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________________ ल THHHHHHHHHHHHHHHHHHHHNAAAAAAAthwest पाय मुमुक्षुमो मागपती संक्षिप्त परिचय श्री जैन शासन (8418)* वर्ष १3 * 3८/3८ * ता. २२-५- २१ EX8 २. मुमुक्षु विकासकुमार ३. मुमुक्षु शालिनीकुमारी _ मुमुक्षु विकासकुमार ने मुंबई चिराबाजार में जहां रहते थे ४. मुमुक्षु सोनमकुमारी की भागवती दीक्षा वहां मंदिर के पूरे स्टाफ का चांदी की गिनी से बहुमान किया एवं पू. सिद्धांत महोदधि आचार्य देव श्रीमद् विजय श्री | पिंडवाडा एवं पिंडवाडा के आसपास (पट्टी) के गांवों के समी प्रेमसूरीश्वरजी म. सा. का नाम कौन नही जानता। उनकी पावन पूजारीओं का भी बहुमान किया। भूमि पीडवाड में ३१ वर्षों के बाद सर्वप्रथम पीडवाडा के युवान मुमुक्षु विकासकुमार ने धर्मशाला में बैठकर भी वर्षीवन की दीक्षा = विकासकुमार की दीक्षा। ३१ वर्ष पूर्व आपके ही दादा दिया (अनुकंपा दान किया) एवं लोगों को लक्ष्मी का असारमा - ने अपने पूरे परिवार के सदस्यों के साथ पूरे परिवार ने पीडवाडा का भान कराया। की धरती पर पूरे कुटुंब ने सर्व प्रथम दीक्षा ली थी। पीडवाडा में मुमुक्षु विकासकुमार का परिचय किस्तुरचंदजी हंसराजजी संघवी परिवार की यह ७ वीं दीक्षा थी। पंचप्रतिक्रमण, प्रकरण, भाष्य, संस्कृत बुक, साधु क्रिया शा किस्तुरचं जी एक भद्रिक धर्मानुरागी, सदाचारसंपन्न गृहस्थ थे के सूत्र, एवं धर्मबिन्दु, धर्मरत्न प्रकरण, धर्मसंग्रह, उपमिति भवप्रपंचा उन्हीं के ती- सुपुत्र धर्मचन्दजी, कालिदासजी, पुखराजजी थे कथा, पंचवस्तु ग्रंथ, उपदेश रहस्य, योगविंशिका, यंग कालिदासजी के पूरे परिवार ने दीक्षा ली, जो पू. आचार्यदेव श्रीमद् दृष्टिसमुच्चय, आदि ग्रंथों की वाचना सुनकर सम्यग्ज्ञान की साधना विजय कमल लसूरीश्वरजी म. है। धर्मचन्दजी के प्रकाशचन्दजी की है, एवं वैराग्य दृढ किया था । ३१ उपवास, नौ उपवास, मोक्षदण्डक तप, वर्धमान तप की १५ ओली करके सम्यक्प दूसरे पुत्र है इनका सुपुत्र मुमुक्षु विकासकुमार जो बचपन से ही की साधना करके शरीर को कठोर बनाया है यानी सहनशल प्रभुभक्त, लाखों रुपियों की सामग्री लेकर पूजा करने जाते थे, उस बनाया है। समय ऐसा त्गता मानो इन्द्र महाराजा। आपकी पूजा - भक्ति श्री शत्रुजय, गिरनार, समेतशिखरजी, जैसलमेर, शंखेशार, देखकर लोग मंत्रमुग्ध बनते थे। । अंतरीक्षजी, नागेश्वर, मक्षीजी, भोपावर, कुंभोज गिरि, कुलपावजी वर्षांतान देते हुए मुहूर्त लेने मुमुक्षु विकासकुमार गये । (कन्याकुमारी तक) तीर्थो की पूजा, दर्शन एवं सात से अधिक खेडाह्मा (गुजरात) में पू. तपस्वी गु. आ. भ. श्रीमद् छ'रीपालित यात्रा करके सम्यग्दर्शन को निर्मल बनाया है। सैकड़ों विजय कमल त्नसूरीश्वरजी म. सा. विराजित थे उनके पास दीक्षा किलोमीटर को पदयात्रा भी गुरु के साथ की है। का मुहूर्त लेने के लिये पीडवाडा से टाटा सुमो आदि अनेकों बाहनों - मुमुक्षु का कुटुंबीजन - से तथा मुंबई से भिन्न भिन्न वाहनो से पधारे थे। वहां खेडब्रह्मा संघ दादी-दादा, सुखवंतीबेन - धरमचंदजी अपूर्व सामिक भक्ति की थी। बा-बापूजी, कमलाबेन - पुखराजजी मुमुद परिवारने श्रीमहावीर जिनालय से वर्षीदानं देते हुए माता-पिता, पुष्पाबेन प्रकाशचन्द भव्य जुलूस (वरघोडे) के साथ प्रयाण किया। बाजार होते हुए भाई-भाभी, चिराग - सारीका आराधना भ नि में उतरा । पूज्यश्री ने मांगलिक सुनाया एवं मुमुक्षु भाई-भतीज, फेनील-आदित के दादाजी, पेताजी आदि परिवार ने अपने पुत्र के दीक्षा के मुहूर्त बुआ-फुआजी, बसीबेन शिवलालजी, पवनबेन प्रकाशनी, के लिये विनंति की और कहा कि - पुत्र जिता और मैं हारा हूं। हमें ताराबेन रणजितमलजी छोडकर संयममार्ग में न चला जाये इसलिये मैने तुम्हे नहीं कहने नानी-नाना, परसनबेन अचलदासजी, जैसे शब्द व हे । सब तुंने सहन किये । इस प्रसंग पर मुमुक्षु ने यह मामी-मामा-सुशीलाबेन हिंमतलालजी, गुरुदेव की कपा है ऐसा कहा । मुमुक्षु के परिवार ने श्री संघ को इन्द्राबेन जयंतिलालजी, दीक्षा में पधारने का आमंत्रण दिया। यह दृश्य देखकर संघ भी आशाबेन निकेशकुमार भावविमोर बन गया। श्रीसंघ ने मुमुक्षु का बहुमान किया। . काकी-काका-बसीबेन रमेशचन्द्र, बेबीबेन महेन्द्रकुमार, मुमुक्षु विकासकुमार राजस्थान के अतुलभाई थे । इनको - शशिकला-रसिककुमार, भी आधुनिकता पसंद नहीं थी। प्राचीन पद्धति से जीवन जीना, कल्पनाबेन - अरणिककुमार खादी पहनना आदि का बडा शौक था। अब दीक्षा के बाद खादी मासी-मासाजी-बेबीबेन- श्रीपालुजी, विमला- उत्तमचंदजी आदि कुछ न रहा, अब तो गुर्वाज्ञा एवं निर्देष पर जीवन है। इन्द्रा-दिनेशचंद्रजी, कल्पनाबेन-महेशकुमारजी के 1 VLOVCOVUJICICNTCOILOV GOVOJVCJVCOVOVCOVCOVOGOVCJIGJIGJIGSVEJECUTIVENCIVILJELSCOVEMENTIVESVEIVCG
SR No.537264
Book TitleJain Shasan 2000 2001 Book 13 Ank 26 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year2000
Total Pages354
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size22 MB
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