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________________ - - OM . . . . . . . . . . श्रीन शासन (064135) व्याख्या में श्री उवाइसूत्रकी टीका वांची ते सुणकर संघ | (स) रो तीइ ती (ति) हीए उ कायव्वं २ जो रिथिनो क्षय बहत नन्द पाम्यो और घणा जीव धर्ममें द्रढ हुआ || होवे तो पर्वतिथिमें करणी जो वृद्धि होटे तो उत्तर अट्ठाई महोछवादिक होने से जैनधर्मकी घणी उन्नति हुई । | तिथि लेणी. यदुक्तं-क्षये पूर्वा तिथिः कार्या वृद्धौ कार्या बाद जोह मास में श्रीपाली १, रामपुरा २, पंचपहाड ३, | तथोत्तरा. श्री वीरज्ञाननिर्वाणं कार्यं लोकानगैरिह ।। १ ।। लुणा वडा ४, गोधरा ५ वगेरेह कीतनाक गामों का संग जो उदियात तिथिको छोडकर आगे पीछे तिरि करे तो (घ) की तरफसे चौमासा की विनति छति विण यहां के संघे | तीर्थंकरकी आणानो भंग ।। १ ।। अनवस्था एटले मरजादानो बहुत देरज करके चोमासा यहां करवाया है । यहां दो। ठिकाणे व्याख्यान वंचता है । एक तो मुनी जवाहीर सागरजी | भंग २ मिथ्यात्व एटले समकितनो नाश ३ विरा धक ४ ए श्री आचार गसूत्र नियुक्ति टीका समेत वांचते है । चार दूषण होवे यदुक्तं-उदयंमि जा तिहि (ही) सा श्रावक-माविका वगेरह आनंद सहित सुनने को रोजीना| पमाणमिअरि (री) इ कीरमाणीए । आणामंगणवल्पामिच्छत्तआता है तेथी श्री धर्म की वृद्धि होती है । दजा श्री तपगच्छ | विराहणं पावे ।। १ ।। और श्री हीरप्रश्नमें पिण कहा है कि के श्री ज्यजी महाराजश्री विजयधरणेंद्रसूरीजीकुं भी संघने | जो पर्युषणका पिछला चार दिवसमें तिथिका क्षय आवे तो चौमासो यहां करवायो है । वां श्री पन्नवणा सूत्र वंचाता है । चतुर्दशीथी कल्पसूत्र वाचणा जो वृद्धि आवे तं एकमी एक दि श्रावकोए मुनी जवेरसागरजीने पुछा की अब के | Ti | वांचणा एथी पीण मालम हुवा की जेम तिथिकी अनि वृद्धि पी पीणमा श्री पर्यु णमें सुदी २ टुटी है सो एकम दूज भेली करणी के आवे ते तेमज करणी वास्ते अब के पर्युषणमें कम दुजे कोइ क केहेणा बारस तेरस भेगी करणीका है वो करणी ? भेली करणी वद ११ शनिवारे प्रारंभे वद १४ मंगलवारे इसका त्तर इस माफक दिया कि श्री रत्नशेखरसूरिकृत श्राद्धविध कौमुदी अपरनाम श्राद्धविधि ग्रंथ में कयो छ कि पाखी तथा कल्पसूत्रकी वांचना पिण सोमवारे पा बी करवी प्रथम मष्य भवादिक सामग्री पामी निरंतर धर्मकरणी करवी । नहि वदी ३० अमावस्याये जन्मोछवः सुद ४ शनिवारे निरंतर बने तेने तिथि के दिने धर्मकरणी करवी । यदक्तं - | संवत्सरी करणी कोई कहै छै कि बडा कल्पकी छट्ठकी । जइ सवै दिने (णे) सुं, पालह किरिअं तओ हवइ लठं() । | तपस्या टूटे तथा संवत्सरी पहिला पांचमे दिवसे पा-बी करणी जय (इ) पुण तहा न सकह, तहविहु पालिज्ज पव्वदिणं ।।१।। | वास्ते पजुषणका पिछला चार दिवस में तिथिकी बानी वृद्धि एक पखवाडा में तिथि छ होवे - यदुक्तं - आवे तो बारस तेरस भेगा करां छां वा दो तेरश करां छां दि (बी) या पंचमी अष्ट (ट्ट) भी ग्यारसी (एगारसी) इसका उत्तर के ये बात कोई शास्त्र में लिखी थी और च (चउ) दसि (दसी) पण तिहीउ (ओ) एआओ चोवीसकी सालमें दूज टूटी तीसकी सालमें दो चै थ हुई ते मह (य) तिहीडं (ओ) गोअमगण हारणिा भणिआ ।।१॥ वखतें श्री अमदावाद वगेरेह प्रायें सर्व शहरमें साधु साध्वी एवं पंचपर्वी पूर्णिमामावास्याभ्यां सह षटपर्वी च | श्रावक श्राविकायें बारस तेरस भेली वा दो तेरशां करी नहि प्रतिपक्ष कष्टतः स्यात तिथी पिण जे प्रभाते पचखाण वेलाए | कोइ गच्छमें मतमें दरसनमें शास्त्रमें नहि है कि स की तिथि उदियात होवे सो लेणी यदुक्तं तिथी (थि) श्च प्रातः | वदमें ने वदकी तिथि सुदमें हानि वृद्धि करणी ।के बहुना प्रत्याखावेलायां यः स्यात् स प्रमाणं सूर्योदयानुसारेणैव लोके | आत्मार्थी को तो हठ छोड कर शास्त्रोक्त धर्मकरी करके पि दिवादिव्यवहाररात् आहुरपि-चाउम्मासी (सि) अवरिसे | आराधक होणा चाहिए xxx. पखी (खि) अ पंचढेंमीसु नायव्वा । ताउ (ओ) तिहोउ કદાગ્રહી અને પૂર્વગ્રહથી પીડિત શ્રી સાગરજી जासिं दिइ स (स) रो न अणा (ण्णा) ओ १ पूआ | महारा४ अने समाधान २ मायार्यश्री क्षये al.'ना पच्चक्खागं पडिकमणं तह य नियमगहणं च जीए उदेइ सु | अर्थमा पनी हानि - वृद्धिभत पडेलांनी पथिनी . .. ... ..
SR No.537262
Book TitleJain Shasan 1999 2000 Book 12 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year1999
Total Pages510
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size29 MB
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