ८, ता. ९-६-२००० भव्य वर्षीदान का वरघोडा एवं बहुमान जेठ सुद ९ ता. १०-६-२००० दीक्षा प्रदान जेठ सुद १० ता. ११-६-२००० :: संपर्क :: ऋषभ जैन उपकारण भंडार १९६- ए. तारा हाऊस, पहला माला, रुम नं. १५, डॉ. विगास स्ट्रीट, कावेल क्रोस नं. ८ (चिराबाजार) मुंबई - २. फोन (ओ) २०८०७३३ (घर) २०११०४१ निमंत्रक संघवी धरमचंद पुखराज किस्तुर दजी सदर बाजार, पिण्डवाडा, पि. ३०७०२० (राज.). स्टे. सिरोही रोड (वे. रेल्वे.) अभिनंदन पत्रों के कुछ नमूने यहां प्रदर्शत है। ॥ श्री शांतिनाथाय नमः ॥ ॥ श्री प्रेम, राम, राजतिलकसूरि सदगुरु | नमः ॥ श्री नवीवाड़ी झावबावाडी राजस्थान जैन संघ मुंबई दीक्षार्थी सन्मान समारोह मुमुक्षु श्री विकास सुपुत्र श्री प्रकाशचं जी शाह का हार्दिक अभिनंदन प. पू. वर्धमान तपोनिधि श्रीमद् विजय कमलरत्नसूरीश्वरजी महाराजा आदि तीन आचार्य भगवंत एवं विशाल साधु-साध्वी की निश्रा उपस्थिति में संयम मार्ग के पधिक का हार्दिक अभिनंदन. श्री प्रकाश के घर विकास ने धर्म की ज्योत जलाई। चि. विकास ने असार संसार का त्याग कर संयम की वंशली बजाई। कंटकों से भरे इस मार्ग में तुम सदा विजयी रहो. उच्च आदर्शो से भरे इस पथ पर तुम सदा गंगा बन बहो । आधुनिकता की अन्धी दौड़ में, भौतिकवादी सुखों को पाने की होड़ में, मानव मात्र निरंतर भ्रमित होता जा रहा है। युवापीढी पथभ्रष्ट होती जा रही है। चारों ओर ओक शून्य का निर्माण होता नजर आ रहा है। अंधेरे की कालिमा सूर्य को निगलने की कोशिश में लगी हुई है। दानवता के जहरीले पंजे मानवता को नौंचने में लिप्त है, ऐसे में प्रकाश के आंगन में विकास की ज्योत प्रज्ज्वलित हो रही हो और धर्म - ध्वज - संयम की बुनियाद पर निर्मित संस्कारों के मंदिर पर फहराने को उतावला हो रहा हो तो ये परे जैन समाज के लिए गर्व, गौरव घमंड एवं अभिमान की बात है । भक्त से भगवान बनने की पहली सीढी है वैराग्य । स्वयं तीर्थकरों को भी साधु बन तपस्या में लीन होकर कर्मों की निर्जरा करनी पड़ी है। पिण्डवाडा की धरा आज स्वयं को धन्य मानकर हल्ला रही है कि उसके आंगन का एक दीपक धर्म मार्ग पर आलोकित होने जा रहा है। धन्य है चि. विकास के परिजनों से की जिनके जीवन बगीचे में ऐसा सुमन खिला जो युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बन धर्म के धुरन्धरों के बीच अपने ज्ञान बल पर अपना अनोखा मुकाम बनायेगा । - - चि. विकास आज सम्पूर्ण जैन समाज तुम्हारे जीवन मार्ग के परिवर्तन की इस धार्मिक बेला पर परम पिता परमेश्वर से ये
SR No.537264
Book TitleJain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2000
Total Pages354
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size22 MB
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