SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ IITTTTTTTTTTTTTTTTTTTT TET - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- ગુરૂ ગુણ ગ ઈ હું નિર્મલ થાઉં 3 ગુણ ગાઈ હું નિર્મલ થાઉં Н. НЕГЕ ЕНЕННЕННЕННЕННЕННЕННЕНННННННННННННННННННННННЕННЕН -.सौ. मनिता मार. शाह " निर्भधारासम, वन ते२था पावन; | दिक्षाका मार्ग सुलभ कर आपने वो ही बताया की मानवता हव्य विभूति, तुओशत शत है वहन." | दीक्षा खोइ हुइ आत्माको खोजनेके लिए है, मोह निद्रासे हे गुस्वर ! मैं आपका कैसे गण गावं? मेरी शक्ति भी | सोइ हुइ आत्मदशाको जगानेके लिए है, लेकिन खान या मैं जानती है । लेकीन आपने अम जैसे पामर जीवो पर | सोनेके लिए नहीं है । संयम जीवन पुदगलानंदी नहि जो उपकार किया है वो कभी भी भूल नहि पाऊँगी । लेकिन आत्मानंदी बनानेके लिए ही है । अपने तारव पू. अज्ञानके उधेरेमें बसे हमको आपने जो सम्यग्ज्ञानका गुरुदेवो प्रति भी आपका जो समर्पणभाव था की गदेिवो प्रकाश बता पा, रागमें मस्त हमको विराम की मस्ती भी के हृदयमें आपका अपूर्व स्थान था । जो बताइ वैसे हम आपको भूले ? आपके हृदयमें मैं थी आपकी याद हरपल में आती है। पाहि वा चता करना भी नहीं लेकीन मेरे हृदयमें आप किसी कविके शब्दोसे मैं मेरी भावना व्यक्त करती है। बस हादसे होंगे । आपने जो सन्मार्ग दिखाया वे ही "रह रहकर याद आपकी, दिलको तडपा जाती है। ..॥ सहारा है । जैसे सूरभी सुमन खिलते है और अमर वन कर स्व और सर्वस्वको सुवासित बना कर मीटा जाता वियोगकी दर्दीली घडियां, सही न हमसे जाती है।" है । वैसे ही आपको गुणपराग संसार के अनेक "हमारे से दूर होकर भी, हमारे पास हो तुम, भव्यात्माओको आत्मिक शान्ति, प्रसन्नता, पवित्रता और हमारी सुनी जिंदगीकी, एक आस हो तुम; परमानंदकी अनुभूति कराता है । आपको सारा जीवन कौन कहता हैं हमसे बिछुड गये हो तुम, शासनमें सदस्व सर्मपण कर आपने जो गुणसुरभी फैलाइ तुम्हारी योदोंसे रूपमें हमारी सांस हो तुम ॥" है । वह कभी मीट न शकेगी और न मीट पायेगी । एक “यत्रापि कुत्रापि गतापि हंसा, कविने कहा है कि भवन्ति ते तु महीमण्डनाय । "हाथ डिन नाडीके जैसे जल बिन तालाब है, हानिस्तु तेषां ही सरोवराणां; फूल बिन खुशबुके और प्रकाश बिन महत्ताब है । येषां मरालैः सह विप्रयोगः ॥" चांद विन जैसे नभकी सूना सभी समान है, एसी हमेरी हालत है । क्या बतावू ! एकही अरजू इसी तरह गुरुजी बिन आपके आज जैन समाज है ।" व्यक्त करके विरमती हूँ। आपकी संयमकी साधना, विशुद्ध आराधना, प्रभावक ___है करणा निधि ! करती हूं मैं अभिनंदन, श्रद्धा पुष्प प्रभावना और ध्येयकी जो उपासना थी वह स्व-परके कल्याणके लिए ही थी । जो कौन भूलेगा ? आपकी स्वीकृत करके मेरा चरणोमें शत शत वंदन'' जीवन सुरसरितामें निडरता, निखालसता, निरपेक्षता, आपकी जो मंगल कामना थी वो ही व्यक्त करती निष्पक्षता, निस्पृहता का निर्मल नीर बहाकर संयमका चीर “सर्वदा सौ सुखी थाओ, पाप कोइ ना आचरो । चमकाया जी की चमक झलक आज भी वैसी है । जिससे राग-द्वेष से मुक्त होकर मोक्ष सुख सौ जग वरो ।।' भाविको क याणार्थी आत्माओ प्रेरणाका पाथेय ग्रहण. करता है। Icizh Icker ઈસ્ટ ઇડિયન રેલવે કંપનીના જૂના કરારો પૂરા થતા હોઈ વહીવટ રાજ્ય લઈ લેવો કે ફરી કરારો કરવા, એની ભલામણ કરવા ભારતમાંની અંગ્રેજ સરકારે લંડનમાં એક કમિટી બોલાવેલી. આખરી નિર્ણય વેળા સભ્યો સરખા મતે સામસામા પક્ષ, ત્યારે રેલવેનું રાષ્ટ્રીયકરણ કરવાનો પોતાનો મત જો ફેરવે તો ભારતીય સભ્ય સર પુરૂષોત્તમદાસ ઠાકુરદાસને ત્રીસ વર્ષ કી વાર્ષિ, સાત લાખ રૂપિયાની આવકવાળી જી.આઈ.પી. રેલવેની મેનેજિંગ એજન્સી આપવાની દરખાસ્ત તેમની સામે એ બી; | પણ ૨ મણે તો રોકડું પરખાવ્યું, “કમિટીના સભ્ય તરીકે હું મારો મત વેચીને પૈસા બનાવવા નથી માગતો.” - - - - - - - -- ---------- - - - - --- ----- ---- TAMITH - -- - - - - - - - - - - - - --- TE T TTTT T TT T TTTTT-- - - - - - T HHATTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTTH
SR No.537262
Book TitleJain Shasan 1999 2000 Book 12 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year1999
Total Pages510
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy